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रविवार, 12 जून 2016

विशेष : मुफ्तखोरी की गिरफ्फ्त में लोकतंत्र .......

अभी हाल में ही पश्चिमी देश और कालेधन रखने बाले लोगो के लिए जन्नत स्विट्जरलैंड की सरकार ने अपने देश के नागरिको के लिए और वैसे विदेशी जो वहाँ पांच साल से अधिक समय से रह रहे है उनके लिए मुफ्त में पेंशन देने के लिए एक सर्वेक्षण करवाई .चुकी जैसे-जैसे मशीनों का उपयोग हो रहा है वैसे में मानवीय श्रम की आवश्यकता शिथिल पड़ती जा रही है.इसलिए अपने नागरिको की आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए वहाँ की सरकार चाहती थी की उनके नागरिक सरकारी खजाने से बैगैर कामकाज किये भी एक निश्चित राशि लेकर अपनी जीवन स्तर को बनाए रखे .किन्तु स्विटजरलैंड सरकार के इस निवेदन को वहाँ के देशभक्त नागरिको ने सिरे से खारिज कर दिया. लगभग सत्तर फीसदी से अधिक नागरिको ने मुफ्त के धन लेने से इनकार कर काम के बदले धन लेने की भावना को स्वीकार किया.

सरकारे आती और जाती रहती है. यदि देश समृद्ध है तो हम भी समृद्ध होंगे और हमारी आस्था भी समृद्ध होगी.मै स्विटजरलैंड के उन महान नागरिको को तहे दिल से शुक्रिया देता हूँ जिन्होंने मुफ्तखोरी को देशहित में त्याग कर अपने राष्ट्रीय चरित्र को विश्व के समक्ष उजागर किया.भारतीय सनातन परम्परा में “श्रमेव जयते” की प्रधानता रही है.क्षणिक विलासिता उन राजाओं के लिए अवनती का कारण रहा था जिन्होंने श्रम का परित्याग किया .कालान्तर में जब भारत का भाग्य बर्बर इस्लाम के आक्रंताओ के हाथों में गया तो देश की सुख और समृधि भी लुप्त होती गयी .

भारतीय समाज में एक नया वर्ग जो इस्लामीकरण से प्रस्फुटित हुआ और जिनके पूर्वज इसी भारत भूमि के रहे उनकी विलासिता पूर्ण जीवन और गैर इस्लामी पर लगे जाजिया कर ने भारत की भूमि पर मुफ्तखोरी का बीज बोया जो बदस्त्तुर अंग्रेजो के ज़माने में भी ज़ारी रहा जनता इस्लाम के बर्बर आतंक से ग्रसित हो अंग्रेजों की कुटिल चाल में फंस राष्ट्र और राष्ट्रीय चरित्र को इसलिए भूल गया क्योंकि उस जमाने में अपनी जान और धर्म बचानी भी मुश्किल थी .

१९४७ में अंग्रेजो की दांस्ता से मुक्ति मिली किन्तु अंग्रेजो के अंग्रेजियत में डूबे भारतीय लोगो से मुक्ति नही मिल सकी जिसके कारण राष्ट्र शब्द से हम अपरिचित ही रहे.हमने लोकतंत्र को स्वीकार किया किन्तु विदेशी मानसिकता से पोषित और पल्लवित तत्कालीन देश के नेहरूवियन संस्कार के दीक्षित नेताओं ने देश के नागरिको में राष्ट्र की महानता को दर्शाने के बजाये मार्क्स मुल्ले की नीतिओं के नीव पर भारत की विकास का खाका तैयार किया जो देश के लिए जीने के बजाय परिवार के विकास और सरकारी खजाने से से जनता को मुफ्त में सैर करवाने को अपना लक्ष्य चुना.हमसे पीछे आजाद होने बाले मुल्क हमें राशन देने की माद्दा रखता है और भारत सारे संसाधनों से लैस होते हुए भी दर दर को कटोरे फैलाने मजबूर हुए. क्यों?

फिरकापरस्त और मौकापरस्त लोगो की गोद में खेलने बाली कांग्रेसी सरकारे कभी भी राष्ट्र और राष्ट्रीय चरित्र के बारे में नागरिको को नही जागरूक किया.दहशतगर्दों का हमदर्द कांग्रेस के लिय “फैमिली फर्स्ट” रहा है.लोकतंत्र में चुनावों का महत्व है फलत:कांग्रेस ने देश के मतदाताओ में मुफ्तखोरी का जो रोग फैलाया वह आज भी बदस्त्तुर ज़ारी है.

मई २०१४ में इसी चुनाव ने एकबार फिर भारत के भाग्य का करबट बदला और राष्ट्रवादी सोच से लबरेज भारत के प्रधानमन्त्री ने “नेशन फर्स्ट” का नारा दिया.नेशन फर्स्ट के नारे ने तो देश में काग्रेसियो और वामपंथियो के नाज़ुक अंगो पर तीखी मिर्ची उड़ेली. देश में इन गद्दारों और उसके पाले नौकरशाहों के सह पर कभी असहिष्णुता तो कभी साम्प्रदायिकता की भूल भुलैया में देश के मतदाताओ को गुमराह करने की कोशिश की जाती रही है. चुनावों में ‘नेशन फर्स्ट’ के बदले ‘मुफ्तखोरी फर्स्ट’ की प्राथमिकता दी जा रही है.ऐसा विधानसभा के चुनावों में भी देखने को मिला .

देश के सर्वाधिक सम्वेदनशील राज्य पश्चिम बंगाल में जिस तरह से ममता बनर्जी इसी मुफ्तखोरी के ज़रिये जेहादी मुसलमानों को प्रश्रय देती रही है वह आने बाले दिनों के लिए अत्यंत भयाबह है. जिस तरह से वोट के लिए मुस्लिम तुष्टिकरण की आग में ममता बनर्जी बंगाल को झोंक रखी है वह घातक है.मुस्लिमो में जाति प्रथा नही है, ऐसा माना जाता है, फिर इन मुसलमानों को ‘अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग’ घोषित कर देश की संविधान के साथ बलात्कार और बंगाल के पिछड़े नागरीको के साथ भयंकर अत्याचार किया है.पश्चिम बंगाल की नस्लभेदी और हिन्दू विरोधि ममता बनर्जी सरकार ने लगभग 97 फीसदी मुसलमानों को अतिरिक्त पिछड़ा वर्ग में पंजीकृत कर राज्य हिन्दू वर्गों के साथ अमानुषिक अस्म्वैधानिक अत्याचार किया .ये 97 फीसदी OBC मुसलमान हिन्दुओ के हको को मारकर अपने एहसान का चुकता थोक भाव से टीएमसी को वोट देकर किया.इनमे अधिकांस बांगलादेशी घुसपैठिये भी हैं.इतना ही नही एक करोड़ से ज्यादा मुस्लिम छात्रों को वजीफे के नाम पर 1.921 करोड़ रूपये मुफ्त में बांटे गये.मुफ्तखोरी का यह घृणित खेल देश की एकता और संप्रभुता के लिए घातक है.

पश्चिम बंगाल के अधिकाँश मुस्लिम लोगो को 2 रूपये प्रति किलो के हिसाब से राशन मिलता है.तभी तो पश्चिम बंगाल में अनाज पर राज्य का रियायत समर्थन वर्ष 2010-11 के  516.32करोड़ रूपये से लगभग  12 गुणा बढ़कर  2016  6,000 करोड़ रूपये हो गया.मुफ्तखोरी का सिलसिला अनेक नामो से जैसे युवाश्री योजना के नाम पर 40 लाख लड़के लडकियों को साइकिल,बंगाल में  20,380 क्लब और एनजीओ को सरकारी खाते से मुफ्त करोडो रूपये दिए गये .अगर पश्चिम बंगाल के वर्तमान विधानसभा का रिजल्ट देखा जाय तो २०११ का चुनाव वामपंथियो के बर्बर अत्याचार से त्रस्त जनता ने विकल्प के रूप में ममता को चुना था तो २०१६ का चुनाव मुफ्तखोरो अतिवादी इस्लामी तंजीमो एवं घुसपैठियो के सहारे ही ममता ने भयंकर जनादेश पाया? 

यह जनादेश लोकतंत्र के नाम पर  भयावह स्याह जनादेश है. पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां के लोगों के पास औसत एक एकड़ से भी कम जमीन है ऐसे में बड़े उद्योग के लिए ना तो भूमि उपलब्ध हो सकती है और ना ही वहाँ की स्थानीय शाशन ऐसी है जहां निवेश को प्रोत्साहन मिले.चुनावी परिणाम के बाद जिस तरह से राज्य में ममता बनर्जी की पार्टी के गुंडों ने जो तांडव मचाया उससे तो यही जाहिर होता है की वहाँ कानून का नही गुंडों का राज है.ऐसे में अगले चुनाव तक इन मुफ्तखोरो को बचाए रखना और अधिक मुफ्तखोरी का दायरा बढाने के लिए आखिर ममता सरकार को तो राजस्व बढाना ही होगा.ये राजस्व तो वर्तमान माहौल में बढ़ने से रहे.दूसरा सहारा केन्द्र का है. केन्द्र ऐसे मुफ्तखोरी को बढावा देने बाली व्यबस्था पर कठोरता से अंकुश लगा पाएगी ?नेशन फर्स्ट को अपना लक्ष्य मानने बाली वर्तमान केन्द्र सरकार देश की विकास का जो खाका तैयार कर रहा उस विकास में पश्चिम बंगाल या अन्य मुफ्तखोरी को प्रोत्सहान देने वाली सरकारे विकास में विनाश की पलीता लगा देश को दीमक की तरह चाट रही है.

क्या भारत के नागरिको में स्विटजरलैंड के नागरिको की तरह स्वाभिमान नही है जो इन विकासद्रोही सरकारों के मुफ्तखोरी में फंस अपने स्वाभिमान को लांक्षित करते नही शर्माते है. हम मुफ्त की आशा में भारत के विनाश की आशा रखनेवाले को अपना वोट देकर लोकतंत्र की हत्या नही कर रहे हैं.हमारा स्वाभिमान कब जगेगा.देश प्रथम की भाब हममे कब जागेगा.एकबार हमसब विचार करें की जब छोटा सा देश स्विटजरलैंड के महान नागरिक मुफ्खोरी को सिरे से खारिज कर अपनी राष्ट्र निष्ठा को जागृत रखा तो हमसब कब उस निष्ठा को जाग्रत करेंगे.आज विश्व भारत की ओर बड़ी आशा भरी नजरों से देख रहा है .सदीओ के बाद केंद्र में एक राष्ट्र प्रथम में गहरी आस्था रखने बाले व्यक्ति के हाथ में देश का कमान है, वैसे में हम नागरिक यदि अपने दाइत्व को समझे तो एक बार फिर भारत, विश्व गुरु और सोने की चिड़िया बन सकता इसमें रंचमात्र भी संदेह नही है .बस हमे भारत की महान परम्परा अपने संस्कार और संस्कृति अपने पूर्वजो के कृतित्व को आत्मसात कर मुफ्तखोरी से अपने लिए नही तो अपने बच्चों के स्वर्णिम भविष्य और सशक्त व समृद्ध भारत के लिए  बाहर निकलना होगा.



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--संजय कुमार आजाद--
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