विशेष आलेख : मंदिर बने हऊवा खड़ाकर नहीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

विशेष आलेख : मंदिर बने हऊवा खड़ाकर नहीं

अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का भव्य मंदिर निर्माण हरहाल में होना चाहिए। लेकिन इसके लिए बात-बात में हऊवा, हंगामा व दहशत फैलाने की जरुरत नहीं। जहां तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सवाल है वह हर निर्णय सूझबूझ के साथ लेते है। कुछ उन्हीं के मार्ग पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी चल रहे है। देश व यूपी के विकास में अब तक लिए गए निर्णय के दूरगामी परिणाम होंगे। कुछ तो अभी से दिखने लगे है। प्रस्तुत है गढवाघाट के महंत स्वामी सरनानंद जी महराज की सीनियर रिपोर्टर सुरेश गांधी से बातचीत के प्रमुख अंश 





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बेशक, यूपी विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण के मतदान से ठीक 24 घंटे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गढवाघाट के महंत सद्गुरु स्वामी सरनानंद जी महराज ने यूं ही विजयी भवः का आर्शीवाद नहीं दिया था, बल्कि वह जानते थे कि दिल्ली में पहली बार कोई ऐसा पीएम है जो सबकों साथ लेकर चलना चाहता है। मोदी का मूलमंत्र ‘सबका साथ - सबका विकास‘ में इसकी झलक भी दिखती है। अब तक जो योजनाएं लागू की गयी है, उसका लाभ हर किसी को मिल रहा है। लेकिन यूपी में प्रचंड जीत के बाद जिस तरह पार्टी के कुछ उदंड व शरारती कार्यकर्ता उल्टे - सीधे बयान व हरकते कर रहे है, उससे एक वर्ग विशेष की भावनाएं आहत होती है। खासकर होली, श्रीराम नवमी व हनुमत जयंती पर जिस तरह परंपरा से हटकर आडम्बरबाजी की गयी वह पूरी तरह एक वर्ग विशेष को सिर्फ और सिर्फ चिढ़ाने वाला ही रहा। श्री स्वामी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा है इस तरह की हरकते समाज में मेल-मिलाप नहीं ईष्र्या पैदा करती है। इस तरह के ओछी हरकतों से बचने की जरुरत है। सर्वाधिक संवेदनशील मुद्दा श्रीराम मंदिर के मसले पर रोज-रोज दिए जा रहे भड़काऊ बयानों पर नकेल कसने की जरुरत है। 

श्री स्वामी जी ने कहा अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण लाखों-करोड़ों की आस्था से जुड़ा मसला है। हिन्दू हो या मुस्लिम या अन्य तबका इसका कद्र हर कोई करता भी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक कह चुके है श्रीराम मंदिर का निर्माण संवैधानिक दायरे में होगा। संत समाज भी इसका आदर करता है। जनता इसी भरोसे व विश्वास से प्रचंड बहुमत भी दिया है। मतलब साफ है अयोध्या में श्रीराम का मंदिर निर्माण हमारी आस्था का सवाल है। उत्तर प्रदेश ही नहीं, देशभर की जनता श्रीराम जन्मभूमि पर राम मंदिर देखना चाहती है। इसके लिए कई मुस्लिम संगठनों ने भी हामी भरी है, वह चाहता है शालीनता व सादगीपूर्ण माहौल में अयोध्या में राम मंदिर बने। इसके बावजूद अगर कोई छुटभैया ने ता कोर्ट व जनभावनाओं का अनादर करता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। श्री स्वामी जी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सलाह दी है कि वह ऐसे उपद्रवी नेताओं व कार्यकर्ताओं पर लगाम लगाएं जो श्रीराम मंदिर जैसे संवेदनशील ने मसले पर रोज-रोज उल्टे-सीधे भड़काऊ बयान देते हैं। श्री स्वामी जी का मानना है कि अब केन्द्र व प्रदेश में पार्टी की सरकार है। उसे चाहिए कि न्यायालय के साथ-साथ दोनों पक्षों की आपसी सहमती बनाएं जिससे विवाद का रास्ता निकले। इसके बावजूद भी अगर सहमती नहीं बनती तो संसद में विधेयक लाकर कानून बनाएं और नियति तिथि में मंदिर निर्माण का रास्ता प्रशस्त करें। लेकिन अगर रोज-रोज इस मसले पर किसी को ताना व भड़काऊ हरकते करेंगे तो वह नासूर बन जायेगा, जो कभी भी विस्फोट कर सकता है। इससे समाज में नफरत पैदा होगा, अराजकता का माहौल बनेगा, जो देशहित में कत्तई नहीं हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ का बयान, ‘मैं माननीय सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी का स्वागत करूंगा। सरकार चूंकि वाद में नहीं है, तो जो दो पक्ष हैं, वे बातचीत के माध्यम से कोई रास्ता निकालें। सरकार का कहीं सहयोग चाहिए, तो उस पर सरकार सहमत है‘ स्वागत योग्य है।  


प्रदेश में मुस्लिम समुदाय ने अब खुद ही आगे बढ़ कर न केवल गोरक्षा के प्रति संकल्प जताना शुरू कर दिया है, बल्कि एलान भी करने लगे हैं कि अवैध बूचड़खानों का मांस वे नहीं खरीदेंगे। कुरैश समाज ने तो पिछले दिनों लखनऊ में अधिवेशन आयोजित कर बाकायदे घोषणा कर दी कि गोवंश वध करने वालों का हुक्का-पानी बंद कर सामाजिक बहिष्कार करेंगे। गोवंशीय जानवरों की रक्षा को पूरे देश में पांच हजार वालंटियर्स नियुक्त करेंगे। यदि कुछ संकुचित विचारधारा वाले लोग मुस्लिम समुदाय के इन फैसलों को राजनीतिक नजरिये से न देखें और उनके इरादों पर संदेह व अविश्वास न जताएं तो समाज में सांस्कृतिक और धार्मिक समन्वय की एक नई तस्वीर उभर कर सामने आ रही है। यह इस मायने में भी महत्वपूर्ण है क्योंकि दो दिन पहले ही इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि मनपसंद भोजन संविधान की पंथ निरपेक्ष छतरी के तले जीवन का प्रतिस्पर्धी अधिकार है। यह भी कहा है कि व्यापार, पेशा, स्वास्थ्य की सुरक्षा के अधिकार के साथ ही उपभोग और सुविधाएं मुहैया कराना सरकार का दायित्व है। निश्चित रूप से मनपसंद भोजन सभी का अधिकार है लेकिन, जब बात मिश्रित सामाजिक ताने-बाने में धार्मिक, सांस्कृतिक और जीवनशैली के आधार पर सामाजिक समन्वय, सामंजस्य, सद्भाव और सौहार्द की होती है तो कुछ मामलों में संयम बरतने की भी जरूरत होती है। खानपान के अधिकार से गोवंश के मांस को दूर रखना भी इसी संयम का एक हिस्सा है लेकिन, दूसरे पक्ष को भी कुछ बातें समझनी होंगी। व्यावहारिक धरातल पर उतर कर उदारवादी नजरिया विकसित करना होगा। अविश्वास की खाई पाटनी होगी। यदि दोनों ही पक्ष गोरक्षा का संकल्प ले रहे हैं तो फिर मतभेद की कोई गुंजायश नहीं बचनी चाहिए, बल्कि इस अभियान में अलग-अलग चलने के बजाय संयुक्त रूप से आगे बढ़ना चाहिए। इससे न केवल विश्वास बढ़ेगा, बल्कि एक दूसरे के धर्म, आस्था और भावनाओं के प्रति आदर भी बढ़ेगा। फिलहाल देश के दो प्रमुख संप्रदायों के बीच असहमति की दीवार ढह रही है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि एक न एक दिन सांप्रदायिक सौहार्द की ऐसी मिसाल भी कायम होगी, जिसे दुनिया नजीर के तौर पर देखेगी। इसलिए मुस्लिम समुदाय की नई पहल का स्वागत किया जाना चाहिए।




(सुरेश गांधी)

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