नियम/ कानून जनहित में बनाये जाते हैं, किन्तु झारखण्ड एक ऐसा राज्य है जहाँ नेता अपनी कुर्सी के लिए जनहित का गला घोंट रहे हैं। एसपीटी एक्ट के कारण सदानांे का विकास पूरी तरह बाधित हो चुका है। प्रदेश के राजनेता खुद ही कानून को तोड़कर जमाबंदी जमीन खरीद रहे हैं, घर-मकान बना रहे हैं और सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन का विरोध कर जनता को गुमराह कर रहे हैं।
दुमका (अमरेन्द्र सुमन) श्रीरामपाड़ा दुमका के केबी वाटिका में दिन शुक्रवार को सदान एकता परिसद के तत्वावधान में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गईं। परिसद् के केन्द्रीय अध्यक्ष राधेश्याम वर्मा की अपील व उनकी अध्यक्षता में आहुत इस बैठक में दुमका शहरी क्षेत्र व आस-पड़ोस से कई महत्वपूर्ण लोग एकत्रित हुए। इस अवसर पर प्रेम केशरी, राय सच्चिदानन्द, सुरेन्द्र यादव, कामेश्वर मंडल, रविकांत मिश्रा, रवि यादव, गायत्री जायसवाल, शशि सिन्हा, प्रदीप्त मुखर्जी, अंजनी शरण ने अपने-अपने विचार रखे। परिसद के केन्द्रीय अध्यक्ष राधेश्याम वर्मा ने कहा कि मौलिक एवं संवेधानिक अधिकारों के लिए झारखण्ड के छोटानागपुर व संताल परगना में सीएनटी व एसपीटी एक्ट मंे संशोधन के पक्ष व विपक्ष के बीच जंग छिड़ा हुआ है। उन्होंने कहा नियम/ कानून जनहित में बनाये जाते हैं किन्तु झारखण्ड एक ऐसा राज्य है जहाँ नेता अपनी कुर्सी के लिए जनहित का गला घोंट रहे हैं। बैलगाड़ी से हवाई जहाज, व रॉकेट के माध्यम से चाँद पर पहुँच गये हैं लोग इस इंटरनेट के इस जमाने में। घर बैठे सात समुन्दर पार के शहरों को देख सकते हैं। विकास के इस दौर में हम बहुत ही आगे निकल चुके है। परंतु 1949 में जो एसपीटी एक्ट बना है। वर्तमान समय एवं जरूरत को देखते हुए इस एक्ट में संशोधन जनहित का माँग बन चूका है, भारतीय संविधान में सेकड़ों संशोधन हो चूके हैं तो फिर एसपीटी एक्ट में संशोधन क्यों नहीँ ? परिषद् के बैनर तले आहुत इस बैठक में अन्य नेताओं ने भी अपना-अपना उद्गार प्रकट करते हुए कहा कि आज जिस कानून की अवेहलना हो रही है जनता अपनी जरूरतों को देखते हुए ऐसे कानून को तोड़ने पर विवश है। इधर सरकार विवश होकर कुछ कर नही पा रही है। ऐसे कानून का औचित्य ही क्या रह गया है ? मात्र राजनीतिक कारणों से संशोधन का विरोध किया जा रहा है। वैसा किसान जिसके पास 50-60 बीघा जमीन है मजदूरी करने पर विवश है। क्या उनके बच्चों को अच्छा भोजन, चिकित्सा, शिक्षा का अधिकार नही है। क्या राजनेता ही हमारे जीवन के भरण पोषण के ठीकेदार बन गए हैं। हमारे प्रदेश के राजनेता खुद ही कानून को तोड़कर जमाबंदी जमीन खरीद रहे हैं, घर-मकान बना रहे हैं और एसपीटी एक्ट में संशोधन का विरोध कर जनता को गुमराह कर रहे हैं। जनजाति समुदाय के भाई-बहन ऐसे नेताओं के बहकावे में आकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी खुद मार रहे हैं। टीएसी (ट्राईवल एडवायजरी कमिटी) कमिटी में भी जम कर राजनीति हो रही है। सदान एकता परिषद जनहित की भावना का कद्र करते हुए सरकार से यह माँग करती है कि गैर जनजाति (सदान) के जमीनों को एसपीटी एक्ट से मुक्त कर दिया जाय। क्योंकि ै.इस एक्ट के कारण सदानांे का विकास पूरी तरह से बाधित हो चुका है। इस प्रमंडल के सदान अपना बुरा-भला खूब समझते है। नेता सदानों के ठीकेदार न बनें। नेता जन प्रतिनिधि हैं वे जन प्रतिनिधि बनकर ही जनता की सेवा करें। आदिवासी-मूलवासी को एक साथ जोड़कर इस प्रदेश में सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन पर विरोध व विद्रोह की राजनीति की जा रही है। सदान नेता श्री वर्मा ने कहा झारखण्ड बनने के बाद यदि किसी का भारी नुकसान हुआ है तो वह है सदानों का। पिछड़ी जातियो के आरक्षण में कटौती, पंचायत चुनाव में मुखिया, प्रमुख एवं जिला परिषद अध्यक्ष बनने से गैर आदिवासियों को पूरी तरह बंचित कर दिया गया। नये परिसीमन के तहत लोकसभा व विधानसभा का चुनाव नही कराया जाना। मुलवासियंों की जमीन का जबरन कब्जा तथा सदानों को बाहरी साबित करने का असफल प्रयास लगातार किया जा रहा है। गैर जनजाति के जमीन को एसपीटी एक्ट के दायरे से मुक्त करने की मांग सदान एकता परिषद् करती है। कार्यक्रम में मुख्य रूप से परमानन्द प्रशाद, लक्ष्मीनारायण, रामाकांत साह, नविन चंद्र ठाकुर, मो अली भारती, मनोज घोष, रीना मंडल, कृष्णा दास, सावित्री सिंह, लक्ष्मीकांत झा लोकेश, अशोक साह, हैदर अली, दिनेस केशरी, मनोहर केशरी, सोमेश्वर पंडित, राजेंद्र राय, अशोक भगत, मो रोशन, एवं बड़ी संख्या में अन्य कई सदस्य उपस्थित थे।
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