राजगीर, 27 अगस्त, राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने आज कहा कि विश्वविद्यालयों को अभिव्यक्ति की आजादी का केन्द्र होना चाहिए तथा इनमें असहिष्णुता, पूर्वाग्रह और नफरत के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए। श्री मुखर्जी ने यहां नालंदा विश्वविद्यालय के प्रथम दीक्षांत समारोह में कहा कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय उच्च स्तरीय वाद-विवाद आैर चर्चाओं के लिए विख्यात रहा है। यह महज एक भौगोलिक संरचना नहीं था बल्कि विचारों एवं संस्कृति काे प्रतिबिंबित करता है।
नालंदा मित्रता, सहयोग, वाद-विवाद, चर्चा और बहस का संदेश देता है। वाद-विवाद एवं चर्चा हमारे व्यवहार और जीवन का हिस्सा है। राष्ट्रपति ने कहा कि विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षा संस्थान वाद-विवाद, चर्चा और विचाराें के आदान-प्रदान के सर्वश्रेष्ठ मंच हैं। उन्होंने कहा “बदलावों को आत्मसात करने के लिए हमें अपनी खिड़कियां खुली रखनी चाहिए लेकिन हवा के साथ बहना भी नहीं चाहिए। हमें पूरी दुनिया से हवाओं को अपनी ओर आने देना चाहिए और उनसे समृद्धि हासिल करनी चाहिए।” श्री मुखर्जी ने आपसी सहमति के लिए शैक्षणिक परिसरों में वाद-विवाद और विचार-विमर्श पर जोर देते हुए कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में यदि विचारों का अादान-प्रदान नहीं होगा तो और कहां होगा । उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं से अपने दृष्टिकोण और विचारों से बाहर निकलकर वाद-विवाद और विचार-विमर्श में हिस्सा लेने की सलाह दी । राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत विश्व को ज्ञान की रोशनी देता आ रहा है। यहां तक्षशिला, नालंदा , विक्रमशिला और कई अन्य विश्वविद्यालय थे जहां उच्च शिक्षा के लिए देश-विदेश से लोग आते थे। उन्होंने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय से कई विद्वान और बौद्ध भिक्षु चीन गये थें लेकिन यह सिर्फ एकतरफा नहीं था । चीन से भी कई विद्वान यहां आयें
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