नयी दिल्ली, 01 मई, नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा है कि भारत का लक्ष्य आर्थिक शक्ति बनने का है लेकिन जब तक देश में लाखों बच्चों का शोषण होता रहेगा तब तक यह सपना पूरा नहीं हो सकता। बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान चलाने वाले श्री सत्यार्थी ने मजदूर दिवस के अवसर पर सरकार से बाल मजदूरी निरोधक कानून को और सख्त बनाने तथा उसे कड़ाई से लागू करने की अपील करते हुये कहा कि बच्चों की दासता की स्लेट पर कभी भी आर्थिक वृद्धि की इबारत नहीं लिखी जा सकती। उन्होंने ‘यूनीवार्ता’ से बातचीत में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 1986 का बाल मजदूर कानून अपनी सभी खामियाें के साथ अब भी माैजूद है और उसका ही इस्तेमाल मालिक बाल मजदूरों का शोषण करने के लिए करते हैं।
उन्होंने कहा, “इस कानून में कहा गया है कि 14 वर्ष तक के बच्चों से काम नहीं कराया जाएगा लेकिन इसमें 15 से 18 उम्र की बीच के बच्चों के बारे में कुछ नहीं कहा गया। इस कानून में केवल संगठित क्षेत्र में काम करने वाले बच्चों को सुरक्षा दी गई है जबकि भारत में 90 प्रतिशत से ज्यादा मजदूर असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं।” वर्ष 1998 की राष्ट्रीय जनगणना के अनुसार भारत में बाल मजदूरों की संख्या एक करोड़ 26 लाख थी। श्री सत्यार्थी ने कहा कि बाल मजदूरी के मामले में पाकिस्तान, बंगलादेश और नेपाल जैसे पड़ोसी देशों की स्थिति भी अच्छी नहीं है लेकिन भारत को उन देशों से अपनी तुलना नहीं करनी चाहिये क्योंकि वह आर्थिक शक्ति बनने की ओर देख रहा है जिसे अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिए मानक तय करने चाहिये। उन्होंने न्यूनतम मेहनताना न देने के खिलाफ कानून को कठोर करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि बाल मजदूरी के बढ़ने का सीधा संबंध न्यूनतम वेतन से है। जब माता-पिता को काम करने की उचित मजदूरी नहीं मिलती तो उन्हें मजबूरन बच्चों से काम कराना पड़ता है। श्री सत्यार्थी ने कहा कि दो अरब युवा अब भी बेरोजगार है जबकि एक अरब 68 लाख बच्चों का मजदूरी कराकर शोषण किया जा रहा है। श्री सत्यार्थी के एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन ने 1980 से लेकर अब तक 80757 बाल और बंधुआ मजदूरों को छुडाया है।

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें