गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार: अब नौ जून को सुनायी जायेगी सजा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


सोमवार, 6 जून 2016

गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार: अब नौ जून को सुनायी जायेगी सजा

gulberg-society-carnage-ssntence-put-off-to-june-9
अहमदाबाद, 06 जून, गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे को जलाये जाने के एक दिन बाद यहां मेघाणीनगर इलाके में अल्पसंख्यक समुदाय के परिवारों की रिहायश वाले गुलबर्ग सोसायटी में भीड द्वारा जिंदा जला कर मार दिये गये 69 लोगों, जिनमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे, से जुडे चर्चित गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार मामले में दोषी ठहराये गये 24 लोगों को सजा सुनाये जाने के बिंदु यहां एक विशेष अदालत में सुनवाई जारी रही। अदालत ने सुनवाई की अगली तिथि नौ जून तय कर दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) के वकील आर सी कोडकर ने एसआईटी अदालत के न्यायाधीश पी बी देसाई से 24 में से 11 दोषियों जिन्हें हत्या का दोषी ठहराया गया है को फांसी की सजा देने की मांग की। उन्होंने इस घटना को ठंडे कलेजे (कोल्ड ब्लडेड)से की गयी हत्या तथा कभी कभार होने वाली घटनाओं में से भी यदा कदा ही होने वाली घटना (रेयरेस्ट ऑफ रेर) करार देते हुए आरोपियों के लिए कडी सजा की मांग की। उधर बचाव पक्ष के एक वकील ने अदालत से नरमी का रूख दिखाने की मांग करते हुए कहा कि दोषी ठहराये गये लोग पेशेवर अपराधी नहीं हैं और उक्त घटना स्वर्गीय जाफरी के उस दिन उकसावे वाली गोलीबारी की घटना के कारण हुई। उनकी ओर से की गयी गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गयी थी तथा 15 घायल हुए थे। पीडितों के वकील एस एम वोरा ने दोषियों को कडी सजा के साथ ही पीडितों को उचित मुआवजा दिये जाने की भी मांग की। 

अदालत ने गत दो जून को इस प्रकरण में फैसला सुनाते हुए विश्व हिन्दू परिषद के नेता अतुल वैद्य समेत 24 आरोपियों को दोषी करार दिया था तथा भाजपा के तत्कालीन और वर्तमान पार्षद विपिन पटेल, कांग्रेस नेता मेघजी चौधरी और पुलिस अधिकारी के जी एरडा समेत 36 अन्य को दोषमुक्त कर दिया था। अदालत ने हालांकि इस मामले को पूर्व नियोजित षडयंत्र मानने से इंकार करते हुए सभी आरोपियाें के खिलाफ लगायी गयी संबंधित भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी को हटा लिया था। दोषियों में से 11 को हत्या, एक को हत्या के प्रयास और 12 को दंगा करने और अन्य सामान्य अपराधों का दोषी ठहराया गया है। दोषी करार दिये गये विहिप नेता अतुल वैद्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 143, 147, 148, 149, 153, 186, 188, 427, 435, 436 के तहत ही मामला दर्ज किया गया है। उन्हें हत्या अथवा अन्य गंभीर अपराधों का आरोपी नहीं बनाया गया है। अदालत ने सजा के बिंदु पर सुनवाई के लिए आज की तारीख मुकर्रर की थी। ज्ञातव्य है कि यहां मेघाणीनगर में स्थित उक्त सोसायटी में यह घटना गोधरा में साबरमती एक्सप्रेेस के एक डिब्बे में आग लगाये जाने के एक दिन बाद यानी 28 फरवरी 2002 को हुई थी। यह मामला गुजरात दंगों से जुडे उन नौ मामलों में शामिल है जिसकी जांच उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर गठित विशेष जांच दल यानी एसआईटी ने की थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2008 में गुजरात की तत्कालीन नरेन्द्र मोदी सरकार को सीबीआई के पूर्व निदेशक आर के राघवन की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल गठित करने के आदेश दिये थे। एसआईटी ने फरवरी 2009 से इस मामले की जांच शुरू की थी। इस मामले में श्री मोदी की भूमिका पर भी सवाल उठाये गये थे पर बाद में एसआईटी ने उन्हें क्लिन चिट दे दी थी। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की रोज सुनवाई तथा बाद में फैसला सुनाने पर रोक लगाने के आदेश दिये थे। गत फरवरी माह में अदालत ने फैसला सुनाने पर रोक हटा ली थी मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए आज भी अदालत परिसर के आसपास सुरक्षा के कडे प्रबंध किये गये थे। सुनवाई के बाद दोषियों को वापस साबरमती जेल भेज दिया गया। इस बीच, स्वर्गीय जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने जिन्होंने अदालत के फैसले पर असंतोष जताते हुए इसे आधा अधूरा न्याय बताया था तथा उनके पुत्र तनवीर जाफरी ने कहा कि दोषी ठहराये गये लोगों को 15 से 20 साल की सजा मिलनी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि इन लोगों ने किसी और के इशारे पर इस घटना को अंजाम दिया था। ज्ञातव्य है कि उक्त घटना में मारे गये कुल 69 में 30 के शव नहीं मिल सके थे। इसे गुजरात के 2002 के दंगों के सबसे बडे नरसंहारों में से एक माना जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं: