तिलेश्वर महादेव मंदिर: जहां साल में तीन बार बदलता है शिवलिंग का रंग! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 18 जून 2016

तिलेश्वर महादेव मंदिर: जहां साल में तीन बार बदलता है शिवलिंग का रंग!

यूपी का भदोही इकलौता शहर है जहां शिवलिंग साल में तीन बार रंग बदलता है। खासियत यह है कि हर साल सांप के केचूर की तरह प्रति वर्ष शिवलिंग एक परत पपड़ी भी छोड़ता, जो बिलुप्त हो जाता है। जिसे तलेश्वरनाथ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर आदि पांच पांड्वो को जब अज्ञातवाश हुआ था उस दौरान गंगा किनारे यहां ठहरे थे और भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से पांचो भाइयो ने शिवलिंग की स्थापना की। पूजा के दौरान जब गुरुदक्षिणा के लिए धन नहीं था तो अर्जुन ने कुबेर पर तीर छोड़ा तो धन की वारिश हो गयी। जो आज भी कभी-कभार सोने के सिक्के के रुप में मिलते है। कहते है रंग बदलने वाले ये शिवलिंग हर मनोकामना को पूरा करते हैं। इनके दर्शन मात्र से ही जीवन धन्‍य हो जाता है 

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भगवान शिव चमत्कार करने वाले देवता हैं। वह बहुत दयालू और भक्तों के प्रेमी हैं। भगवान शिव को भारत और तमाम जगहों पर शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। उन्हीं में से एक विराजमान है भगवान विष्णु की नगरी प्रयाग व भगवान भोलेनाथ की नगरी काशी के मध्य वसा यूपी के भदोही में, जहां भगवान शंकर के इस अनूठे मंदिर में विशालकाय शिवलिंग है जो हर साल तीन बार रंग बदलता है। प्रति वर्ष यह शिवलिंग एक परत पपड़ी भी छोड़ता है फिर बिलुप्त हो जाती है, ठीक उसी तरह जैसे सर्प अपनी केचुल छोड़ता है। एक बार तो कोई विश्वास नहीं करता, लेकिन जब अपनी आँखों से देखता है तो शीश झुकाएं नहीं रहता। इस मंदिर को तिलेश्वरनाथ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। शिवरात्रि व सावनभर मेला लगता है। मनोकामनाए पूरी होने पर लोग हलवा पूरी चढाते है। कहते है पांच सोमवारी जल चढाने पर पुत्ररत्न की प्राप्ति होती है। लोग मनोकामनाए पूरी होने पर पुत्रो का मुंडन संस्कार भी यहीं कराते है। क्यों होता है ऐसा, इस रहस्य को अभी तक कोई नहीं समझ सका है। यहां के लोग इस शिवलिंगके रंग बदलने को किसी दैविक शक्ति का चमत्कार मानते हैं। कुछ बुद्धिजीवियों का मत है कि यह एक स्फटिकीय रचना है और सूर्य की किरणों के विभिन्न कोणों में पडने के साथ ही यह शिवलिंग रंग बदलती नजर आती है। 

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मान्यता है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर आदि पांच पांड्वो को जब अज्ञातवाश हुआ था उसी दौरान गंगा किनारे वे ठहरे थे। भगवान श्रीकृष्णा की प्रेरणा से पांचों पांडव नित्य भगवान भोलेनाथ की आराधना करते रहे। एक दिन श्रीकृण की ही प्रेरणा से पांचों पांडवों ने गंगा स्नान के बाद शिवलिंग स्थापना का मन बनाया। युधिष्ठिर के कहने पर महाबली भीम ने एक विशालकाय शिवलिंग की स्थापना की। पूजा के दौरान जब गुरुदक्षिणा की मांग पुजारी ने की तो हाथ खाली थे। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा व युधिष्ठिर की आज्ञा पर अर्जुन ने कुबेर पर तीर छोड़ा तो धन की वारिश हो गयी। मंदिर के जानकार केशव कृपाल पांडेय का कहना है कि खुदाई के दौरान आज भी कभी-कभार सोने के सिक्के मिल जाया करते है। पांच पांडव काफी दिन तक यहां रहने के बाद लाछा गृह चले गए।  मान्यता है कि भगवान शंकर यहां आने वाले किसी भी भक्त या श्रद्धालु को निराश नहीं करते है। इस शिवलिंग के चारों ओर परिक्रमा करने की इच्‍छा लिए हुए भारी संख्‍या में श्रद्धालु यहां पर आते हैं। आस्था कि बात की जाएं तो इनके द्वार से कोई खाली नहीं जाता है। इस शिवलिंग कि एक और अनोखी बात यह है कि इस शिवलिंग के छोर का आज तक पता नहीं चल पाया है। कहते है बहुत समय पहले कुछ लोगों ने यह जानने के लिए कि यह शिवलिंग जमीन मे कितना गड़ा है, इसकि खूदाई की, पर काफी गहराई तक खोदने के बाद भी उन्हे इसके छोर का पता नहीं चला। अंत में उन्होंने इसे भगवान का चमत्कार मानते हुए खुदाई बन्द कर दी। खुदाई के दौरान मिले अवशेष आज भी यहां सुरक्षित है। इस शिवलिंग का उल्लेख गीता में भी किया गया है। श्रद्धालु मनीष कहते है अभी तक तो यही सूना था कि गिरगिट ही रंग बदला करते है लेकिन काशी-प्रयाग व् विन्ध्य जैसे पवित्र तीर्थ स्थल के मध्य में बसे भदोही के गोपीगंज स्थित तिलेस्वर नाथ मंदिर मेंयह तथ्य जरा धुंधला पड़ने लगता है। क्योकि यहाँ भगवान शिव का प्रतीक शिवलिंग साल में एक नहीं दो नहीं बल्कि तीन बार अपना रंग बदलता है। इस बात पर विश्वाश तो नहीं होता लेकिन जब आंखों से देखा तो मानना पड़ा। वह यहां हर साल दर्शन-पूजन को आते है खासकर सावन में जलाभिषेक करना नहीं भूलते। 




-सुरेश गांधी-

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