आंकड़ों की बाजीगरी से नहीं, वास्तु से सुधरेगी देश की अर्थनीति - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 16 जून 2016

आंकड़ों की बाजीगरी से नहीं, वास्तु से सुधरेगी देश की अर्थनीति

गुवाहाटी : 14 जून : अमेरिकी संसद में अपने संबोधन में 'योग' को विश्व की धरोहर बताने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भूल गये कि भारत ने विश्व को 'वास्तु' के रूप में 'योग' से भी ज्यादा महत्वपूर्ण धरोहर दी है, जिसमें भय, भूखमरी, गरीबी, उग्रवाद, अभाव, अशांति, रोग और अकाल मृत्यु निवारण सरीखी विश्व की भीषण समस्याओं के समाधान की अद्भूत क्षमता है। सन् 2011 में रुपये के सिंबल में भयंकर वास्तु दोष की भविष्यवाणी करने वाले ख्यातिप्राप्त वास्तु विशेषज्ञ राजकुमार झांझरी ने गुवाहाटी में जारी एक बयान में कहा कि भारत सरकार द्वारा भयंकर वास्तु दोष से दूषित रुपये का सिंबल जारी करने के बाद देश की अर्थनीति खस्ताहाल होने से ही 'वास्तु' की महिमा और क्षमता प्रमाणित हो चुकी है।

उल्लेखनीय है कि विगत 20 सालों में पूर्वोत्तर के विभिन्न राज्यों के 15 हजार से भी ज्यादा परिवारों को नि:शुल्क वास्तु सलाह देकर प्राप्त किये जमीनी अनुभव के आधार पर श्री झांझरी ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को सन् 2011 में तथा उनके बाद प्रधानमंत्री बनने वाले श्री मोदी को भी रुपये के सिंबल में भयंकर वास्तु दोष होने का जिक्र करते हुए पत्र लिखा था। उल्लेखनीय है कि श्री झांझरी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को जब पत्र लिखा था, तब 44 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर रहने वाले रुपये का अब तक 50 प्रतिशत से ज्यादा अवमूल्यन होकर 68 रुपये प्रति डॉलर हो चुका है तथा 8.5 की दर पर रहने वाली जीडीपी गिरकर 5 प्रतिशत हो चुकी है। देश की आजादी के बाद अब तक रुपये का इतना अवमूल्यन कभी नहीं हुआ था, जितना रुपये के नये सिंबल के जारी होने के बाद सिर्फ 5 सालों में हुआ है। लेकिन दोनों ही सरकारों द्वारा इस भविष्यवाणी की अनदेखी करने की वजह से डॉलर के मुकाबले रुपये का निरंतर अवमूल्यन होने के साथ ही देश की अर्थनीति दिन-ब-दिन मंदी के दुष्चक्र में फंसती जा रही है। मजे की बात यह है कि पिछले 5 सालों में रुपये के निरंतर अवमूल्यन, लगातार गिरती जीडीपी तथा उद्योग व व्यवसाय क्षेत्र में भयंकर मंदी से रुपये का सिंबल वास्तु दोष से दूषित होने की बात सत्य प्रमाणित होने के बावजूद सच्चाई का सामना करने के बजाय मोदी सरकार आंकड़ों की बाजीगरी से देश की जनता को गुमराह कर आर्थिक विकास के झूठे दावे कर रही है, जबकि खुद रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन व देश के काफी अर्थनीतिविद मोदी सरकार की आंकड़ों की बाजीगरी की पोल खोल चुके हैं। 

अपनी साफगोई के लिए प्रसिद्ध भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में इस बात को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया है कि आज भी हमारी अर्थव्यवस्था दयनीय हालत में है। हम तुलनात्मक रूप से अब भी कमजोर अर्थव्यवस्था हैं। इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च के प्रोफेसर डॉ. आर. नागराज ने सरकार के दावे को चुनौती देते हुए कहा है कि भारत की वृद्धि के आंकड़े भरोसे के लायक नहीं है क्योंकि अर्थव्यवस्था के धीमा होने के अनेक संकेत मिलने के बावजूद सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आंकड़ों में वृद्धि प्रदर्शित की जा रही है। 

सकल कीमत संकलन यानी जीवीए (Gross Value Added) की नई प्रणाली पर डॉ. नागराज की आलोचना को एम्बिट कैपिटल की अर्थशास्त्री ऋतिका मंकर मुखर्जी और मॉर्गन स्टेन्ली में इमर्जिंग मार्केट्स के हेड रुचिर शर्मा सहित कई अन्य अर्थशास्त्रियों का भी समर्थन मिला। बैंक ऑफ अमेरिका-मेरिल लिंच जैसी मशहूर वित्तीय संस्था का कहना है कि अगर जीडीपी की गणना का पिछला तरीका अपनाया जाये, तो जुलाई-सितंबर- 2015 की विकास दर 7.4 प्रतिशत की जगह 5.2 प्रतिशत ही निकलेगी और अप्रैल-जून 2015 की अवधि में जीडीपी की विकास दर का आंकड़ा 7 प्रतिशत के बजाय 5 प्रतिशत हो जायेगा।

अर्थकाम डॉट कॉम के संपादक अनिल रघुराज का कहना है कि लगभग डेढ़ साल पहले जनवरी-2015 में नरेंद्र मोदी नीत एनडीए सरकार ने जीडीपी के अलग-अलग तत्वों की गणना का स्वरूप ऐसा बदला कि 2013-14 की 4.7 प्रतिशत की विकास दर बढ़ कर 6.9 प्रतिशत हो गयी। गणना में ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) की धारणा शामिल की गयी और गणना का आधार वर्ष 2004-05 से बदल कर 2011-12 कर दिया गया, यह उसी का कमाल है। अन्य अर्थशास्त्री भी अब सवाल उठाने लगे हैं कि वैश्विक और घरेलू मांग में कमी और अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र में निराशा के बावजूद जीडीपी वृद्धि दर इतनी अधिक कैसे हैं? पिछले वर्ष जनवरी में केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने सकल घरेलू उत्पादन के निर्धारण की नयी प्रक्रिया घोषित की थी, जिसके अनुसार वर्ष 2013-14 में भारत की वास्तविक जीडीपी या मुद्रास्फीति के संयोजन के बाद जीडीपी की वृद्धि दर पूर्ववर्ती 4.7 फीसदी की जगह 6.9 फीसदी हो गयी। फरवरी में 2014-15 की अनुमानित दर 7.4 फीसदी आंकी गयी थी।

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों में विसंगति की बात स्वीकार करते हुए मुख्य सांख्यिकीविद टीसीए अनंत ने भी स्वीकार किया है कि वित्त वर्ष 2015-16 में जीडीपी के आंकड़ों में फर्क बढ़ कर 2.14 लाख करोड़ रुपए तक दिखा है, जो इसके 1.9 फीसदी के बराबर है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष में 35,284 करोड़ रुपए था। वित्तीय सेवा कंपनी एंबिट केपिटल का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था की रफ्तार 2014-15 से ही सुस्त पड़ी हुई है। एंबिटा का कहना है कि सरकार के जीडीपी के आंकड़े सामान्य समझ के परे हैं। ऐसे नाजुक हालातों में श्री झाँझरी ने मोदी सरकार से जल्द से जल्द रुपये के त्रुटिपूर्ण सिंबल को बदलकर एक वास्तु सम्मत सिंबल जारी करने के साथ ही देश में वास्तु के प्रचार-प्रसार की सुव्यवस्थित नीति लागू करने मांग की है, ताकि देश की अर्थनीति को पटरी पर लाने के साथ ही देश को विश्वगुरु बनाने का सपना साकार किया जा सके।

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- सुदीप शर्मा चौधुरी, 

सचिव, रिबिल्ड-नार्थईस्ट

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