नयी दिल्ली, 03 मई, दिल्ली में डीजल चालित टैक्सियों के परिचालन पर उच्चतम न्यायालय द्वारा लगायी गयी रोक का मुद्दा आज लोकसभा में गूंजा और इसे दिल्ली सरकार की अकर्मण्यता का नमूना बताते हुए केन्द्र सरकार से अदालत में सही पक्ष रखने की मांग की गयी। लोकसभा में शून्यकाल में भारतीय जनता पार्टी के रमेश विधूड़ी ने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय से 27 हजार डीजल चालित टैक्सियों के चालक एवं उनके परिवारों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। उनमें से कई ऐसे हैं जिन्होंने दो-तीन माह के अंदर ही अपनी जमापूंजी से टैक्सी खरीदी है ताकि वे बेहतर जीविकोपार्जन कर सकें । श्री विधूड़ी ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला ऑड-ईवन योजना के शोर-शराबे के बीच इस प्रभाव में आकर लिया कि वाहनेां से प्रदूषण फैल रहा है जबकि कई सर्वेक्षणों में इसका खंडन किया गया है।
ब्रिटेन के एक विश्वविद्यालय ने दिल्ली के वातावरण का अध्ययन किया जिसमें पाया गया कि दिल्ली में प्रदूषण के कारकों में वाहनों का स्थान छठवां है और मात्र 14 से 18 प्रतिशत प्रदूषण वाहनों से होता है। वाहनों से पहले विद्युत संयंत्र, निर्माण कार्य, ईंट भट्टे आदि का नंबर आता है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय में डीजल टैक्सियों का मामला तीन साल से चल रहा था लेकिन दिल्ली सरकार ने कोई ध्यान ही नहीं दिया और इस दौरान डीजल टैक्सियों का पंजीकरण होता रहा है तथा उच्चतम न्यायालय का कल का निर्णय 27 हजार परिवारों पर गाज बन कर गिरा। श्री विधूड़ी ने कहा कि इन 27 हजार परिवारों को दिल्ली की अक्षम अकर्मण्य और नौसिखिया सरकार की लापरवाही का परिणाम भोगना पड़ रहा है। उसने ऑड ईवन पर जोर देने के चक्कर में अदालत में सही स्थिति नहीं रखी जिससे यह निर्णय आया। उन्होंने केन्द्र सरकार से अपील की कि वह उच्चतम न्यायालय में हस्तक्षेप करें तथा वहां सही स्थिति सामने रखे ताकि टैक्सी चालकों को दुश्वारियों से बचाया जा सके ।

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