पटना आर्ट्स काॅलेज में प्रभारी प्राचार्य की नियुक्ति छात्र आंदोलन के दबाव में: कुणाल - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 23 जून 2016

पटना आर्ट्स काॅलेज में प्रभारी प्राचार्य की नियुक्ति छात्र आंदोलन के दबाव में: कुणाल

  • बिहार की शिक्षा व्यवस्था बेहाल, चलाया जाएगा शिक्षा बचाओ-रोजगार दो आंदोलन 

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पटना 23 जून 2016, भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि पटना आटर््स काॅलेज में प्रो. अरूण कमल की प्रभारी प्राचार्य के रूप में नियुक्ति स्वागतयोग्य है और उम्मीद है कि नए प्राचार्य छात्रों की समस्याओं का कोई ठोस हल निकालेंगे. उन्होंने कहा कि छात्र नेताओं की रिहाई, परीक्षाओं का आयोजन और काॅलेज में बेहतर शैक्षणिक माहौल की स्थापना में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी. उन्होंने कहा कि छात्र आंदेालन की अन्य मांगों पर भी विश्वविद्यालय और सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए. भाकपा-माले विधायक सुदामा प्रसाद के नेतृत्व में माले-आइसा और इनौस का एक प्रतिनिधिमंडल माननीय शिक्षा मंत्री से मिला था, शिक्षा मंत्री ने एक कमिटी गठित करने की बात कही थी. आज शिक्षा विभाग की ओर से एक कमिटी छात्रों का पक्ष सुनने आटर््स काॅलेज में आई थी. हमें उम्मीद है कि यह कमिटी जारी गतिरोध को समाप्त करने की दिशा में ठोस सुझाव सरकार को देगी.

शिक्षा बचाओ-रोजगार दो आंदोलन: उन्होंने आगे कहा कि बिहार में टाॅपर्स घोटाला की तुलना व्यापम घोटाले से की जा रही है. जदयू संरक्षित लालकेश्वर प्रसाद के नेतृत्व में हुए इस टाॅपर्स घोटाले में भाजपा-राजद के नेताओं के नाम भी आ रहे हैं. जाहिर है कि पिछले 10 वर्षों से बिहार के शैक्षणिक क्षेत्रा में राजनीतिक संरक्षण में खुलकर पफर्जीवाड़ा हो रहा है. शिक्षा सुधर के बड़े-बड़े दावे करने वाली नीतीश सरकार ने बिहार के शिक्षण संस्थानों को पूरी तरह से बर्बादी के रास्ते पर ढकेल दिया है. इसका अंदाजा उसी वक्त लग गया था जब उसने मुचकुंद दूबे आयोग की सिपफारिश को भी रद्दी की टोकरी में पफेंक दिया था. टाॅपर्स घोटाले ने इस शैक्षणिक पफर्जीवाड़े पर से पर्दा हटाया है, लेकिन इसकी संपूर्णता में जांच होनी चाहिए. इसके राजनीतिक  संरक्षण को भी जांच के दायरे में लाया जाए और किसी शिक्षाविद् की अध्यक्षता में उच्चस्तरीय जांच टीम का गठन करके इस मामले की संपूर्णता में जांच कराई जाए. स्कूली शिक्षा पहले से ही बदहाल है. आए दिन मिड-डे मील (मध्याह्न भोजन), छात्रवृत्ति आदि सवालों पर छात्रों के आंदोलन होते रहते हैं. 

मेडिकल-इंजीनियरिंग जैसे उच्च्तर शिक्षा में दलित-ओबीसी छात्रों को मिलने वाली छात्रावृत्ति में नीतीश सरकार ने भारी कटौती की है, जिसकी वजह से वे बीच में ही पढ़ाई छोड़ने को विवश हो रहे हैं.  सम्मानजनक रोजगार का सवाल आज भी बिहार में छलावा बना हुआ है. लाखों स्थायी पद रिक्त हैं, लेकिन उस पर बहाली नहीं की जा रही है. युवा नीति, बेराजेगारी भत्ता से भी सरकार भाग रही है. इसलिए माले-आइसा व इनौस ने बिहार में शिक्षा बचाओ-रोजगार दो आंदोलन चलाने का फैसला किया है.

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