आलेख : घर डूबा, शहर डूबा, डूब गए घाट व भगवान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


शनिवार, 17 सितंबर 2016

आलेख : घर डूबा, शहर डूबा, डूब गए घाट व भगवान

बारिश भले ही थम गयी है लेकिन गंगा, वरुणा, सोन समेत यूपी-बिहार की तकरीबन हर नदियां रौद्र रूप में आ चुकी है। कहीं घाटों पर बने मंदिर डूब चुके हैं तो कहीं शहर से लेकर गांव तक के तटवर्ती इलाके पानी में समा गए है। डर है कि गंगा का पानी कहीं काशी-प्रयाग समेत अन्य शहरों में घुसा तो लाखों जिंदगिया तबाह होते देर नहीं लगेंगी। क्योंकि बांधों का पानी छोड़े जाने से जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। हाल यह है कि तटवर्ती इलाकों में जमीन का कटाव शुरु हो गया है और बाढ़ का खतरा पैदा हो चुका है। भयावह बाढ़ से लोगों की सांसे अटकी पड़ी है 

flood-in-kashi
धर्म एवं आस्था की नगरी काशी-प्रयाग से लेकर गंगोत्री तक गंगा समेत इससे जुड़ी नदियां उफान पर है। खतरे के निशान को पार करने के बाद भी फिलहाल राहत देने के मूड में नही दिख रही है। वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, गया, पटना आदि शहरों में बाढ़ में फंसे लोगों को निकालने के लिए गलियों में बोट चलाई जा रही है। मोक्षदायिनी मणकर्णिका घाट व हरिश्चन्द्र घाट चिताएं छतों व गलियों में जलाई जा रही है तो दशावश्वमेघ घाट पर नृत्य होने वाली गंगा आरती घरों की छतों पर हो रही है। कहा जा रहा है काशी इससे पहले शायद ही कभी इतना बेबस रहा हो। आलम यह है कि गंगा में आयी इस उफान से काशी में गंगा तट पर बसे इलाकों में चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हरिश्चंद्र घाट पर 24 घंटों जलने वाली चिताएं अब ठंडी पड़ चुकी है। जबकि मणकर्णिका घाट पर शवदाह स्थल डूब जाने से अब घुड़दौड़ स्थल की छत पर शवदाह हो रहा है, वह भी चैगुना दाम देकर 15-20 घंटे के बाद लाशों को जलाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। मणिकर्णिका व हरिश्चंद्र घाट पर प्रतिदिन करीब 150-200 शव आ रहे हैं। वजह यह कि जगह कम होने से एक बार में कम ही चिताएं लग पा रही हैं। मौके का लाभ उठाते हुए चिता की लकडियों के दाम बढ़ गए हैं। अस्सी, तुलसी, सिंधिया घाट भी पूरी तरह से जलमग्न हो चुका है। अस्सी और उसके आस-पास के इलाकों में तो गंगा का पानी सड़कों पर बह रहा है। हालांकि शनिवार को गंगा में बढ़ाव की रफ्तार में कमी तो दर्ज की गई है लेकिन जलस्तर बढ़ने से लोगों की सांस अटकी हुई है। गंगा का रौद्र रूप और उसके तेजी से तटीय इलाकों में प्रवेश करने से लोगो में दहशत व्याप्त है। शीतला घाट से गंगा सब्जी मंडी दशाश्वमेध मछली मार्केट के मोड़ के आगे बढ़ने लगी है। बाढ़ नियन्त्रण कक्ष के अनुसार गंगा का जलस्तर 71.74 मीटर रिकार्ड किया गया।

केन्द्रीय जल आयोग के मुताबिक उत्तराखंड और मध्य प्रदेश की सहायक नदियों से बहुत ज्यादा पानी गंगा में पहुंच रहा है। इससे अपस्ट्रीम के इलाहाबाद, मिर्जापुर में बढ़ाव थमने का नाम नहीं ले रहा। यदि बढ़ाव नहीं थमा तो बनारस में गंगा अगले कुछ दिनों में इस दशक के उच्चतम बाढ़ बिन्दु 72.25 मीटर के पार भी जा सकती है जो सन 2013 में रिकार्ड हुआ था। गंगा में अब बढ़ाव की मेन वजह है मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में पिछले एक पखवारे से हो रही बरसात व बांधों का पानी छोड़ा जाना है। उत्तराखंड में जहां बांधों का प्रेशर कम करने के लिए गंगा में पानी छोड़ने का सिलसिला जारी है वहीं मध्य प्रदेश की बेतवा और चंबल जैसी गंगा की सहायक नदियां बाढ़ को और बढ़ा रही हैं। इसके चलते ही बनारस में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। गंगा के बढ़ाव के चलते ही वरुणा भी उफान पर है और इन दोनों की नदियों के बाढ़ क्षेत्र में अपना आशियाना बना चुके लोगों को अब घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ रहा है। फिलहाल गंगा को खतरे के पार देख प्रशासन अलर्ट हो गया है। डीएम ने तत्काल सभी कर्मचारियों की छुट्टियों पर रोक लगाते हुए सभी विभागों को राहत एवं बचाव कार्य में तेजी से जुट जाने का आदेश दिया है। छोटे-बड़े सभी नावों पर यात्रियों को नौकायन कराये जाने पर प्रशासन ने पूरी तरह से रोक लगा दी है। लेकिन जिन इलाकों में जलस्तर कम हो रहा है वहां बीमारी पांव पसार रही है। बाढ़ से घिरे इलाकों के हजारों लोगों को बुखार, उल्टी-दस्त और चर्म रोग ने अपनी जद में ले लिया है। पानी में घर-बार डूबने से रिश्तेदार-नातेदार, शरणार्थी कैम्पों पर डेरा डाले लोगों को दोबारा गृहस्थी सजने से पहले बीमारियों ने घर कर लिया है। उल्टी-दस्त, बुखार, र्चमरोग, सिरदर्द, चक्कर, इंफेक्शन से पीड़ितों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। इस बीमारी ने पशुओं को भी गिरफ्त में लिया है। 

गंगा के साथ ही घाघरा ने भी उग्र रूप धर लिया है। इससे सबसे अधिक प्रभाव बलिया में पड़ा है। बलिया-मांझी-छपरा एनएच-31 पर चांददियर गांव के सामने सड़क पर पानी आने से वाहनों का संचालन रोक दिया गया है। बाढ़ प्रभावित गांवों में राहत व बचाव के लिये एनडीआरएफ की टीम बुलायी गयी है। गाजीपुर-मिर्जापुर में गंगा व सोनभद्र में सोन नदी ने हजारों को बेघर कर दिया है। सोनभद्र में रिहन्द और ओबरा बांध का जलस्तर स्थिर रहा पर बांध की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खोले गए फाटकों से चोपन में सोन नदी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है। तटवर्ती इलाकों में पानी घुस गया है। घोरावल में बेलन नदी के उफान को देखते हुए रिठ्ठी बांध के 11 में से नौ फाटक खोले गए हैं। बावजूद इसके बेलन नदी का पानी घोरावल तहसील के कई दक्षिणवर्ती गांवों में घुसा हुआ है। संपर्क मार्ग पर पानी बहने के कारण इन गांवों का घोरावल से सीधे संपर्क टूट गया है। प्रसिद्व शिवद्वार मंदिर वाले मार्ग पर भी पानी के कारण आवागमन बंद है। जलस्तर में घटाव के साथ कटान तेज हो गई है। जबकि वरुणा अब लोगों को डरा रही है। नए इलाके तेजी से बाढ़ की चपेट में आ रहे हैं। वहीं प्रभावित इलाकों में डीएम राहत के भरपूर इंतजाम करने-कराने का निर्देश दे रहे हैं पर हकीकत यह है कि परेशान लोगों तक राहत इंतजाम समुचित ढंग से नहीं पहुंच पा रहे हैं। नाव हो या भोजन, लोगों को घंटो इंतजाम करना पड़ रहा है। बाढ़ से प्रभावित जहां दो और तीन मंजिला मकान हैं, वहां के लोगों ने ऊपरी मंजिल या छतों पर शरण ले रखी है। वे सुरक्षित तो हैं पर भूख-प्यास से व्याकुल। 200 घरों पर एक नाव की व्यवस्था है जिससे लोगों को जरूरी सामान खरीदने के लिए भी घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। नक्खीघाट, कोनिया, बघवानाला, पुलकोहना, पुराना पुल, सरैयां में सैकड़ों लोग फंसे हुए हैं। समय पर राहत नहीं रूबाढ़ रात शिविरों में लोगों को समय से खाना भी नहीं पहुंच रहा है। दोपहर का भोजन शाम चार बजे तक और रात का खाना 11 बजे तक मिल पा रहा है। शिविरों में रहने वाले लोगों को काफी दिक्कत उठानी पड़ रही है। हुकुलगंज में बाढ़ में फंसे लोगों को दोहरी मार ङोलनी पड़ रही है। पानी में जानवरों के अपशिष्ट तैर रहे हैं, जिससे दुर्गंध उठ रही है। करीब 50 घरों में बाढ़ पीड़ितों का रहना मुश्किल हो रहा है। छतों पर शरण लिए लोग बदबू से बेहाल हैं।




(सुरेश गांधी)

कोई टिप्पणी नहीं: