- न्याय देवता शनिदेव की जयंती की महत्व । आखिरकार क्यों जन्म हुआ शनिदेव का ॥
मधुबनी (प्रतिभा सिंह निधि) हर जगह 25 मई को मनायी जयेगी शनि जयंती शनि जयंती सूर्यदेव एवं उनकी पत्नी संध्या के छाया के पुत्र शनिदेव की जन्म की एक अदभूत कहानी है । जब इस ब्रह्मांड मे सुर - असुर अपना वर्चस्व के लिये अन्याय करने लगे । तो विधि व्यवस्था कायम रखने के लिये ब्रह्मा , विष्णु , महेश तीनो देवताओं ने मिलकर न्याय पालक और अति शक्तिशाली देवों के रूप मे शनिदेव को सूर्यपूत्र के रुप में जन्म दिया । सूर्यदेव की पत्नी संध्या की छाया से पुत्र होने के कारण शनिदेव कुरूप एवं श्यामल रंग के हुये , जिस कारण वो अपने पिता के द्वारा अवहेलना का शिकार होते रहे । पिता के नफरत के कारण ही शनिदेव हमेशा क्रोधित और उदण्द होते गये । जिस कारण उन्हे कई बार कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ा। इस जगत मे शनिदेव एक ऐसे देवों के रुप मे है जो अपनी न्याय चक्र से सभी को दंडित कर उन्हे अच्छे मार्ग पर लाते है । सभी शनि की सातफेरी से डरते है, पर शनि की ढैइया जिस किसी व्यक्ति पर चलती है ,वो अपनी शनि व्रत कर पीपल मे गूर ,तिल,तेल ,लोहा ,उरद और काला कपड़ा दान कर इस साढ़े साती फेरा से मुक्ति पा सकते है । शनिदेव अन्यायों ,पापों और गलत कर्मों करने वाले पर अपनी साढ़े साती नज़र रखते है जिस किसी को इनकी नज़र पर गयी तो उन्हे वो आपार कष्टों के साथ अपनी न्याय चक्र से सही मार्ग पर लाते है । शनिदेव को इस ब्रह्मांड मे न्याय पालक के रूप मे जाना जाता है । शनिदेव अति क्रोधित और शक्तिशाली देवों मे से है । ईश्वर ने उन्हे सभी देवों से बलशाली एवं सृष्टि का न्यायकर्ता के रुप में स्थान दिया है । महाभारत हो या रमायण हो या कि विक्रमादित्य जैसे राजा का घमंड , सभी कथा शनिदेव के नियाय चक्र के कारण ही हुआ है ।
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