यूपी में ताबड़तोड हादसे हो रहे है। बुलंदशहर में गैंगरेप विपक्षियों की साजिश है। साजिश के तहत ही अखिलेश सरकार को बदनाम करने के लिए बुलंदशहर में गैंगरेप किया गया है। सत्ता में आने वाले कुकर्म तो नहीं कर रहे हैं। यह हम नहीं बल्कि सत्ता के कबीना मंत्री आजम खां कह रहे है? पहली जनवरी 2016 को हाथरस के चंद्रप्रभा में स्कूल जा रही 11वीं की छात्रा का अपहरण कर गैंगरेप किया गया और हत्या की गयी। 9 नवम्बर 2015 मेरठ में एक दलित किशोरी का गैंगरेप कर हत्या कर दी गयी। 4 अक्टूबर 2015 को मैनपुरी में दलित किशोरी की गैंगरेप कर हत्या कर दी गयी। यह तो एकबानगीभर है। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2014 में सबसे ज्यादा 762 गैंगरेप हुए थे, जबकि बलातकार के 3467 केस सामने आए थे। क्या आजम खां बतायेंगे कि इन सभी घटनाओं में किसकी साजिश थी। अगर साजिश थी तो साढ़े चार साल में उन साजिशकर्ताओं को बेनकाब क्यों नहीं किया गया। अगर नही ंतो फिर सवाल यही है कि क्या यूपी में सियासत के लिए गैंगरेप होता है
बुलंदशहर में गैंगरेप विपक्ष की साजिश है। अखिलेश सरकार को बदनाम करने के लिए कोई कुकर्म तो नहीं कर रहा? कुछ भी हो सकता है। यह बाते यूपी सरकार में मंत्री आजम खान ने कहीं। उनके इस बयान के बाद पीड़िता के पिता ने पूछा- आपकी बेटी के साथ होता तो? आजम खां के इस बयान के बाद महिलाएं ही नहीं आमजनमानस का भी खून खौल उठा। राजनीतिक गलियारों में भूचाल आ गया। यूपी में 48 घंटे में तीन जगह गैंगरेप होने के सवाल पर आजम खान के इस बचखाने बयान से विवाद खड़ा हो गया है। जबकि इस मामले में दोस्तपुर गांव के लोगों का कहना है कि अगर पुलिस गंभीर होती तो यह घटना नहीं होती। गांववालों की मानें तो 10-12 दिन पहले भी हाईवे पर खेतों में कुछ अज्ञात लोग एक महिला के साथ जबरदस्ती करते देखे गए। मतलब साफ है यह वाकया पुरी तरह प्रशासनिक व पुलिसिया लापरवाही है। हो जो भी लेकिन आजम खां ने जो बयान दिया है उससे सवाल उठना लाजिमी है। सवाल यही है कि क्या यूपी में राजनीति के लिए बलातकार होते है? क्या गैंगरेप को साजिश बताने में धुल जायेंगे अखिलेश सरकार पर लगा दाग? क्या दुसरे राज्य में वारदातों को गिनाकर अपना बचाव कर रही है अखिलेश सरकार? क्या बुलंदशहर की घटना को लेकर यूपी में सिर्फ और सियासत हो रही है? जबकि बुलंदशहर के ग्रामीणों की मानें तो पूर्व में घटनास्थल पर मिली एक मोबाइल फोन और उन युवकों का कपड़ा पुलिस को सौंपा गया था। अगर पुलिस मोबाइल फोन कॉल की डिटेल खंगाल कर कुछ कार्रवाई की होती तो शायद 29 जुलाई की रात हाईवे पर हुए हादसे को टाला जा सकता था।
ग्रामीणों ने बताया कि लूट जैसी घटनाएं इस हाईवे पर नई बात नहीं है। इस सुनसान हाईवे पर रात में स्ट्रीट लाइट भी नहीं जलती। पुलिस के कार्रवाई न करने के कारण ज्यादातर मामलों में पीड़ित बिना शिकायत दर्ज कराए ही चुप बैठ जाता है। दो-तीन महीने में इस हाईवे पर लूट की बड़ी घटना होने की बात सुनने को मिल ही जाती है। हो जो भी इस बयान से पूरा यूपी मर्माहत है। हालांकि इस तरह के बयान आजम ही नहीं सपा सुप्रिमों मुलायम सिंह यादव के साथ अखिलेश भी महिला बलातकार की बढ़ती घटनाओं के बाबत पूछे गए एक सवाल में कहा, आपके साथ नहीं हुआ है न, होगा तो देखेंगे। हाइवे पर लूट बाद मां बेटी संग गैंगरेप प्रकरण में फरार अभियुक्त अभी तक पुलिस के हाथ नहीं लग सके है। लगे भी कैसे जब उसकी एवं सत्ता के नेताओं की संलिप्तता सामने आने लगी है। शायद यही वजह भी है कि आरोपियों को बचााने के लिए पुलिस अपराधियों की धरपकड़ के बजाय सारी इनर्जी उन्हें बचाने में ही खपा रही है है। इसकी बडी वजह यह है कि हैवानियत के राजफाश में पुलिस अफसरों के खुद के बयानों में विरोधाभास है। डीजीपी ने पकड़े गए तीन दरिंदों की पीड़ित परिवार द्वारा पहचान करने का दावा किया था। उनके जाने के बाद पुलिस अफसरों के विकेट गिरे और पुलिस की थ्योरी ही बदल गई। डीजीपी के बताए गए तीन नामों में से दो नाम निकालकर दो अन्य नाम शामिल कर दिए गए। ऐसे में डीजीपी सच हैं या बुलंदशहर पुलिस झूठ बोल रही है। इसका खुलासा सीबीआइ जांच बगैर संभव ही नहीं। फिरहाल पुलिस ने घटना का जैसे-तैसे खुलासा करने का दावा करते हुए तीन आरोपी शाबेज, जबर सिंह और रईस को जेल भेज दिया। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है कि जब डीजीपी जावीद अहमद व प्रमुख सचिव गृह देवाशीष पंडा ने प्रेसवार्ता में कहा था कि पकड़े गए तीन बदमाशों रईस निवासी सूतारी बुलंदशहर, नरेश उर्फ ठाकुर पुत्र रूपचंद निवासी भटिंडा व बबलू पुत्र रूपचंद निवासी फरीदाबाद की पीड़ित परिवार ने शिनाख्त कर ली है। तो डीजीपी के जाने के बाद जिले के एसएसपी वैभव कृष्ण, एसपी सिटी राममोहन सिंह व सीओ सिटी हिमांशु गौरव को सस्पेंड कर दिया गया। इसके बाद पुलिस ने नरेश व बबलू का नाम निकालकर उनकी जगह पर शाबेज व जबर सिंह का चालान कर दिया है। वह भी मीडिया के समक्ष प्रस्तुत किए बगैर। वैसे भी जब डीजीपी ने मीडिया के सामने तीन आरोपियों को पीड़ित परिवार के पहचाने जाने का दावा किया था, उनमें से पुलिस ने उक्त दो बदमाशों के नाम क्यों निकाल दिए? दो नए नाम डीजीपी के जाने से महज चार घंटे के भीतर कहां से आए। यह ऐसा सवाल है जो बुलंदशहरवासियों एवं पीड़ितों के गले के नीचे नहीं उतर रहा। सच तो यह है कि इस दरिंदगी के प्रकरण में पुलिस कार्रवाई के बजाय डैमेज कंट्रोल में ही लगी है।
हो जो भी लेकिन इस हृदयविदारक वारदात के ठीक 24 घंटे बाद शिकोहाबाद सहित तीन अन्य इलाकों में हुई गैंगरेप की वारदात से साबित हो गया है कि अब यूपी में गांव, गली से लेकर राजपथ तक सुरक्षित नहीं रह गए हैं। महिलाओं को आबरू गंवाने के खौफ के साथ सफर करना पड़ रहा है। आए दिन सड़क पर लूट और छेड़छाड़ की घटनाएं सामने आ रही हैं लेकिन पुलिस अंकुश नहीं लगा पा रही है। अभी उन्नाव के फतेहपुर चैरासी थाना क्षेत्र के गांव नरीगाड़ा अब्दुल्लापुर में एक दबंग ने महिला को घर में घुसकर छेड़ने की कोशिश की और जब उसके बेटे ने प्रतिरोध किया तो वापस लौटकर साथ लाए केरोसिन को किशोर के ऊपर छिड़क कर आग लगा दी। यह दुस्साहस इसलिए बढ़ रहा है क्योंकि पुलिस की हनक समाप्त हो गई है। दरअसल, पुलिस भी कहीं पर मुस्तैदी से ड्यूटी की बजाय वसूली में ही ज्यादा व्यस्त दिखती है। पुलिस की इस कार्रवाई से नाखुश पीड़ित परिवार का कहना है कि अगर न्याय नहीं मिला तो जहर खाकर जान देंगे। हालांकि यूपी पुलिस की लापरवाहियों व कार्यप्रणाली से दुखी गृह मंत्रालय ने यूपी पुलिस से पूरे घटनाक्रम व कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है। और अब भाजपा आगे आकर खुद सीबीआइ जांच कराने की मांग कर रही है।
पुलिस की धमकी से भयभीत ग्रामीणों की मानें तो बुलंदशहर पुलिस अगर पहले चेत जाती तो शायद शुक्रवार रात हुई गैंगरेप की वारदात न होती। दरअसल कोतवाली देहात इलाके में पहले भी एक्सेल फेंककर लूटपाट की दो वारदात हुईं थीं, लेकिन तब पुलिस ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। सख्त कार्रवाई तो दूर लूट की वारदात छिनैती व चोरी की धाराएं लगाकर निपटा दी गईं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक धाराओं के इस खेल में तत्कालीन एसएसपी बुलंदशहर की अहम भूमिका थी। 7 और 12 मई को कोतवाली देहात क्षेत्र में हुई वारदात का भी वही तरीका था जो शुक्रवार रात हुई वारदात में था। एक्सल गैंग ने रास्ते में एक्सल फेंककर गाड़ियां रुकवाईं और लूटपाट की। जब कोतवाली देहात पुलिस और जिले के कप्तान तक खबर पहुंची तो पुलिस उन्हें दबाने में जुट गई। 12 मई वाली वारदात को देहात पुलिस ने चोरी की धारा (379) व सात मई की वारदात को छिनैती (आईपीसी 356) में दर्ज किया। अगर ये दोनों वारदात सही धाराओं में दर्ज कर लुटेरों की तलाश की गई होती तो शायद वे सलाखों के पीछे होते। उस वक्त आईपीएस पीयूष श्रीवास्तव बुलंदशहर के एसएसपी थे। वैभव कृष्ण ने 18 मई को जिले की कमान संभाली थी। शुक्रवार को हुई वारदात के बाद उनकी जानकारी में ये दोनों मामले सामने आए। सूत्रों के मुताबिक जब हल्की धाराओं में मुकदमा दर्ज करने के बारे में संबंधित अफसरों से पूछा गया तो उन्होंने बताया, ऐसा तत्कालीन एसएसपी व अन्य अधिकारियों के कहने पर किया गया। अब डीजीपी मुख्यालय इन तथ्यों की पड़ताल करा रहा है। पड़ताल पहले हौसला बुलंद बदमाशों ने एक और वारदात को अंजाम दे दी। रविवार रात बदमाशों ने इसी हाई वे पर हाथरस में रोडवेज बस लूट ली। रविवार रात दिल्ली से राठ जा रही जालौन डिपो की बस में बदमाश यात्री बनकर बैठे थे। सिकंदराराऊ के पास उन्होंने लूटपाट शुरू कर दी। चलती बस में 20 मिनट लूटपाट के बाद बदमाश फरार हो गए। पुलिस ने डकैती के बजाए केवल चार बदमाशों के खिलाफ लूट की रिपोर्ट दर्ज की है।
पुलिस की इस तरह की लापरवाहियों होना लाजिमी है क्योंकि जिस सूबे के सत्तारूढ़ पार्टी के शीर्ष नेता ही बलात्कार और छेड़खानी की वारदात को यह कहकर अपराधियों का हौसलाफजाई करते हो कि ‘लड़कों से कभी-कभी गलती हो जाती है’। यही वजह भी है कि दिन ढलने के दो घंटे बाद कुछ लोग एक परिवार को अगवा करके पुरुष परिवारीजनों के सामने ही मां-बेटी के साथ दुष्कर्म करते हैं, तो सारी पुलिसिया कदमताल के बावजूद यह अंदेशा लगा रहता है कि कहीं देर-सबेर इसे भी लड़कों की छोटी-मोटी गलती बताकर नजरअंदाज न कर दिया जाए! ऐसे में नेताओं से उम्मीद की आश छोड़ अब जनता को ही कुछ न कुछ करना होगा। वक्त आ गया है कि देश के हर शहर, हर गांव की हर गली में एक बार फिर निर्भया कांड विरोधी आंदोलन जैसे ही, बल्कि उससे कहीं ज्यादा लंबे और गहरे एक और आंदोलन की रचना रची जाए। मोटी खाल वाले राजनेताओं और कफनखसोटी पर उतारू पुलिस अफसरों को रास्ते पर लाने का इसके सिवा और कोई तरीका नहीं है।
(सुरेश गांधी)

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