प्रद्योत कुमार,बेगूसराय।बाज़ारवाद के भूमंडलीकरण होने के बाद बाज़ारवाद के उदारीकरण नीति में काफी बदलाव आया है,ये बदलाव सिर्फ उसके लिए फायदेमंद है या उसको फायदा दे रहा है जो निर्माता से सीधा जुड़ा हुआ है बाक़ी लोग तो सिर्फ उपयोगी रहते हुए बाज़ारवाद के सिद्धांत के लिए सिर्फ उपयोग होते हैं,मतलब साफ़ है कि पहले बाज़ार निर्भर था ग्राहक पर,अब ग्राहक निर्भर है बाज़ार पर।बाज़ार में हर एक चीज़ का ध्रुवीकरण हो चुका है,यही ध्रुवीकरण का सिद्धांत ग्राहक पर भी लागू हो रहा है जिस वजह से निर्भरता बाज़ार पर पूर्ण रूपेण हो चुका है,जिससे निकलना कतई सम्भव नहीं है।
महानगर की बात और है,खासकर देश के कस्बाई शहरों में बाज़ारवाद के ध्रुवीकरण की नीति पर कार्य करते हुए जैसे मेगामॉल अपना पैर पसार रहा है उससे आने वाले समय में बाज़ार पर पूर्ण कब्ज़ा होगा कॉर्पोरेट घराने का और अपनी शर्तों पर बाज़ार को नियंत्रित करेगा एवं छोटे मोटे दुकानदारों को काफी परेशानियों का सामना करते हुए उन्हें जीविकोपार्जन की भी समस्या हो जायेगी और उन पर निर्भर परिवार को कुछ समय के बाद भूखे रहने की स्थिति आ जायेगी,फिर सिलसिला शुरू होगा आतंकवाद का।ये वही बात होगी की बड़ी मछली ने छोटी मछली को निगल लिया।ये एक बहुत बड़ी समस्या बनकर आने वाले वक़्त में सरकार के सामने आएगी,अगर इस पर अभी से प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया तो।इस मुद्दे पर एक जूट होकर स्थानिय पार्टी या उनके नेताओं को भी ज़ोरदार तरीके से विरोध करना चाहिए जो वो नहीं कर रहे हैं।सरकार को भी चाहिये कि इस समस्या को गम्भीरता से लेते हुए कस्बाई शहरों में फ़ैल रहे इस बाज़ारवाद के बढ़ते प्रभाव को ख़त्म करें ताकि छोटे व्यापारियों से पनपने वाली बेरोज़गारी और उससे उत्पन्न होने वाले आतंकवाद को समय से पहले रोका जा सके।
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