बेगूसराय विशेष : "रोटी" के थॉट में फंसा "थियेटर" - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 16 अप्रैल 2017

बेगूसराय विशेष : "रोटी" के थॉट में फंसा "थियेटर"

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प्रद्योत कुमार,बेगूसराय। थियेटर यानि नाट्य विधा या नाटक को प्रमोट करने के लिए भारत सरकार ने "राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय" की स्थापना की एवं उसमें हर वर्ष 20 विद्यार्थी को नामांकित कर प्रशिक्षित करने के बाद देश के अन्य हिस्सों में ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्र में नाट्य कला को विकसित और नाट्य विधा को प्रमोट करना है,क्या ऐसा हो पाता है?उसमें से अधिकतर प्रशिक्षु मुम्बई में जाकर सिनेमा में अपना भविष्य तलाशते हैं बाक़ी जो नाट्य विकास के लिए अपने क्षेत्र में कार्य करते हैं वो थियेटर को अपनी जागीर समझकर भारत सरकार से फंडिंग करवाते हैं और थियेटर का भड़ास निकालते हैं,शेष जो गम्भीर रंगकर्मी हैं उनके साथ रोटी की समस्या बनी रहती है क्योंकि सूत्रों की मानें तो भारत सरकार के सांस्कृतिक मंत्रालय में एक लॉबी काम करता है जो राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पास आउट हैं के इर्द गिर्द घूमते रहता है।राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के "रेपेट्री" में ग़ैर एन एस डी वाले को लेते ही नहीं हैं अगर लेते भी हैं तो उनका प्रतिशत 0.1 से लेकर 05 प्रतिशत तक ही होता है।नाटक के विकास के फंडिंग का केंद्रीकरण हो जाने से शेष गंभीर रंगकर्म और रंगकर्मी दम तोड़ते नज़र आ रहे हैं या दम तोड़ चुके हैं।कला जीवन के लिए है इससे कोई भी व्यक्ति इंकार नहीं कर सकता है,सरकार साहित्य की सोच को मार रही है क्योंकि अगर कलाकार ही नहीं रहेगा तो कला स्वयं ही मर जाएगा,खैर।इधर बिहार सरकार और केंद्र सरकार ने भी थियेटर और नाटकों को प्रमोट करने के लिए कुछ कुछ "सौजन्य" योजना देना शुरू की है लेकिन उन योजनाओं का लाभ भी अधिकतर तथाकथित नाट्यधर्मी एवं "नाट्य माफियाओं" को ही मिल पाती है बाक़ी मूल रंगकर्मी तो चाय और चाउमिन बेचकर थियेटर को जीते हैं।उनको तो इन योजनाओं का हवा तक नहीं लगती।दरअसल में सरकार अपनी किसी भी योजना के राजस्व के उपयोग का सही समय पर जांच नहीं करती है सिर्फ काग़ज़ लेकर खानापूर्ति करती है।जब तक सरकार ईमानदार रंगकर्मी और रंगकर्म के लिए नहीं सोचेगी तब तक रंगकर्मी रोटी के थॉट में थियेटर से दूर होते ही जायेंगे और मूल "कस्बाई थियेटर" विलुप्त होता चला जाएगा।सच मानिए तो पूरे भारत गणराज्य में "कस्बाई थियेटर" को बचाने के लिए ईमानदार "सर्वेक्षिक सरकारी" व्यवसायीकरण ज़रूरी है,अगर इस पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो वो दिन दूर नहीं कि "कस्बाई थियेटर,"लोक थियेटर"  से जुड़े कलाकार सदा के लिए दम तोड़ देंगे चाहे एक नहीं पूरे देश में 100 "राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय" की स्थापना कर दीजिये।

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