बिजली की कमी, दिन भर लगते कट या फिर दिन रात कई कई घंटे बिजली सप्लाई बाधित रहना सामान्य बात है और इसी से परेशान लोग धरना प्रदर्शन को मजबूर होते हैं तथा जनरेटर चलाने को बाध्य होते हैं जिससे ध्वनि व वायु प्रदूषण फैलता है। बिजली मांग के अनुसार सप्लाई न हो तो अलग बात है परन्तु सुबह के समय स्ट्रीट लाईट को बन्द करने में कर्मचारियों की लापरवाही से न केवल अकारण बिजली जलने से हजारों यूनिट प्रतिदिन बेकार किए जाते हैं बल्कि जनता के पैसे से उसका बिल भुगतान भी किया जाता है। पर्यावरण-प्रेरणा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश गोयल ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि नगर परिषदों के कार्यकारी अधिकारी व हुड़ा प्रशासक इसके लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी है। उन्हांेने खेद व्यक्त किया कि अनेक बार गर्मी में सुबह सात-आठ बजे अधिकारियों को प्रत्यक्ष बिजली जलते दिखाने के बावजूद अगले दिन फिर वही स्थिति होती है। उन्हांेने बताया कि हरियाणा के अनेक शहरों के अधिकारियों को इस विषय में पत्र लिखा है। दिल्ली की तत्कालिन मुख्यमन्त्री शीला दीक्षीत को न केवल पत्र लिखा बल्कि फोन पर बात भी की थी वहीं दिल्ली के वर्तमान मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल को भी पत्र लिखे हैं परन्तु स्थिति में कोई सुधार नहीं होता। श्री गोयल ने रोष पूर्ण शब्दों में कहा कि किसी क्षेत्र की लाईट दिन में जलती होने पर यदि फोन करें तो उत्तर मिलता है कि लाईटें चैक कर रहे हैं जबकि स्वयं मौका पर जांच करने पर मीलों तक कोई टीम नहीं मिलती। उन्हांेने कहा कि दिसम्बर 2015 में फ्रांस में हुए अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में चिंता का यही विषय था और एक मत से विश्व के सभी देशों ने उर्जा बचत का संकल्प लिया था। सरकार सौर उर्जा के अधिकतम प्रयोग के लिए प्रयासरत है वहीं ये अधिकारी न केवल सरकारी नीति को पलीता लगा रहे हैं बल्कि पर्यावरण के शत्रु बने हुए हैं ंतथा जनता के स्वास्थय व धन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्हांेने मांग की है कि सरकार ऐसे लापरवाह अधिकारियों को अविलम्ब निलम्बित कर उनके विरूद्व कार्यवाही करें और अकारण तथा बेकार जलने वाली लाईटों पर लगाम लगाये।
शुक्रवार, 12 मई 2017

विशेष सन्दर्भ : बेकार जलती लाइटें।
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