महंगाई बडा या योग, टमाटर हुआ पेट्रोल से महंगा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 26 जून 2016

महंगाई बडा या योग, टमाटर हुआ पेट्रोल से महंगा

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कोलकाता, भाजपा सरकार के केंद्र में आने के बाद से देश में योग की चरता व महत्ता सिर चढ कर बोल रही है। हर साल सरकार 21 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रही है। देश के चपरासी से राष्ट्रपति तक योग के आगे नतमस्तक हो रहे हैं। सभी महामहिम लोगों को शिक्षा दे रहे हैं कि योग से एक नहीं कई फायदे हैं। शरीर व मन स्वस्थ रहेगा। बात सही है। विज्ञान भी इससे सहमत है। लेकिन कई एेसे सवाल अनुतरित्त रह जा रहे हैं जिसका जवाब तो केवल योगोपदेश देने वाले ही दे सकते हैं। ये सवाल निम्न हैं ः

1) क्या योग करने से देश का काला धन वापस आ जाएगा..मोदीजी ने कहा था कि 100 दिन में काला धन वापस लाएंगे...
2) क्या योग करने से देश से भ्रष्टाचार मिट जाएगा..व्यापम, सारदा, नारदा जैसे घोटाले की लीपापोती से तो एेसा नहीं लगता..
3) क्या योग करने से देश के शिक्षित युवाअों की बेरोजगारी खत्म हो जाएगी.. भाजपा ने करोडों नौकरी का वादा किया था..
4) क्या योग करने से भूख के मारे पेट की पीडा झेल रहे करोडों लोगों का मरज ठीक हो जाएगा...

महंगाई योग ः
देश में इन दिनों महंगाई योग तेजी से बढा है। छह माह पहले तक 15-20 रुपए बिकने वाला टमाटर शतक तक पहुंच गया है। गरीबों के पेट भरुआ खाना आलू अभी 20 से 30 रुपए के बीच बिक रहा है। हालात यह है कि आज टमाटर तो पेट्रोल व डीजल से भी महंगा हो गया है।

सवाल यह है कि क्या योग करने से महंगाई की पीडा से मुक्ति मिल सकेगी.. 
योग की विश्वसनीयता या इसके फायदे पर सवाल नहीं उठाए जा रहे हैं। लेकिन योग के नाम पर जिस तरह की नौटंकी देखी जा रही है, वह निश्चित तौर पर समरथन योग्य नहीं है। पहले सरकार मंगाई की मांर झेल रहे लोगों को राहत देने की कोशिश करे फिर योग कराए तो बेहतर होगा। केवल 100 फीसदी एफडीआई से दी देश विकास की बडी-बडी झलांगे मारते हुए चांद व मंगल पर पहुंच जा सकता हौ तो बेहतर है कि संसद में भी 100 फीसदी एफडीआई लागू कर दिया जाय। योग के नाम पर केवल कैमरा प्रेम दुनिया की नजरों में सराहनीूय हो सकता है लेकिन महंगाई की पीडा से पीडित भारतीयों के लिए तो कैंमरा योग किसी भी तरह मान्य नहीं हो सकता। जिस देश में बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए मिड डे मिल का प्रलोभन देने पडे, क्योंकि उनके घरों में दाने नहीं हैं। जिस देश में भूखे लोगों को रोटी देने के लिए 100 रोजगार देने पडे क्योंकि उनके हाथों को काम नहीं है। जिस देश में भूख से तपडपते लोगों को जिंदा रहने के लिए 2 रुपए किलो चावल/गेंहू देने पडे क्योंकि अधिक कीमत पर खरीदने के लिए उनके पास रुपए नहीं हैं। जिस देश में गरीबों को पेट बालने के लिए बच्चों को बेंचना पडे, क्योंकि भूखे बच्चों को तडपता वे नहीं देख सकते। जिस देश में आम लोगों को बसों व रेलगाडियों में भेड-बकरियों की तरह ठूंस-ठूंस कर सफर करना पडे, क्योंकि उनकी कीमत केवल वोट बैंक तक ही सीमित है। जिस जिस देश में लोकतंत्र के नाम पर कथित विजेता योग दंड चलाने जैसी मनमानी करें, क्योंकि जनता बोलने की ताकत खो चुकी है।  उस देश में कैमरा योग पर सवाल उठना व उठाना गलत नहीं हो सकता। 

वैसे योग के बारे में कहा जाता है कि योग का उपदेश सर्वप्रथम हिरण्यगर्भ ब्रह्मा ने सनकादिकों को, पश्चात विवस्वान (सूर्य) को दिया। बाद में यह दो शाखाओं में विभक्त हो गया। एक ब्रह्मयोग और दूसरा कर्मयोग। इसलिए अगर आम कोई ये कहता है कि वह योग को विश्वव्यापी बना रहा है तो वह न केवल देश व दुनिया को धोखा दे रहा है बल्की अपना ऊल्लू सीधा कर रहा है। 

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