बलिया में पुलिसिया व्यवस्था पर उठता सवाल
संतोष कुमार,बलिया,बेगूसराय।बलिया बाज़ार का नाम सुनते ही लोगों का रूह काँप जाता है,भीड़ और जाम की वजह से आप अपने गन्तव्य पर समय से नहीं पहुंच सकते हैं इसकी तो गारन्टी है।अगर ट्रेन पकड़ना है तो बलिया निवासी को दस मिनट के रास्ते को पार करने में रिक्शा से पैंतीस मिनट लगना तय है अगर जाम ने अपना काम सही से कर दिया तो आपकी ट्रेन तो छूट ही जायेगी।इस गर्मी में अगर आप पैदल या मोटरसाइकिल से है तो जाम की वजह से आपकी ऐसी की तैसी हो जायेगी,क्यूंकि बलिया थाना को अतिक्रमणकारियों ने खुली चुनौती दे रखी है और बलिया पुलिस उस चुनौती को निष्क्रिय बन देख रही है बेचारगी के साथ।मुख्य रूप से जाम दो जगहों पर लगती है,एक स्टेशन चौक,दूसरा मेन बाज़ार रोड बलिया हाई स्कूल के पास।हाई स्कूल के पास तो इतनी बुरी स्थिति है कि स्कूली बच्चे को जाम की वजह से अक्सर गहरी चोट लग जाया करती है और उनका साइकल टूट जाया करती है,और तो और जीवन और मौत के बीच जूझ रहे मरीजों के एम्बुलेंस को भी इस जाम का क़हर झेलना पड़ता है,अगर किसी ने कह दिया कि ठेला थोड़ा साइड कर लो तो हो गया बवाल,अतिक्रमणकारियों के द्वारा गाली-गलौज कर ज़लील होना तय है उस सजन्न का।बलिया थाना की बेवसी देखते ही बनती है अतिक्रमणकारियों के सामने,ऐसी पुलसिया व्यवस्था को किस नाम से नवाजें समझ से पड़े है जनाब।
माँ भगवती पूजन के बाद कुमारी पूजन,भोजन का महत्व
बेगूसराय संवादाता अरुण कुमार का असम से रिपोर्टिंग। माँ कामाख्या,दस महाविद्या, कोटिलिंग, भूतनाथ, उमानंदादि के महात्मय का वर्णन पूर्व में कर ही चुका हूँ,परन्तु इसके आगे कुमारी पूजन का भी अपना अलग महत्व है,जैसा की अपने यहाँ भी नवरात्रि पूजा,आश्विन या चैत माह के शुक्ल प्रतिपदा से कलश स्थापन कर दुर्गा पूजनोत्सव के रूप में मनाया जाता है उसमे भी कुमारी पूजा हवन के बाद तो होता ही है।परन्तु दोनों जगहों के पूजा में थोडा अन्तर है।अपने यहाँ भी कुमारी कन्याओं को साम्मान से निमंत्रण देकर बड़े ही आदर के साथ घर बुलाते हैं और विधान पूर्वक पूजन हाथ पैर धो कर आसन प्रदान कर,चुंदरी में पैसा,हल्दी,दूर्वा,अक्षतादि दे कर सुहागिन स्त्री कुंकुम लगाकर,खीर,पकवान,मिठाई और फल आदि खिलाती हैं और फिर चरण स्पर्स करते हुए आशीर्वाद लेते हैं तत्पश्चात अपने अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणादि देकर विदाई करते हैं,ठीक इसी तरह कुमारी पूजन वहाँ भी होता है,फर्क सिर्फ इतना होता है कि वहाँ के कन्याओं की पूजा नव पञ्च वस्त्र एवं श्रृंगार सामग्रियों के साथ साथ सोना चाँदी से बनी ज्यादा नहीं तो कम से कम एक जेवर (गहना)देना अनिवार्य होता है। पूजन में भी भिन्नता है,वहाँ पुजारी,पंडाओं के द्वारा सविध कुमारी कन्याओं को माँ कामाख्या स्वरूपा मान कर पूजा जाता है। बाकी सभी क्रियाओं में समानता रहती है।
उमानन्दा पूजन का अपना महत्व
बेगूसराय संवादाता अरूण कुमार का आसाम से रिपोर्टिंग, कहते हैं माँ कामाख्या के दरबार में जो भी माथा टेकते हैं उन्हें बाबा भूतनाथऔर पूरे कामाख्या, कामरूप में भैरव रूप में विराजमान उमानन्दा महादेव के दर्शन और पुजन के बीना माँ कामाख्या का पुजन और दर्शन अधुरा माना गया है।भूतनाथ महादेव श्मसान में स्थित हैं।यहाँ का दृश्य एकदम शान्त और दिल को शकुन देनेवाला है,यहाँ आने पर चित्त स्वयं निर्विकार हो जाता है।यहाँ के श्मसान में सैकड़ों शव नित्य जलाए जाते हैं।यहाँ के दीवारों पर ऐसी ऐसी बातें लिखे हूए हैं कि मनुष्य न चाहते हूए भी कुछ ही समय के लिए परन्तु निर्गुण भाव में स्वत: आ जाता है।अब बात रही उमानन्दा महादेव की तो वो तो सम्पूर्ण कामाख्या के भैरव रूप मे एक टापू पर विराजमान हैं,वहाँ जाने के लिए स्टीमर के जरिए जाना सम्भव है।बहुत से सन्त महात्मा और सामान्य जन मानष भी वहाँ जाते ही रहते हैं ।वहाँ के स्थानीय लोगों का कहना है की माता के दरबार में दर्शन,पुजन के बाद जो भी बाबा उमानन्दा के दरबार आकर जो मांगता है उसकी कामना अवश्य हू पूर्ण होती हैं।यहाँ रात्रि में बाहरी आदमी कोई भी नहीं रह सकता,इसीलिए संध्या के 5 बजे के बाद एक अन्तिम स्टीमर खुलती है और वहाँ रूके व्यक्तियों ढूंढ कर इस पार ले आता है।कभी कभी ब्रह्मपुत्रा में पानी बढने के कारण स्टीमर उमानन्दा महादेव नहीं भी जाती है तो लोग इसपार से ही मानस पुजा करते हूए अपने गन्तव्य के लिए निकल पड़ते हैं।



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