- इच्छाओं के आगे घुटने न टेकें: स्वामी सरनानंद जी महराज
- भंडारे में हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया
भदोही (सुरेश गांधी )। ‘इच्छा‘ ही व्यक्ति को उंचाईयों पर ले जाती है। अगर हम शांति और खुशी चाहते हैं, अपने मन की इच्छाओं के आगे घुटने टेकने से बचें। हम अपनी आत्मा के बगीचे में शांति तभी ला सकते है, इच्छाएं पूरी होंगी। यह बाते भदोही के नयी बाजार मथुरापुर स्थित कालीन निर्यातक रामचंन्द्र यादव के परिसर में आयोजित सद्गुरु दर्शन में गढवाघाट के स्वामी सरनानंद जी महराज ने कहीं। श्री स्वामी जी ने कहा, हम संसार में कई तरह के बोझ लादे रहते हैं। किसी पर अपने धन, पद और सौंदर्य का बोझ है तो किसी को अपने परिवार और शक्ति का। यह बोझ ही अहंकार का प्रतीक है। संसार में रहेंगे तो बोझ साथ लगा ही रहेगा लेकिन परमार्थ के कार्यों में जुड़े रहेंगे तो यह अहंकार धीरे-धीरे खत्म हो जाएगा। हम कितने पुण्यशाली हैं, इसका हमारे घर के श्रेष्ठ संस्कारों से पता चलता है। जिस घर में आपसी क्लेश, विवाद और द्वेष भाव होता है, वहां दारिद्रय का वास रहता है।
श्री स्वामी जी ने कहा, हम दुखी अपने ही कर्मों से होते हैं लेकिन दोष भगवान को देते हैं। परमात्मा के प्रति समर्पण और विश्वास होना चाहिए। राम देश के रोम-रोम में बसे हैं। भगवान की मूर्ति प्रहार सहने के बाद ही अपने स्वरूप में आती है। मिट्टी पर जब तक पानी का प्रहार नहीं होगा, तब तक वह घड़ा नहीं बनती। जीवन में प्रहार सहन करना भी हमें आना चाहिए। हमारे कर्मों का फल कोई और नहीं भुगत सकता। पाप हमने किया है तो फल भी हमें ही मिलेगा। यही स्थिति पुण्य की भी है। जीवन में कभी भी परमात्मा का विस्मरण नहीं होना चाहिए। श्री स्वामी सरनानंद जी महराज ने कहा, सरलता में है ही ऐसा जादू जो अच्छे-अच्छे विरोधियों को भी वह हथियार नीचे डालने को मजबूर कर देती है। जिस व्यक्ति का स्वभाव सरल होता है, वह बाहर-भीतर एक-जैसा ही होता है। ना ही वह किसी भी प्रकार की बनावट, ना छल-कपट और ना ही वह कुटिलता से किसी से व्यवहार करता है। कहते हैं कि ‘जो सरल है वही सुंदर है और जो सुंदर है वह मन को सहज भाता है‘, तभी तो हम सभी प्रभु परमात्मा के समक्ष जब प्रार्थना करते हैं, तब सहज रूप से ही सरल बन जाते हैं, क्योंकि वही एक ऐसी हस्ती हैं, जिनके सामने हम छल-कपट करने की हिमत कर नहीं सकते। हालांकि यह बात और है कि आजकल के कलयुगी मनुष्य परमात्मा के साथ भी बड़ी सौदेबाजी करने में निपुण बन गए हैं। किन्तु अधिकांश तौर पर यह देखा गया है कि भोले प्रभु के सामने हम बच्चे भी बड़े भोले और सरल बन ही जाते हैं।
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