नए राजनीतिक विकल्प के निर्माण का माले महासचिव ने किया आह्वान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 19 फ़रवरी 2017

नए राजनीतिक विकल्प के निर्माण का माले महासचिव ने किया आह्वान

  • अन्याय का राज मिटाने, जनता के न्याय व अधिकार आंदोलन को आगे बढ़ाने और बिहार में नए राजनीतिक विकल्प के निर्माण का माले महासचिव ने किया आह्वान. अधिकार रैली में गरीबों का हुआ ऐतिहासिक जुटान, नशे में चूरे नीतीश को लाएगी होश में. नोटबंदी ने जनता को परेशानी, कामबंदी और बदहाली की स्थिति में ढकेला. अधिकार रैली को जेएनयू के गायब छात्र नजीब की मां फातिमा नफीस, डीका की मां कुसुमी देवी सहित ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन सहित विभिन्न आंदोलनों से जुड़े प्रतिनिधियों ने रैली को किया संबोधित. रैली को सीपीआई व सीपीआईएम के राज्य सचिव ने किया संबोधित किया.




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पटना: 19 फरवरी 2017, ‘देश बड़े अजीबोगरीब दौर से गुजर रहा है, नजीब जेएनयू में पढ़ने पहुंचता है, वहां से उसे गायब कर दिया जाता है, बिहार में महिला सशक्तिकरण का दावा करने वाले नीतीश कुमार के शासन में डीका कुमारी की हत्या होती है और वे कुछ नहीं बोलते। बिहार की जनता ने नीतीश को जनादेश इसलिए नहीं दिया था कि यहां दलितों पर अन्याय हो, उन्हें जमीन देने के बजाए भूमाफियाओं को उनकी जमीन को हड़पने और उनकी हत्या करने की छूट दे दी जाए। नीतीश को कुर्सी इसलिए नहीं दी गई थी कि उनकी पुलिस शराबबंदी के नाम पर राजू हांसदा और विनोद उरांव की हत्या कर दे। बिहार में इस समय अगर कोई नशे में चूर है, तो वे नीतीश कुमार हैं। वे सत्ता के नशे में चूर हैं। दिल्ली और पटना की सरकारों के लूट और अत्याचार के खिलाफ जनता के सच और उसके अधिकारों और इंसाफ की आवाज को संगठित रूप से उठाने के मकसद से ही भाकपा-माले ने अधिकार रैली का आयोजन किया है। देश में जनता की एकता और संघर्ष की जो जरूरत है, यह रैली उसी को पूरा कर रही है।’’ आज वेटनरी काॅलेज के रामनरेश राम मंच पर आयोजित भाकपा-माले की अधिकार रैली को संबोधित करते हुए भाकपा-माले के राष्ट्रीय महासचिव का. दीपंकर ने यह कहा।  का. दीपंकर ने मोदी सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि जनता उम्मीद कर रही थी कि मोदी काला धन वापस लाएंगे, लेकिन उन्होंने नोटबंदी करके उसे परेशानी, कामबंदी और बदहाली की स्थिति में धकेल दिया। बिहार के जो मजदूर रोजी-रोटी गंवा कर वापस आए, ‘बिहारी अस्मिता’ की बात करने वाले नीतीश कुमार ने उनके लिए रोजगार की व्यवस्था या राहत प्रदान करने के बजाए नोटबंदी का समर्थन करने लगे। 

का. दीपंकर ने सवाल उठाया कि क्या रोटी, चावल-दाल, खेती डिजिटल हो जाएगा। सवा सौ करोड़ आबादी की भूख का सवाल है और मोदी खेती को तबाह करने में लगे हुए हैं। साथ ही छोटे दूकानदार और दिहाड़ी वाले भी तबाह किए जा रहे हैं। दरअसल मोदी सरकार अडानी, अंबानी, आरएसएस और अमेरिका के इशारे पर काम करने वाली सरकार है। जहां चुनाव हो रहे हैं, वहां जनता उनको वोट के जरिए जवाब दे रही है, बिहार में हम उन्हें आंदोलन के जरिए जवाब देंगे। बिहार में शिक्षा-रोजगार के मुद्दे पर बोलते हुए का. दीपंकर ने बीएसएससी घोटाला और टाॅपर्स घोटाला को बिहार का व्यापम बताते हुए चुटकी ली कि लगता है कि नीतीश कुमार शिवराज चैहान से ट्रेनिंग लेकर आए हैं। मध्यप्रदेश की तरह ही बिहार में एसआईटी के जरिए जांच के नाम पर पूरे मामले की लिपापोती की कोशिश की जा रही है।  का. दीपंकर ने कहा कि बिहार में आर्थिक के साथ-साथ राजनैतिक तौर पर भी जनता की पीठ में छूरा भोंका गया है। गुजरात में उना में दलितों के दमन के बाद उभरे आंदोलन में जब दलित-मुस्लिम भाई-भाई का नारा उठा, तब वहां की मुख्यमंत्री को जाना पड़ा था। लेकिन बिहार में नीतीश कुमार और केंद्र में मोदी को अगर लगता है कि लगातार अन्याय और लोकतंात्रिक अधिकारों के हनन के खिलाफ कुछ नहीं होगा, तो वे भ्रम में हैं। भाकपा-माले को विधानसभा में विपक्ष खड़ा करने का जनादेश मिला था, हम विधानसभा के बाहर सड़कों, खेतों-खलिहानों, कैंपसों में जमीन, इज्जत, मर्यादा, सम्मान, हक-हुकूक, शिक्षा आदि के लिए जो आंदोलन चल रहे हैं, उसे मजबूत बनाएंगे। बिहार के अंदर लूट और झूठ की राजनीति के खिलाफ सच्चाई, ईमानदारी और जनता के अधिकारों के आधार पर आंदोलन तेज किया जाएगा। यही उन शहीदों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी, जो न्याय और अधिकार की जंग में शहीद हुए हैं, नजीब की मां और डीका की मां को भी इसी रास्ते से न्याय मिलेगा। 

अधिकार रैली के मंच पर दमन और अन्याय के शिकार लोगों के परिजन भी मौजूद थे। जेएनयू से गायब कर दिए गए छात्र नजीब की मां फातिमा नफीस, हाजीपुर के अंबेडकर छात्रावास में बलात्कार के बाद मार दी गई छात्रा डीका की मां कुसुमी देवी ने रैली को संबोधित भी किया। इनके अलावा अररिया, सहरसा, दरभंगा, बेगूसराय, सीवान में सामंती-अपराधी ताकतों के हमलों में शहीद माले नेताओं और आम दलित-मेहतनकशों के परिजन, टाडा के तहत जेल में प्रशासनिक उपेक्षा के कारण शहीद कामरेडों के परिवार, बथानी टोला जनसंहार में अपने परिजनों को खो चुके न्याय की लंबी लड़ाई लड़ने वाले का. नईमुद्दीन अंसारी, रोहतास में शराब माफियाओं के हमले में शहीद का. भैयाराम की पत्नी, भोजपुर के माले नेता का. सतीश यादव और का. बुधराम पासवान की पत्नियां और सीवान के शहीद माले नेता संजय चैरसिया की पत्नी भी मंच पर मौजूद थे।  

अन्याय के खिलाफ लड़ाई तेज हो, ताकि किसी दूसरी डीका की हत्या न हो: कुसुमी देवी
डीका कुमारी की मां कुसुमी देवी साधारण-सी वेशभूषा मंे थीं, पर मेहनतकशों के स्वाभिमान और न्याय हासिल करने की दृढ़ता उनके चेहरे से झलक रही थी, जो रैली में आए गरीब-गुरबों के भीतर न्याय की जंग तेज करने के इरादे को ज्यादा मजबूती प्रदान कर रहा था। उन्होंने रैली को संबोधित करते हुए कहा कि नीतीश की सरकार अनुसूचित जाति के लोगों के साथ अन्याय कर रही है। डीका के होस्टल में किसी चीज की व्यवस्था नहीं थी। वे मेहनत मजदूरी करके अपनी बेटी को पढ़ा रही थीं। लेकिन डीका की होस्टल में हत्या कर दी गई। उसके बाद मुझे चार लाख रुपये का लालच देकर चुप रहने को कहा गया। लेकिन मुझे रुपया नहीं, बल्कि न्याय चाहिए। मैं चाहती हूूं कि न्याय की लड़ाई तेज हो, ताकि फिर किसी डीका बेटी की हत्या न हो सके।

क्या गरीबों को ऊंचे ख्वाब देखने का हक नहीं?: फातिमा नफीस
जेएनयू से लापता कर दिए गए छात्र नजीब की मां फातिमा नफीस ने कहा कि नजीब एक छोटे-से परिवार और एक छोटी सी जगह से एक बड़ी यूनिवर्सिटी जेएनयू में बड़े ख्वाब लेकर पहुंचा था। अभी उसे वहां गए हुए मात्र 3 माह ही हुए थे। वहां एबीवीपी के गुंडों ने वार्डन के सामने पिटाई की, रात में भी उसकी बेरहमी से पिटाई की गई, उसके बाद से वह गायब है। आज चार माह बीत चुके हैं, पर मोदी की पुलिस उसे खोजने में नाकाम है। क्या हम गरीबों को ऊंचे ख्वाब देखने का हक नहीं है? उन्हें पूरा हक है कि वे पढ़ें और आगे बढ़ें। आज मैं इस रैली की जनता का साथ मुझे हिम्मत दे रहा है, आप सब का साथ है तो न्याय की जंग जरूर कामयाब होगी। मोदी को जवाब देना होगा, नजीब को ढूंढकर लाना होगा। 

अध्किार रैली के प्रस्ताव
  • नोटबंदी का 100 दिन - परेशानी, बदहाली के बुरे दिन’’ ने बिहार को सर्वाध्कि प्रभावित किया है. राज्य से बाहर कार्यरत लाखों बिहारी मजदूर घर लौट आए हैं और कामबंदी से परेशान हैं. किसानी चैपट हो गयी और कईयों की मौत बैंक-एटीम की कतारों में हुई. वहीं, नकद के अभाव में इलाज से लोगों को महरूम रहना पड़ा है और मजदूर-किसान परिवारों को शादी-विवाह में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ा. विशेष राज्य का दर्जा के सवाल पर अभियान चलाने वाले मुख्यमंत्राी नीतीश कुमार द्वारा नोटबंदी का समर्थन किया जाना राज्य की जनता के घाव पर नमक छिड़कने जैसा रहा है. मोदी-नीतीश के बीच बढ़ती जुगलबंदी के खिलापफ बिहार में व्यापक जनसमुदाय में भारी आक्रोश है, और लोग इसे जनादेश का अपमान समझ रहे हैं. भाकपा ;मालेद्ध की यह अध्किार रैली मांग करती है कि नोटबंदी से बदहाल किसानों के सभी कर्ज मापफ किए जायें, कारपोरेट कर्जदारों की सूची सार्वजनिक की जाए और सभी गरीबों-मजदूरों को क्षतिपूर्ति मुआवजा के बतौर 1-1 लाख रुपये दिए जायें. नोटबंदी से परेशान गांव के मजदूर-किसानों और शहरी असंगठित दैनिक मजदूरों के सवालों का केंद्रीय बजट में अनदेखी किया गया है. राज्य का बजट इन सवालों को प्राथमिकता के आधर पर हल करे और केंद्र सरकार पर इन मांगों को लेकर जोरदार दबाव बनाए. भारत की बहुतायत मेहनतकश अवाम और पिछड़े राज्य के नाते बिहार के मजदूर-किसानों की जीवन-जीविका में आए भारी संकट के समाधन को लेकर दिल्ली-पटना की सरकारों के खिलापफ अधिकार रैली जोरदार आंदोलन तेज करने का आह्वान करती है.
  • हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के भीतर अभिवंचना, आजादी और न्याय की लड़ाई लड़नेवाले रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के खिलापफ लोकप्रिय राष्ट्रीय प्रतिवाद खड़े होने के बावजूद मोदी सरकार हत्यारे कुलपति का महिमामंडन करती है और रोहित की मां और उनके परिवार को दोषारोपित करती है. इसी क्रम में संघी गिरोह द्वारा हमले के बाद जेएनयू छात्रा नजीब गायब हो जाता है, जिसका पता आज तक नहीं लग सका है. ऐसा लगता है कि पूरी सरकार-पूरा तंत्रा इस मामले को दपफनाने में लगा हुआ है. हाल ही में बिहार के हाजीपुर के अंबेदकर आवासीय विद्यालय में महादलित मुसहर परिवार की दसवीं की छात्रा डीका कुमारी की निर्मम संदेहास्पद हत्या ने बिहार को शर्मसार किया है. कैंपसों में दलितों, अकलियतों और छात्राओं की अस्मिता और सुरक्षा की बड़ी चुनौती उपस्थित की है, जिसमें संघी ताकतों से लेकर सामंती कुलक पितृसत्तात्मक ताकतें एक साथ खड़ी हैं. रोहित की मां, नजीब की मां और डीका की मां के न्याय के संघर्ष के साथ यह रैली पूरी एकजुटता जाहिर करती है.
  • बिहार में शराब को गांव-टोलों-मुहल्लों तक पहुंचाने वाले नीतीश कुमार आज काले कानून और पुलिसिया आतंक के जरिए शराबबंदी के मसीहा बने हुए हैं. राज्य के सारे जेल दलितों-गरीबों से भर गये हैं, वहीं शराब मापिफया का सत्ता संरक्षित तंत्रा ने होम डिलीवरी का राज्यव्यापी नेटवर्क खड़ा कर लिया है. शराब मापिफयाओं का यह कारोबार राजनेता व प्रशासन के संरक्षण में पफल-पफूल रहा है. लेकिन इस तंत्रा को निशाना बनाने की बजाए सरकार ने शराब के शिकार गरीबों पर हमला बोल दिया है और उनके साथ अपराधी जैसा व्यवहार कर रही है. उनके इलाज व पुनर्वास, वैकल्पिक रोजगार व गुजारा भत्ता की बजाए उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है. शराबबंदी कानून के काले प्रावधनों को वापस लेने की मंशा सरकार की नहीं है. स्कूल से निकाल देने तथा छात्रावृत्ति, साइकिल व पोशाक रोकने का भय दिखाकर स्कूली छात्रा-छात्राओं को जबरन लाइन में खड़ा करवाया गया. मानव शृंखला का ढकोसला खड़ा करने में पूरी सरकार व्यस्त रही और पूरे राज्य को ठप्प कर राजनीति चमकाई गयी. जनता के न्याय व विकास के असली मुद्दों, लोगों के जीवन की वास्तविक समस्याओं व रोज उनपर हो रहे हमलों पर पर्दा डालने के लिए नीतीश सरकार यह सब ढोंग कर रही है. यह अध्किार रैली शराब के उत्पादन और वितरण पर पूरी तरह रोक लगानेऋ प्रशासन के संरक्षण में पफल-पफूल रहे शराब मापिफयाओं के तंत्रा पर कड़ी कार्रवाई करनेऋ नशे के शिकार लोगों को प्रताड़ित किए जाने की बजाए शराबबंदी के कानून से पूरी तरह बाहर रखते हुए उनके पुनर्वास, वैकल्पिक रोजगार और गुजारा भत्ता की व्यवस्था करनेऋ शराब पीने के आरोप में जेल में बंद लोगों की अविलंब रिहाई तथा पुलिसिया पिटाई में कटिहार के मारे गए विनोद उरांव व घायल राजू हांसदा के परिजनों को उचित मुआवजा व पुलिस कार्रवाई की मुकम्मल जांच की मांग करती है.
  • समान स्कूल प्रणाली की सिपफारिशों की बात तो दूर, संपूर्ण शिक्षा तंत्रा लगातार बदहाली और अराजकता के गत्र्त में गिरते जा रही है. दलितों-गरीबों के बीच शिक्षा की भूख बढ़ी है, लेकिन सरकारी तंत्रा असंवेदनशील बना हुआ है और लोगों की आकांक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है. निजी शिक्षण संस्थानों में आरटीई कानून लागू नहीं है और न ही आरक्षण व्यवस्था. कस्तूरबा विद्यालयों, अंबेदकर आवासीय विद्यालयों और अंबेदकर कल्याण छात्रावासों की स्थिति बदतर है और कुव्यवस्था के चलते कई छात्रा-छात्राओं की मौत हाल के दिनों में हुई है. दलित-कमजोर वर्ग की छात्रावृत्ति में भारी कटौती हुई है और उनके संवैधनिक अध्किार प्रोन्नति में आरक्षण को समाप्त कर दिया गया है. रैली मांग करती है कि सभी दलितों-वंचितों और गरीबों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की गारंटी, निजी स्कूलों में आरटीई कानून और आरक्षण का पालन हो तथा दलितों-वंचितों के संविधन प्रदत्त अध्किारों की राज्य सरकार पुनबर्हाली करे. 
  • केंद्र की मोदी सरकार जहां किसानों को लाभकारी मूल्य देने और लोन मापफ करने से भाग रही है, वहीं कृषि विकास के रोड मैप की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली बिहार सरकार किसानों का धन खरीदने से मुकर रही है और बोनस देने की घोषणा से पलट गयी है. रैली मांग करती है कि किसानों के तमाम पफसलों की खरीद की अनिवार्य व्यवस्था हो तथा कृषि कार्य के लिए मुफ्रत बिजली की व्यवस्था करे.
  • महागठबंध्न सरकार द्वारा भूमि सुधर के प्रश्नों को तिलांजलि देने यहां तक कि 5 डिसमिल वास-भूमि देने के मुद्दे को ठंढे बस्ते में डाले जाने के चलते पूरे राज्य में सामंतों, दबंगों और भूमापिफयाआंे का मनोबल बढ़ा है. कोर्ट और पुलिस-प्रशासन की मिलीभगत से बिहार में दलितों-गरीबों को बड़े पैमाने पर पर्चा वाली, पुश्तैनी, हदबंदी, सिकमी, लाल कार्ड - हरा कार्ड वाली जमीन से बेदखल किया जा रहा है. बरसों से बसी बस्तियों को उजाड़ा जा रहा है और आग लगाई जा रही है. सत्ता के संरक्षण में सामंतों-दबंगों-भूमापिफयाओं और अपराधियों का समूह हत्याकांडों का सहारा ले रहा है. बेगूसराय में 5 दलितों की हत्या, सहरसा के पुरीख में दो महादलित नौजवानों की हत्या, दरभंगा के कटैया मुसहरी में जगमाया देवी की मौत, दरभंगा के ही हीरा पासवान व वकील कुंजरा की मौत सहित दर्जनों ऐसे उदारहण हैं. अररिया के रहरिया में मुसहर समुदाय की पुश्तैनी जमीन से बेदखल करने के लिए भरगामा थाना प्रभारी की उपस्थिति में भाकपा ;मालेद्ध जिला सचिव सत्यनारायण सिंह यादव और खेग्रामस के नेता कमलेश्वरी ट्टषिदेव की बर्बर हत्या और ऊना से भी बर्बर तरीके से 4 मुसहरों को खंभे से बांध्कर पिटाई अन्याय का राज स्थापित होने के खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाता है. इन दलित हत्याकांडों के प्रति नीतीश सरकार की चुप्पी और अपराध्यिों को मिल रहा खुला संरक्षण दिखलाता है कि सरकार पूरी तरह दलित-गरीब विरोध्ी हो चली है. यह रैली न्याय, भूमि अध्किार और मुकम्मल भूमि सुधर के लिए राज्य भर में चल रहे भूमि संघर्षों को और तेज करने का आह्वान  करती है. रैली देश के दूसरे हिस्से खासकर गुजरात में दलितों के भूमि अध्किार आंदोलन में आयी तेजी के प्रति एकजुटता जाहिर करती है.
  • यह रैली ठेका-मानदेय नियोजन की श्रम व जन विरोध्ी नीतियों को तत्काल वापस लेने की मांग करती है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश समान काम के लिए समान वेतन के आधर पर देश के शिक्षा-स्वास्थ्य सहित अन्य विभागों में कार्यरत आशा-ममता-आंगनबाड़ी-मध्याह्न भोजन कर्मी-टोला सेवक-विकास मित्रा-कृषि सलाहकार-डाटा आॅपरेटर-कार्यालय सहायक समेत तमाम श्रेणियों के कर्मियों को नियमित करने और पूर्ण वेतनमान का लाभ देने की मांग करती है. बिहार सरकार द्वारा गठित चैध्री कमिटी के दायरे में इन तमाम कर्मियों को लाने और इस पर त्वरित निर्णय की मांग यह रैली करती है तथा नियोजित शिक्षकों को सातवें वेतन आयोग का पूरा लाभ देने की मांग का समर्थन करती है.
  • अध्किार रैली पफर्जी मुकदमों में जेल में बंद भाकपा-माले के दरौली से विधयक काॅ. सत्यदेव राम, इनौस के राष्ट्रीय महासचिव काॅ. अमरजीत कुशवाहा, तमाम टाडाबंदियों की अविलंब रिहाई और नेताओं-आंदोलनकारियों पर से दायर सभी झूठे मुकदमे वापस लेने की मांग करती है.
  • मोदी सरकार और संघ परिवार द्वारा देश के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने और उन्माद-उत्पात की राजनीति थोपने के खिलापफ बिहार का जनादेश 2015 के साथ बिहार सरकार बड़ा विश्वासघात कर रही है. छपरा, बिहारीगंज और पीरो में बड़े पैमाने पर दंगे प्रायोजित किए गए, राज्य भर में उन्माद भड़काने की कोशिश की गयी, लेकिन सरकार तमाशबीन बनी रही और शासक पार्टियों का आधर ध््रुवीकरण और दंगा की राजनीति में समान रूप से हिस्सेदार रहा. उन्माद-उत्पात की राजनीति करने वाले दंगाई समूहों पर कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए रैली राज्य में अमन-चैन बनाए रखने की अपील करती है और जनदावेदारी, विकास और हिस्सेदारी के साझे संघर्ष को तेज करने का आह्वान करती है.
  • देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में है, संवैधनिक ढांचों पर लगातार हमले हो रहे हैं और नागरिक अध्किार व आजादी खतरे में है. देश में अघोषित आपातकाल थोप दिया गया है. आजादी, लोकतंत्रा, नागरिक अध्किार और सबसे बढ़कर देश बचाने के लिए देश में उठ रही हर आवाज के साथ मजूदर-किसानों की यह रैली पूरी एकजुटता जाहिर करती है और आजादी व लोकतंत्रा की लड़ाई की अग्रिम चैकी बिहार में ‘मोदी हटाओ-रोटी बचाओ, लोकतंत्रा बचाओ-देश बचाओ’ आंदोलन को तेज का आह्वान करती है. साथ ही नीतीश सरकार की बढ़ती तानाशाही और थोपे जा रहे पुलिस और अन्याय का राज के खिलापफ जनसंघर्षों को तेज करने का आह्वान करती है. यह रैली राज्य में जारी अन्याय का राज मिटाने और जनता के न्याय व अध्किार के आंदोलन पर आधरित बिहार में नया राजनीतिक विकल्प का निर्माण करने का आह्वान करती है.

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