- अधिकार रैली ने मोदी व नीतीश के खिलाफ जनता के विभिन्न तबकों के आक्रोश का किया अभिव्यक्त
- झूठे आंकड़ों के जरिए बिहार में ‘सुशासन’ का दावा हास्यास्पद, आंदोलनकारियों की लगातार हो रही हत्या.
- बजट में शिक्षा, कृषि आदि महत्वपूर्ण मदों में सरकार द्वारा की गयी है कटौती. मौलिक प्रश्नों की अनेदखी.
- राज्य कमिटी की बैठक में लिए गए कई आंदोलनात्मक निर्णय.
- चंपारण आंदोलन की विरासत के साथ मजाक कर रही नीतीश सरकार.
पटना 28 फरवरी 2017, दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस काॅलेज में भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी की गुंडागदी और आम छात्रों-शिक्षकों पर बर्बर हमले के खिलाफ आज छात्रों का ऐतिहासिक प्रदर्शन स्वागतयोग्य है. छात्रों ने आज के प्रदर्शन द्वारा जता दिया है कि ‘राष्टवाद’ के नाम पर गुंडागर्दी, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला और छात्राओं को बलात्कार की धमकी व तरह-तरह से प्रताड़ित करने की संघी राजनीति को छात्र-युवा कभी स्वीकार नहीं करेंगे. हमारी पार्टी द्वारा आयोजित अधिकार रैली को राज्य के दलित-गरीबों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, अन्य कामकाजी हिस्से व बुद्धिजीवियों का व्यापक समर्थन मिला, जो दिखलाता है कि जनता का विभिन्न हिस्सों में केंद्र व राज्य सरकार की नीतियों के खिलाफ बेहद आक्रोश है. रैली ने जनता के अधिकारों की आवाज बुलंद की. उसने हमारे सामने अनेक कार्यभार भी दिए. बिहार राज्य कमिटी की बैठक में जन अधिकारों के सवाल पर धारावाहिक आंदोलन चलाने का निर्णय लिया गया है और कई कार्यक्रम तय किए गए हैं. आज जब पूरे बिहार में भूमि अधिकार के लिए संघर्षरत माले नेताओं व अन्य आंदोलनकारियों की बर्बर हत्यायें हो रही हैं, महादलित छात्राओं की सांस्थानिक बलात्कार-हत्याकांड को अंजाम दिया जा रहा है, अंबेदकर-कस्तूरबा आवासीय विद्यालयों को कत्लगाह बना दिया गया है, ऐसी स्थिति में नीतीश सरकार द्वारा बिहार में ‘सुशासन’ का दावा राज्य की जनता से घोर मजाक है. स्थिति ठीक इसके उलटी है. सत्ता के संरक्षण में सामंती-अपराधियों का मनोबल बढा हैं और जनता के अधिकारों पर हमला व प्रतिरोध करने पर उनकी हत्या आम बात हो गयी है. इन प्रश्नों पर यह सरकार एकदम खामोश है.
एक तरफ नीतीश सरकार आज गरीबों’-महादलितों को उनकी पुश्तैनी जमीन व उनके परंपरगात अधिकारों तक से वंचित कर रही है, तो दूसरी ओर गांधी जी के नेतृत्व में चले ऐतिहासिक चंपारण सत्याग्रह के अंतर्य को नष्ट कर उसे पर्यटन तक सीमित करने का प्रयास कर रही है. जबकि हर कोई जानता है कि चंपारण सत्याग्रह नीलहों के जुल्म के खिलाफ किसानों के अधिकारों की लड़ाई थी. यह आंदोलनों के प्रति नीतीश सरकार की मानसिकता को स्पष्ट रूप से जाहिर करता है. नीतीश सरकार द्वारा पेश बजट में शिक्षा, कृषि, कल्याण आदि तमाम मदों में भारी कटौती की गयी है. रोजगार सृजन की भी घोर उपेक्षा की गयी है. विकास के मौलिक प्रश्नों से सरकार पूरी तरह भाग खड़ी हुई है और महज सात निश्चय की जुमलेबाजी कर जनता की आंखों में धूल झोंक रही है. सकल घरेलू उत्पाद में तेजी से वृद्धि का दावा करने वाली सरकार को बताना चाहिए कि रोजगार के अवसरों में कितनी वृद्धि हुई है? ठेका-मानेदय पर काम करने वाले कर्मियों का स्थायीकरण अब तक क्यों नहीं हुआ? नीतीश सरकार गरीबों के वास-चास की जमीन, भूमि सुधार, बटाईदार किसानों के कानूनी हक आदि सवालों पर एक शब्द बोलना उचित नहीं समझती. इसकी बजाए वह झूठे आंकड़ों के जरिए बिहार में विकास की जुमेलबजाी कर रही है. हर जगह शराबबंदी की जुगाली है, जबकि पुलिस संरक्षण में आज भी शराब उत्पादन का कार्य जोरों से चल रहा है. आज बिहार सरकार यह स्वीकार कर रही है कि नोटबंदी का गहरा असर जनता के जीवन पर पड़ा है. लेकिन नीतीश जी अब तक नोटबंदी के सवाल पर मोदी का समर्थन करते रहे हैं. नोटबंदी की मार से त्रस्त लोगों के लिए बिहार सरकार के बजट में कुछ नहीं है. बजट में शिक्षा पर सबसे अधिक तरजीह देने की घेाषणा करती है. लेकिन यह सरकार दलित-गरीबों की छात्रवृत्तियंा काटने वाली सरकार हो गयी है. महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग पर खर्च होने वाली राशि में भारी कटौती की गयी है, जबकि बजट में झूठे आंकड़ों के जरिए ‘न्याय के साथ विकास’ की लफ्फाजी की जा रही है.
छात्राओं की शिक्षा-सम्मान-सुरक्षा के सवाल पर 20 मार्च को ऐपवा का विधानसभा के समक्ष प्रदर्शन
बिहार में छात्राओं और खासकर महादलित छात्राओं की शिक्षा-सम्मान व सुरक्षा को केंद्र करते हुए ऐपवा द्वारा पूरे राज्य में अभियान चलाया जाएगा. वैशाली में घटित डीका कुमारी बलात्कार-हत्याकांड के बावजूद महादलित छात्राओं का उत्पीड़न कम होने का नाम नहीं ले रहा है. आरा में अंबेदकर कल्याण छात्रावास में कुव्यवस्था के कारण नीतू और समस्तीपुर में कृष्णा की मौत हो गयी. आए दिन दलित बच्चियों के साथ रेप की घटनायें घट रही हैं, लेकिन सरकार चुप है. 8 मार्च को इन सवालों पर गांव-गांव में सभायें आयोजित की जाएंगी और 20 मार्च को विधानसभा के समक्ष प्रदर्शन किया जाएगा. 7 मार्च को पटना में कन्वेंशन भी किया जाएगा. शिक्षा-परीक्षा में घोटाले के राजनीतिक संरक्षण की सीबीआई जांच के सवाल पर आइसा-इनौस द्वारा राज्यव्यापी अभियान चलाते हुए 28 मार्च को विधानसभा का घेराव किया जाएगा. इन शैक्षणिक घोटालों में सरकार केवल छोटी मछलियों को ही पकड़ रही है और शिक्षा व्यवस्था से खिलवाड़ करने वाले असली गुनहगारों पर अब भी नकेल नहीं कसी जा रही है. 25-31 मार्च तक के बीच भूमि अधिकार सत्याग्रह: 25 से 31 मार्च के बीच भूमि अधिकार के सवाल पर अनुमंडल कार्यालय पर भाकपा-माले, किसान महासभा व खेमस द्वारा एक से सात दिवसीय सत्याग्रह किया जाएगा. अररिया के माले जिला सचिव सत्यनारायण सिंह यादव व कमलेष्वरी ऋषिदेव के हत्यारों की गिरफ्तारी के सवाल पर 8 मार्च से अररिया में डीएम के समक्ष अनश्चिकालीन ‘घेरा डालो-डेरा डालो’ कार्यक्रम किया जाएगा.
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