बिहार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए सरकार: दीपंकर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 23 अप्रैल 2017

बिहार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए सरकार: दीपंकर

  • चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष में किसानों की पीड़ा और दलित-गरीबों के सवाल

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पटना 23 अप्रैल, दो दिवसीय बिहार दौरे पर आए माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा है कि चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पर बिहार सरकार को जीएसटी की बजाए किसानों की पीड़ा और दलित-गरीबों के सवालों पर बिहार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाना चाहिए था. उन्होंने कहा कि बिहार की नीतीश सरकार पहली गैर भाजपा सरकार थी, जिसने पिछले वर्ष सबसे पहले जीएसटी के प्रस्ताव को बिहार विधानसभा से पारित करवाया. इस तरह यह सरकार जनादेश 2015 का लगतार अपमान करते हुए भाजपा के ही नक्शेकदम पर चल रही है और जनता के ऊपर टैक्स का बोझ बढ़ा रही है. बेतिया में चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष केे अवसर पर भाकपा-माले द्वारा चल रहे भूमि अधिकार सत्याग्रह के तहत 21-22 अप्रील को दो दिवसीय अनशन में भाग लेने के उपरांत आज पटना लौटने के उपरांत उन्होंने कहा कि केंद्र व राज्य सरकार चंपारण सत्याग्रह जश्न तो जरूर मना रही है, लेकिन उसकी मूल आत्मा को मार दिया है. चंपारण सत्याग्रह के केंद्र में भूमि का सवाल और किसानों की मुक्ति का सवाल आज सिरे से गायब है. केंद्र व राज्य सरकार को चाहिए था कि पिछले 100 वर्षों में किसानों की स्थिति में कितना बदलाव आया और उनकी क्या समस्यायें हैं, इस पर विचार करना चाहिए था. लेकिन इसकी बजाए मोदी-नीतीश चंपारण सत्याग्रह का मजाक उड़ा रहे हैं. ठीक जिस वक्त ये सरकारें सत्याग्रह का जश्न मना रही हैं, ठीक उसी समय मोतिहारी में मजदूर-किसानों पर बर्बर तरीके से लाठीचार्ज किया जा रहा है. 2005 में ही बिड़ला परिवार की मोतिहारी चीनी मिल बंद हो गयी, लेकिन उसमें तकरीबन 100 मजदूरों की मजदूरी और 200 किसानों के गन्ना का बकाया मूल्य आज तक उन्हें नहीं मिल सका है. मजदूर-किसानों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी. सुप्रीम कोर्ट ने चीनी मिल मालिकों को बकाये का भुगतान करने का निर्देश दिया. उनके बकाये का भुगतान करने की बजाए उनपर लाठी-गोली चलाना किस तरह का न्याय है? उन्होंने आगे कहा कि अंग्रेजी राज में चंपारण में गांधी जी के प्रवेश पर रोक लगायी गयी थी, आज नीतीश राज में माले की बैठक को इस्टेटों व जमींदारों के इशारे पर रोकी जा रही है. नीतीश जी बतायें, यह कौन सा सत्याग्रह का मनाया जा रहा है?

चंपारण सत्याग्रह के शतवार्षिकी पर बिहार सरकार को चाहिए था कि डी बंद्योपाध्याय आयोग द्वारा बताई गयी 21 लाख एकड़ से अधिक सीलिंग, भूदान, गैरमजरूआ, कैसर-ए-हिंद, खासमहाल, बेनामी आदि जमीन को अधिग्रहित करके भूमिहीनों के बीच वितरित की जाए. यही गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि होती. लेकिन इन कार्यों की बजाए नीतीश सरकार इसे महज आयोजन में तब्दील करने में लगी है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भी किसानों के साथ वैसा ही सलूक कर रही हैै. अपनी जायज मांगों को लेकर तमिलनाडु के किसान पिछले कई दिनों से जंतर मंतर पर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि चंपारण सत्याग्रह को आयोजनों में केंद्र व पटना की सरकारों केा उलझा दिए जाने के खिलाफ हमारी पार्टी इसे भूमि अधिकार वर्ष के रूप में मना रही है और हमने पूरे बिहार में दलित-गरीबों के लिए चास-वास की जमीन, जमीन का परचा, बटाईदरों का पंजीयन आदि सवालों पर आवेदन भरवा रही है और इसको लेकर आने वाले दिनों में आंदोलन की दिशा में बढ़ेगी.

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