गूगल ने डूडल के जरिये दी जैमिनी राय को श्रद्धांजलि - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

गूगल ने डूडल के जरिये दी जैमिनी राय को श्रद्धांजलि

google-doodle-pays-tribute-to-jamini-rai
नयी दिल्ली 11 अप्रैल, विश्व प्रसिद्ध चित्रकार जैमिनी राय की जयंती के मौके पर आज गूगल ने उनकी एक चित्र का डूडल बनाकर श्रद्धांजलि दी है। महान चित्रकार अबनिन्द्रनाथ टैगोर के शिष्य जैमिनी राय को देश के महान चित्रकारों में गिना जाता है जो 20वीं शताब्दी के महत्‍वपूर्ण आधुनिकतावादी कलाकारों में से एक थे। उन्हाेंने अपने समय की कला परम्‍पराओं से अलग एक नई शैली स्‍थापित की। 11 अप्रैल 1887 को पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा ज़िले के बेलियातोर नामक गांव में एक समृद्ध ज़मींदार परिवार में जन्मे जेमिनी का चित्रकारी से बचपन से ही लगाव था। उनका बचपन गांव में ही बीता जिसका गहरा असर उनके चित्रकारी पर भी पड़ा। 16 वर्ष की आयु में जैमिनी ने कोलकाता के ‘गवर्नमेंट स्कूल ऑफ़ आर्ट्स’ में दाख़िला लिया जहां से मिले प्रशिक्षण ने जैमिनी रॉय को चित्रकारी की विभिन्न तकनीकों में पारंगत होने में मदद की। शुरुआत में पश्चिमी शैली में कलाकृति बनाने वाले जैमिनी का जल्द ही इससे मोह भंग हो गया और उन्हाेंने स्थानीय चीजों से प्रेरणा लेकर अपनी एक अलग शैली की चित्रकारी शुरू की। 1920 के दशक के शुरुअात में उन्‍हें कला के ऐसे नये विषयों की तलाश थी, जो उनके ह्रदय के करीब थे। इसके लिए उन्‍होंने परंपरागत और स्थानिय स्रोतों जैसे लेखन शैली, पक्‍की मिट्टी से बने मंदिरों की कला वल्‍लरियों, लोक कलाओं की वस्‍तुओं और शिल्‍प कलाओं आदि से प्रेरणा ली। 1920 के बाद के वर्षों में उन्होंने ऐसे चित्र बनाये जो खुशनुमा ग्रामीण माहौल को प्रकट करते थे और जिनमें ग्रामीण वातावरण और जीवन की झलक थी। इस काल के बाद उन्‍होंने अपनी जड़ों से जुड़ी हुई वस्तुओं को अभिव्‍यक्ति देने का प्रयास किया था। 1938 में उनकी कला की प्रदर्शनी पहली बार कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के ‘ब्रिटिश इंडिया स्ट्रीट’ पर लगायी गयी। 1946 में उनके कला की प्रदर्शनी लन्दन में आयोजित की गयी और 1953 में न्यू यॉर्क सिटी में भी उनकी कला प्रदर्शित की गयी। कला के क्षेत्र में योगदान के लिये 1954 में भारत साकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। इस महान चित्रकार का निधन 24 अप्रैल, 1972 को कोलकाता में हुआ। 1976 में ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण’, संस्कृति मंत्रालय और भारत सरकार ने उनके कृतियों को बहुमूल्य घोषित किया।

कोई टिप्पणी नहीं: