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गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

आलेख : फ़ेसबुक पर "कुछ भी" लिखने से अच्छा है "कुछ भी नहीं" लिखा जाय.

सोशल मीडिया पर सेलिब्रिटी बनने की चाहत लोगों से क्या क्या नहीं करवाती है. फ़ालोअर्ज बढ़ाने के लिए लोग क्या क्या नहीं करते हैं। मैं वर्ष 2008 से सोशल मीडिया का प्रयोग कर रहा हूँ. मैं ने पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया पर बहुत सारे बदलाव देखे हैं. फ़ेसबुक पर अपने फ़ालोअर्ज़ बढ़ाने, लाइक कॉमेंट और शेयर बढ़ाने के लिए लोगों को कई तरह के टोटके आज़माते देखा है. मैं ने एक बात जो सब से अधिक महसूस की वो यह है की सोशल मीडिया पर जो जितनी अधिक कट्टरता फैलाता है वो उतनी ही जल्दी उतना ही बड़ा सेलिब्रिटी बन जाता है. फ़ेसबुक पर फैलायी जाने वाली कट्टरता कई प्रकार की हो सकती है उन में जो सब से आम है वो है धार्मिक कट्टरता. आप जितनी अधिक धार्मिक कट्टरता फैलाएँगे, आपके फ़ालोअर्ज़ उतनी ही जल्दी बढ़ जाएँगे. आप दूसरों के भगवान्, खुदा, देवी देवता, पैगम्बर, धर्म गुरु, कुरआन, ग्रन्थ इत्यादि को सोशल मीडिया पर जितनी अधिक गालियाँ देंगे, सोशल मीडिया यूजर का एक ख़ास वर्ग आप से जुड़ता चला जाएगा.


धार्मिक कट्टरता के बाद नंबर आता है राजनैतिक कट्टरता का. 2014 लोकसभा चुनावों के बाद भारत के सोशल मीडिया पटल पर सब से अधिक राजनैतिक कट्टरता देखने को मिली. इसे एक तरह से भारतीय सोशल मीडिया पर नैतिकता के पतन का युग कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी. 2014 लोकसभा चुनाव के पहले लोगों ने अपने राजनैतिक विरोधियों के बारे में ऐसी-ऐसी निम्न स्तर की बातें लिखनी शुरू कर दी जिसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है. जिस ने अपने सोशल मीडिया पटल पर जितनी अधिक राजनैतिक कट्टरता फैलाई वो उतना ही बड़ा सोशल मीडिया सेलिब्रिटी हो गया. उसके बाद बारी आती है जातीय कट्टरता की. यदि आप स्वर्ण हैं और आप सोशल मीडिया पर दलितों को गालियाँ बकेंगे तो सारे स्वर्ण आपके पक्ष में खड़े हो जाएँगे. यदि आप दलित हैं और आप सोशल मीडिया पर स्वर्णों को गालियाँ बकेंगे तो सारे दलित आपको फ़ॉलो करना शुरू कर देंगे और आपकी पोस्ट पर लाइक कॉमेंट और शेयर की झड़ी लग जाएगी. उसके बाद नंबर आता है फिरकेबाज सोशल मीडिया सेलिब्रिटियों का. जो जितनी अधिक फिरकेबाजी वाली पोस्ट लिखता है उस के उतने ही अधिक फ़ॉलोवेर बढ़ जाते हैं. सोशल मीडिया के मुस्लिम सेलिब्रिटियों के लिए फिरकेबाजी का प्रयोग आसान भी है और इस से लोगों की भावनाएं बहुत भड़कती हैं. आप सुन्नी हैं तो शिया के खिलाफ लिखकर सेलिब्रिटी बन सकते और शिया हैं तो सुन्नी के खिलाफ लिखकर सेलिब्रिटी बन सकते है. अगर आप बरेलवी हैं तो वहाबी और देवबंदी को गालियाँ बककर सेलिब्रिटी बन सकते हैं और आप यदि वहाबी हैं तो देवबंदी और बरेलवियों को गालियाँ बक कर सेलिब्रिटी बन सकते हैं.

यदि आप सोशल मीडिया के किसी बड़े सेलिब्रिटी को फॉलो करते हैं तो आप देखेंगे की कुछ ही दिन में उन सेलिब्रिटियों के अपने विचार बदल जाते हैं. मिसाल के तौर पर जो लोग बिहार विधानसभा के समय किसी और पार्टी के समर्थक वो UP विधानसभा के समय किसी और पार्टी के समर्थक बन गए. जो लोग कुछ ही दिन पहले फेसबुक पर कट्टरता फैलाते थे आज के दौर में वही फेसबुकिया सेलिब्रिटी आपको सेकुलरिज्म का लबादा ओढ़े दिख जाएगा. कुछ दिन पहले जो फेसबुकिया सेलिब्रिटी मनुस्मृति के पन्नों में धर्म विशेष के लिए बुराइयां ढूंढता था, वही फेसबुकिया सेलिब्रिटी आज आपको सेकुलरिज्म के बुर्ज खलीफा पर बैठा हुआ दिख जाएगा. यदि आप गौर करेंगे तो पायेंगे की कुछ फेसबुकिया सेलेब्रिटियों की अपनी कोई विचारधारा ही नहीं है. इनकी विचारधारा समय-समय पर बदलती रहती है. यह एक प्रकार के ऐसे अवसरवादी लोग हैं जो करंट अफेयर्स (सामयिकी) का लाभ उठाना खूब अच्छी तरह से जानते हैं. जब जिस तरह का माहौल हो उसी के हिसाब से यह लोगों की भावना को भड़काने वाली पोस्ट करते हैं और इसी तरह इनके लाइक कमेंट और शेयर के कारोबार फलते फूलते हैं. इस तरह के तथाकथित फेसबुकिया सेलिब्रिटियों की दूकान ऐसे ही चलती है.


दो शब्द फेसबुकिया सेलिब्रिटियों से
आप के जितने अधिक फ़ालोअर्ज होते हैं आपकी उतनी ही अधिक जिम्मेदारी बढ़ जाती है. आपका दायित्व बनता है की जो आपके फ़ॉलोवर्स हैं कम से कम आप उनको भ्रमित न करें. लाइक कॉमेंट और शेयर पाने के लिए लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ न करें. लोगों की भावना को भड़काने वाली पोस्ट लिखना, कट्टरता फैलाने वाली पोस्ट लिखना तो और भी घटिया काम है. आखिर आज जो हम अपने व्यक्तिगत फायदे, लाइक, कमेंट, शेयर और फोलोवर बढाने की भूख को मिटाने के लिए सोशल मीडिया पर कट्टरता को बढ़ावा देते हैओं उसका अंजाम आखिर क्या होगा ??? क्या आपने कभी सोचा है की आपके द्वारा फैलाई गयी कट्टरता हमारे समाज को कहाँ से कहाँ तक लेकर जा रही है ??? आप के द्वारा फैलाई गयी नफरत बहुत से लोगों के विचार को बदल देती है. बहुत से सोशल मीडिया के ऐसे यूजर हैं जो आपको अपना आदर्श मानते हैं. वह सोशल मीडिया पर शेयर की गयी आपकी हर बात को आँख मूँद कर सच मान लेते हैं. उन्हें इतना भी पता नहीं की आप असल में क्रांतिकारी नहीं बल्कि आप अपने व्यक्तिगत फायदे, लाइक, कमेंट, शेयर और फोलोवर बढाने की भूख को मिटाने के लिए सोशल मीडिया पर कट्टरता को बढ़ावा देते हैं. जब आप मनुस्मृति में किसी धर्म को नीचा दिखाने के लिए उस की बुराइयां ढूंढ रहे होते हैं तो वहीँ कहीं आप की किसी पोस्ट से आहत कोई दूसरा व्यक्ति आपके धर्म में कमियां निकाल रहा होता है. और जब उसे आपके धर्म में कोई कमी नहीं मिलती तो वोह झूठ का सहारा लेकर झूठे फोटोशोप, झूठे स्क्रीनशॉट बनाकर अपनी वाल पर आपके धर्म को निचा दिखाने के लिए क्रांति कर रहा होता है. सोशल मीडिया पर घूमती ऐसी हजारों फोटोशोप की सहायता से बनाये गई तस्वीरें आपको मिल जायेंगे जिसकी आप जांच करेंगे तो आप उसे फर्जी पायेंगे लेकिन सोशल मीडिया पर एक वर्ग ऐसा भी है जो ऐसी चीज़ों की बिना जांच किये उन पर आँख मूँद कर विश्वास कर लेता है. आपने सोशल मीडिया पर एक स्क्रीनशॉट घुमते हुए देखा होगा जिसमें कहा जाता है की सऊदी अरब के एक मौलाना ने कहा है की बीवी का मांस खाना जायज़ है, यह सब आप सब की ऐसी नफरत फैलाने वाली बातों का ही नतीजा है की लोग इस तरह की झूठी खबर को इतना फैलाते हैं की एक आम आदमी इस पर आँख मूँद कर यकीन कर लेता है. आप ने सोशल मीडिया पर नेहरु और गांधी की ऐसी कई फोटोशोप तस्वीरें देखि होंगी जो की बिलकुल ही झूठ और बेबुनियाद है, वोह आपके इन्ही नफरत फैलाने के परिश्रमों का दुष्परिणाम है. इसलिए मैं कहता हूँ की फ़ेसबुक पर "कुछ भी" लिखने से अच्छा है "कुछ भी नहीं" लिखा जाय.



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मोहम्मद खालिद हुसैन 
दोहा, क़तर 

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