बिहार : भाकपा माले के पटना जनकन्वेंशन के राजनीतिक प्रस्ताव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 8 अगस्त 2017

बिहार : भाकपा माले के पटना जनकन्वेंशन के राजनीतिक प्रस्ताव

 पटना 8 अगस्त 2017, भारतीय नृत्य कला मंदिर,

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1. बिहार में चोर दरवाजे से भाजपा ने सत्ता हथिया ली है और अब नीतीश कुमार भाजपा की राजनीति के मोहरा भर रह गये हैंैं. बिहार की आम जनता तथा तमाम अमन-चैन व लोकतंत्र पसंद आवाम को नीतीश कुमार के इस आचरण से गहरा आघात लगा है. जिस आनन-फानन में एनडीए सरकार का गठन हुआ, उसे तख्तापलट और चरम राजनीतिक अवसरवाद के अलावा कुछ और नहीं कहा जा सकता. भाजपा-संघ के विचारक आॅपरेशन बिहार की तुलना हिटलर के 1940 के तूफानी हमले और 1967 में मात्र छह दिन के युद्ध में इजरायल को फिलीस्तीन पर प्राप्त सफलता के साथ कर रहे हैं. जाहिर है, व्यक्तिगत भ्रष्टाचार के बहाने भाजपा ने अपनी सोची-समझी राजनीति के हिस्से के बतौर आॅपरेशन बिहार को अंजाम दिया है. बिहार जनादेश 2015 को हड़पकर और लोकतंत्र की हत्या करके राज्य में कायम किए गए अवैध भाजपा-जदयू सरकार के खिलाफ लोकतंत्र की रक्षा के लिए निर्णायक संघर्ष आज वक्त की मांग है. यह जनकन्वेंशन भाजपाइयों के लोकतंत्र विरोधी इस आचरण को गांव-गांव में फैलाने और उसके खिलफ जनांदोलनों की मजबूती व विस्तार का आह्वान करता है.


2. सत्ता हथियाने के तुरत बाद भाजपा-संघ की विभाजन की राजनीति का खुला खेल शुरू हो चुका है. पहले भोजपुर के रानीसागर और फिर रोहतास में बीप्फ के नाम पर अफवाह, उन्माद-उत्पात और अल्पसंख्यक समुदाय में दहशत का माहौल कायम करके सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिशें बताती है कि भाजपा बिहार को गुजरात बना देने के अपने अभियान में जी-जान से जुट गयी है. यह कन्वेंशन भाजपा की इन नापाक कोशिशों को बेनकाब करने, देश की गंगा-जमुनी तहजीब, जनता की एकता व सांप्रदायिक सौहार्द की हिफाजत का संकल्प लेता है. साथ ही, बीफ के नाम पर भोजपुर में गिरफ्तार तीनों लोगों की रिहाई की मांग करता है.

3. एक तरफ देश में सांप्रदायिक जहर फैलाया जा रहा है, तो दूसरी ओर ‘स्वच्छ भारत’ जैसे अभियान भी जनता के दमन-उत्पीड़न के नए औजार बन गये हैं. राजस्थान में शौच के दौरान महिलाओं की वीडियोग्राफी/फोटाग्राफी का विरोध् करने पर भाकपा-माले नेता काॅ. जफर हुसैन की हत्या कर दी गयी. बिहार में भी, रोहतास के खुर्माबाद, अकोढ़ी गोला और सीतामढ़ी में खुले में शौच के नाम पर गरीबों पर जुल्म ढाने के मामले सामने आए हैं. खुर्माबाद में तो ओडीएफ टीम का ऐसा आतंक मचा कि बच्चे नदी में कूद गए, किसी प्रकार उनकी जान बचाई जा सके. अकोढ़ीगोला में 2 लोगों पर 1-1 हजार का जुर्माना लगाया गया है. सीतामढ़ी में खुले में शौच के आरोप में 92 लोगों की गिरफ्रतारी की गयी और उनमें 2 को जेल भी भेज दिया गया. ठीक उसी प्रकार, बिहार में शराबबंदी कानून के काले प्रावधानों ने भी गरीबों के ऊपर नए किस्म का हमला किया है. जहां एक ओर बिहार में शराबबंदी के बावजूद शराब की होम डिलीवरी जारी है, वहीं मात्र 40 दिनों के भीतर जहानाबाद के मस्तान मांझी व पेंटर मांझी को सजा सुना दी गयी. यह कन्वेंशन स्वच्छ भारत अभियान और बिहार में शराबबंदी कानून की आड़ में दलित-गरीबों, महिलाओं को अपमानित-प्रताड़ित करने की कड़ी निंदा करता है, शराबबंदी कानून के काले प्रावधनों को वापस लेने और मस्तान मांझी व पेंटर मांझी की रिहाई की मांग करता है.

4. बिहारशरीफ में ‘नाॅट इन माइ नेम’ और इंसाफ मंच के बैनर से अमन मार्च आयोजित कर रहे प्रदर्शनकारियों पर बर्बर लाठीचार्ज व उनकी गिरफतारी अत्यंत शर्मनाक है. यह कन्वेंशन दलित-अकलियतों के न्याय के लिए लंबे समय से संघर्षरत इंसाफ मंच को नालंदा प्रशासन द्वारा ‘संदेहास्पद संगठन’ बताये जाने की कड़ी निंदा करते हुए सभी आंदोलनकारियों पर से बिना शत्र्त मुकदमा वापसी और रिहाई की मांग करता है.
5. बिहार में एक ओर शिक्षा की स्थिति लगातार बदतरीन होते जा रही है, दूसरी ओर जब शिक्षा के सवाल पर भोजपुर में आइसा-इनौस के साथी सड़क पर स्कूल अभियान चला रहे हैं, तो उन पर भी मुकदमे थोप दिए जा रहे हैं. यह जाहिर करता है कि बिहार सरकार शिक्षा के प्रति घोर असंवेदनशील है. खासकर दलित-कमजोर समुदाय से आने वाले बच्चों पर इसकी जबरदस्त मार पड़ रही है और उन्हें साजिशन शिक्षा से वंचित रखने का खेल चल रहा है. यह कन्वेंशन सड़क पर स्कूल अभियान चला रहे सभी आंदोलनकारियों पर दर्ज किये गए फर्जी मुकदमों को वापस लेेने और मुकम्मल तौर पर समान स्कूल प्रणाली आयोग की रिपोर्ट लागू करने की मांग करता है.
6. 9 अगस्त का दिन भारत की आजादी की लड़ाई का एक ऐतिहासिक दिन है, जब 1942 में साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ निर्णायक प्रतिरोध की शुरूआत हुई थी. बिहार इस लड़ाई के अग्रिम मोर्चे पर था. लेकिन आज हमारे देश के हुक्मरान अमेरिका व इस्राएल जैसी साम्राज्यवादी ताकतों के आगे नतमस्तक हो चुके हैं. दूसरी ओर देश में फासीवादी हमलों, नफरत व हिंसावादी विचारों को राजनीतिक संरक्षण देते हुए अघोषित आपातकाल की स्थिति ला दी गयी है. ऐसी स्थिति में आज का कन्वेंशन 1942 के आन्दोलन की स्पिरिट को याद करते हुए ‘नफरत व उन्माद की राजनीति’ के खिलाफ ‘भूमि-शिक्षा-रोजगार का अधिकार आंदोलन’ और साम्राज्यवादपरस्ती के खिलाफ देश की स्वतंत्रता व संप्रभुता को अक्षुण्ण रखने के संकल्प के साथ आंदोलनों को तेज करने का आह्वान करता है.

7. मोदी सरकार की काॅरपोरेट नीतियों के कारण आज जहां एक तरफ बेरोजगार नौजवानों की फौज लगातार बढ़ती जा रही है, तो दूसरी ओर सरकारी व पक्की नौकरियां उसी तेजी से खत्म की जा रही हैं. हर साल 2 करोड़ नई नौकरियाँ देने का वादा था, लेकिन परिणाम ठीक उलटा है. शिक्षा के अधिकार और विश्वविद्यालयों पर हमले तथा शिक्षा बजट में लगातार कटौती तो जारी ही है. न केवल छात्र-नौजवान, बल्कि विकास के नाम पर दलितों-आदिवासियों को जल-जंगल-जमीन और अन्य संसाधनों से बेदखल करके काॅरपोरेट घराने के हवाले किया जा रहा है. किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं. नोटबंदी ने बेरोजगारी बढ़ाई है तो जीएसटी ने महंगाई की मार और तेज कर दी है. जीएसटी ने जहां देशी-विदेशी कंपनियों का रास्ता आसान बनाया है, वहीं छोटे व्यवसायियों को जटिलताओं के मकड़जाल में उलझा दिया है और उनके सामने आज गंभीर संकट उपस्थित हो गये हैं.

जहां तक बिहार का सवाल है, तो रोजगार सृजन तो दूर, ठेका-मानेदय पर भी शोषण जारी है. सरकारी विभागों के 6 लाख से ज्यादा पद खाली पड़े है. बेरोजगारी भत्ता का वायदा कर स्वंय सहायता भत्ता भी नहीं दिया जा रहा है. यह कन्वेंशन केंद्र-राज्य सरकार के रोजगार विहीन विकास के इस माॅडल के बरक्स जनपक्षीय विकास की दिशा पर जोर देते हुए महंगाई नियंत्रित करने, युवाओं को शिक्षा-रोजगार प्रदान करने, काॅरपोरेट लूट पर रोक लगाने, किसानों की कर्ज माफी, मनरेगा जैसे ग्रामीण योजनाओं में काम के दिनों को बढ़ाने आदि की मांग करता है.

8. चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष का ढकोसला करने वाली नीतीश सरकार चास-वास की जमीन को लेकर आंदोलनरत दलित-गरीबों के प्रति संवेदनहीन रुख अपना रही है. आज उलटे गरीबों को जमीन से उजाड़ने के लिए दमन अभियान तेज कर दिया गया है. जिस जमीन पर गरीब परिवार बरसो-बरस से बसे हुए हंै, वहां से भी उनको बेदखल किया जा रहा है और उसे काॅरपोरेट घरानों अथवा बिल्डरों के हवाले कर देने की पुरजोर कोशिशें जारी हैं. मोतिहारी चीनी मिल के मजदूर-किसानों का बकाया अब तक नहीं मिल सका है, जबकि इस मामले में दो लोग आत्महत्या कर चुके हैं. दिल्ली-पटना की सरकारों ने मोतिहारी के मजदूर-किसानों को लगताार ठगने का ही काम किया है. यह कन्वेंशन सरकार के इस रुख की कड़ी निंदा करते हुए मोतिहारी चीनी मिल के मजदूर-किसान के बकाये के अविलंब भुगतान की मांग करता है. साथ ही, यह भी मांग करता है कि सभी गरीबों को आवास के लिए 5 डिसमिल जमीन व अन्य सुविधायें अविलंब मुहैया कराया जाए, आंदोलनों के दौरान उन पर थोपे गये सभी मुकदमे वापस लिये जाएं और मुकम्मल तौर पर भूमि सुधर आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए.

कभी लव-जिहाद, कभी गाय तो कभी धर्म व युद्दोन्माद के नाम पर नफरत व विभाजन का ये खेल सत्ता में बैठे नेता दरअसल बुनियादी सवालों पर अपनी नाकामी और वादाखिलाफी को छुपाने के लिए ही कर रहे हैं. इसलिए मोदी-नीतीश द्वारा विभाजन की राजनीति को शिकस्त देने की जरूरत है. बिहार में भाजपा की विभाजन की राजनीति के लिए कोई जगह नहीं है और इसे हम किसी भी कीमत पर गुजरात नहीं बनने देंगे. बिहार की जनता से इस कन्वेंशन की अपील है कि भाजपा-संघ ब्रिगेड के इस दोतरफा हमले के खिलाफ अपने हक-अधिकार, लोकतंत्र, जनता की एकता, सांप्रदायिक सौहार्द के लिए अपनी आवाज बुलंद करें और साहस के साथ प्रतिरोध का संकल्प लें!

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