उदित राज ने दलितों के लिए लोकसभा में उठायी आवाज़ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 2 मई 2016

उदित राज ने दलितों के लिए लोकसभा में उठायी आवाज़

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नई दिल्ली : लोकसभा सांसद डॉ॰ उदित राज ने आज शून्यकाल के दौरान लोकसभा में पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के द्वारा शनिवार, 30 अप्रैल 2016 को शासकीय विभागों में आरक्षण पर प्रमोशन दिए जाने सम्बन्धी प्रावधान को अवैध करार कर  दिया है | हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने मध्य प्रदेश सिविल सर्विस प्रमोशन(पदोन्नति) नियम 2002 में आरक्षण से संबन्धित अधिकार को खत्म कर दिया था | हाईकोर्ट ने कहा कि 2002 का नियम सुप्रीम कोर्ट के एम. नागराज बनाम भारत सरकार के द्वारा दिए गए निर्णय के अनुरूप नहीं है | डॉ॰ उदित राज ने संसद में कहा कि यदि मध्य प्रदेश सिविल सर्विस प्रमोशन नियम 2002 एम. नागराज के अनुरूप नहीं था तो सरकार को निर्देशित करते हुए यह कहा जा सकता था कि इसको दुरुस्त किया जाये | हाईकोर्ट एम. नागराज के निर्णय को आधार मान सकती थी और यह बिल्कुल जरूरी नहीं था कि पदोन्नति में आरक्षण समाप्त हो | लगभग 60,000 कर्मचारियो कि पदोन्नति पर कोर्ट के इस फैसले से दलित समाज कि बहुत हानि होगी | उन्होने अनुरोध किया कि इस पर फौरन रिव्यू पिटिसन या सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके आदेश पर रोक लगाया जाये ताकि हजारों अनुसूचित - जाति, जनजाति कर्मचारियों, अधिकारियों की क्षति को बचाया जा सके |  

उन्होने कहा जब परिस्थितियाँ और तथ्य आरक्षण के पक्ष में होते है तो प्रायः उच्च न्यायपालिका लाभ नही देती है लेकिन तकनीकी कमी या कोई और वजह हो तो आरक्षण के खिलाफ में निर्णय देने में त्वरित कार्यवाही करती है | हाल में नैनीताल हाईकोर्ट ने राष्ट्रपति के ऊपर टिप्पणी किया और इस तरह से सभी के बहीखाता का मूल्यांकन करते रहते हैं | जबकि इनका हिसाब किताब कौन करे ? सरकार के द्वारा संविधान में संसोधन करके नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन बनाया गया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया | अब उच्च न्यायपालिका शिकायत कर रही है कि उसके यहाँ मुकदमे वर्षों से लंबित है | वर्ष 1993 से सुप्रीम कोर्ट का कोलोजियम ही जजों कि नियुक्ति करता रहा है तो ऐसे में उनके पास लगभग सबकुछ तो है फिर शिकायत किससे है | डॉ॰ उदित राज ने कहा कि उच्च न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं विधायिका के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण कर रही है और इस तरह के निर्णय से संविधान के संतुलन पर गहरा असर पड़ेगा | इस निर्णय को जल्द से जल्द रोका जाना चाहिए |

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