बजट किसानों, मजदूरों और राज्य के युवाओं के मन में निराषा पैदा करने वाला : भाकपा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

बजट किसानों, मजदूरों और राज्य के युवाओं के मन में निराषा पैदा करने वाला : भाकपा

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पटना, 28 फरवरी। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने बिहार सरकार के बजट 2017-18 पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि यह बजट किसानों, मजदूरों और राज्य के युवाओं के मन में निराषा पैदा करने वाला बजट है।  आज यहां जारी अपने एक बयान में पार्टी के राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने कहा है कि बिहार विधान मंडल में पेष बिहार सरकार का 2017-18 का बजट विकास की दृष्टि से दिषाहीन हैं । बजट में विकास का ढोल पीटा गया है जबकि, बजट से ही पता चलता है कि वत्र्तमान वित्तीय वर्ष में विकास दर 10 प्रतिषत है और 2017-18 में 7.6 प्रतिषत का अनुमान है। बिहार का विकास मुख्यतः कृषि और उद्योग के विकास पर निर्भर है लेकिन बजट में इन दोनों क्षेत्रों की उपेक्षा की गयी है। नये बजट में कृषि पर होने वाले खर्च में 2016-17 की तुलना में 73.39 करोड़ रूपये की कटौती कर दी गयी हैं। उसी तरह आर्थिक विकास के लिए आधारभूत संरचना के विकास की भी उपेक्षा की गयी है। षिक्षा के क्षेत्र में विषेष ध्यान तो दिया गया है लेकिन स्वास्थ्य में वत्र्तमान वर्ष की तुलना में 8234 करोड़ से घटाकर 7001 करोड़ कर दिया गया है। बजट में ऊर्जा के क्षेत्र में भी ऐसी ही उपेक्षा बरती गयी है। 2016-17 के बजट में ऊर्जा पर 14367 करोड़ का प्रावधान था जिसको नये बजट में घटाकर 10.905 करोड़ कर दिया गया है। आधारभूत सरंचना की उपेक्षा करके विकास की बात बेइमानी है। उसी तरह रोजगार सृजन की दिषा में कोई स्पष्ट दिषा नहीं है। नोटबंदी की वजह से बिहार में बेरोजगारों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। अभी भी लाखों बेरोजगार युवक बिहार से दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं। लेकिन इन बेरोजगार युवकों को इस वजट ने और ज्यादा निराष किया है। बजट में अल्पसंख्यकों पर बेषक ध्यान दिया गया है। लेकिन श्रमिकों, पिछड़ों, अतिपिछड़ों, अनुसूचित जाति, जनजाति के कल्याण को नजर अंदाज कर दिया गया है। इनके कल्याण पर होने वाले वत्र्तमान बजट व्यय में कटौती करके राज्य सरकार ने श्रमिक विरोधी, पिछड़ा अतिपिछड़ा विरोधी और दलित विरोधी अपनी नीति का ही परिचय दिया है। श्रम संसाधन पर नये बजट में 468 करोड़ का प्रावधान है जबकि वत्र्तमान वित्तीय वर्ष के बजट में 881 करोड़ रूपये था । उसी तरह अनुसूचित जाति - जनजाति कल्याण के मद में वत्र्तमान वित्तीय वर्ष के बजट में 1628 रूपये के व्यय का प्रावधान था जिसको घटाकर नये बजट में 1301 करोड़ रूपये कर दिया गया है।    

सत्य नारायण सिंह ने कहा है कि बिहार सरकार बिहार में विकास की बातें तो करती हैं, लेकिन विकास की उसकी सारी बातें केन्द्रीय सरकार से मिलने वाली धनराषि और ऋण पर ही आधरित है। राज्य सरकार को राज्य के क्षेत्रिय असंतुलन और आर्थिक विषमता दूर करने पर भी ध्यान देना चाहिए लेकिन इस दिषा में सरकार पूरी तरह फेल है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में सुपौल जिला वर्षों से आखिरी पोदान पर है और पटना शीर्ष पर। सरकार के आर्थिक सर्वेंक्षण से पता चलता है कि सुपौल राज्य के 38 वे स्थान पर पहले भी था और आज भी है। यहां प्रति व्यक्ति आय सलाना सात हजार से थोड़ा ज्यादें है जबकि पटना जिला बिहार में वर्षों से शीर्ष पर है। यहां प्रति व्यक्ति आय सलाना 63 हजार रूपये से भी ज्यादा है। बजट में यह आर्थिक और क्षेत्रिय असंतुलन दूर करने का कोई संकेत नहीं मिलता है। 

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