विशेष : प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में फिरंगियों से लड़े थे पैना के रणबांकुरे - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 8 अगस्त 2017

विशेष : प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में फिरंगियों से लड़े थे पैना के रणबांकुरे

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देवरिया, उत्तर प्रदेश में देवरिया जिले का बरहज तहसील का पैना गांव भी आजादी के जंग का गवाह रहा है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में फिरंगियों की दासता की मुक्ति के लिये जहां पूरे देश में लोग अंग्रेजों से लड़ाई लड़ रहे थे, वहीं पैना गांव के लोगों ने कंधे से कंधे मिलाकर साथ दिया। 31 जुलाई 1857 को इस गांव पर अंग्रेज़ी फौज ने जल (सरयू नदी) और जमीन दोनों ओर से हमला किया था। उस समय पैना के आजादी के सिपाही अन्य मोर्चों पर फिरंगियों से जूझ रहे थे। अंग्रेजों के आग बरसाते तोप के गोलों ने पूरे गांव को खाक कर दिया था। उस लड़ाई में 85 लोग मौके पर ही शहीद हो गये थे तथा 200 के करीब लोग जिसमें बच्चें, बड़े और बुजुर्ग आग में जल मरे थे। इस लडाई में जीते जी फिरंगियों के हाथ न आने की कसमें खाने वाली 100 माताओं ने सरयू नदी में कूद कर अपनी सतीत्व की रक्षा की थी। इसके अलावा पैना के दस आजादी के सिपाही मैरवा के जंग में अंग्रेजों से लड़ते हुये शहीद हुये थे। 10 मई 1857 को मेरठ में भड़की विद्रोह की चिंगारी पैना भी पहुंची। जमीदारों ने पैना गांव निवासी ठाकुर सिंह के नेतृत्व में पलटन तैयार की। 31 मई 1857 को लगभग 600 बागियों ने गोरखपुर से पटना और गोरखपुर से आजमगढ़ जाने वाले नदी मार्ग पर बरहज के पास कब्जा कर लिया। आजमगढ़ जाने वाले अंग्रेजी टुकड़ी की रसद और खजाने काे लूट लिया। पैना से नरहरपुर तक के क्षेत्र को आजाद घोषित कर दिया। अंग्रेज सेना के जवानों को जान बचा कर भागने काे मजबूर कर दिया। उस समय आजमगढ़ अंग्रेज फौज की प्रमुख छावनी थी। आजमगढ़ में जाने वाली टुकड़ी को रोकने की रणनीति पैना के बागियों ने बनायी थी। 


इतिहासकार बताते हैं कि अंग्रेजों से बगावत करने की पैना गांव की कई खुबियां रहीं हैं। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यहां के लोगों ने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिये एक दक्ष सेना संगठित की थी। समकालीन बागी रजवाड़े और जमींदार नरहरपुर के राजा हरि नारायण सिंह, सतासी के राजा उदित नारायण सिंह, हरिकृष्ण सिंह के साथ शाहपुर के इनायत अली ने इस दक्ष सेना में शामिल होकर अंग्रेजों से लोहा लिया था। इन राजाओं और जमींदारों को संगठित कर पैना गांव के अयोध्या सिंह, ठाकुर सिंह, माधों सिंह, पल्टन सिंह, गुरूदयाल सिंह ने 600 से अधिक हथियार बन्द सैनिको को लेकर अंग्रेजों से आजादी की जंग शुरू कर दिया। क्षेत्र में गदर की अगुवाई और अन्य बागियों से बेहतर तालमेल के कारण उस समय पैना के लोगों को बहुत कुछ भुगतान पड़ा था। स्वतंत्रता के दीवानों के हौसलों में कोई कमी नहीं आई। पैना में ठाकुर सिंह के नेतृत्व में सैनिकों ने अंग्रेजों की नाक में दमकर दक्षिणी छोर से गांव पर हमला बोला। सरयू नदी में होरंगोटा स्टीमरकर हार से ब्रिटिश हुकूमत घबरा गई। झल्लाई अंग्रेज सेना ने 20 जून 1857 को मार्शल लॉ घोषित कर दिया। अंग्रेजों ने 31 जुलाई 1857 को पैना पर जल और थल मार्ग से हमला कर दिया। अंग्रेजी पलटन ने संयुक्त रूप लगाकर गांव पर तोप के गोले बरसा कर गांव को बर्बाद कर दिया। गोलों से बचने के लिए ग्रामीण जंगल की तरफ भागे। अंग्रेजी सेना ने जंगल में आग लगा दिया।

पैना के डा. बीके सिंह का कहना है कि लोगों की इतनी शहादत के बाद भी जंगे आजादी के इतिहास में इसे जो जगह मिलनी चाहिए वह नहीं मिली। पैना गांव जंगे आजादी का अहम किरदार है। यह 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रणबांकुरों की धरती है। जांबाजों ने इसे दो माह तक आजाद रखा। जब तक उनके शरीर में रक्त की अंतिम बूंद बची रही, फिरंगी इस धरती पर कदम नहीं रख पाए। शहीदों की याद में स्मारक बना पर, अफसोस सरकारी उपेक्षा से यादें रो रही हैं। यहां सतीहड़ा नाम से बना स्मारक जमींदारों की शहादत व महिलाओं के जौहर का प्रतीक है। 1997 में सितंबर माह में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के हाथों शहीद स्मारक की आधारशिला रखवाई गयी थी। स्मारक बन तो गया, मगर उसके बाद किसी भी सरकार अथवा जनप्रतिनिधि को उसके रख-रखाव और विकास की सुधि नहीं आई। पैैना गांव निवासी भगवत सिंह का मानना है कि देश को आज़ादी पूर्वजों की उस लड़ाई के कारण मिली है जिसे उन्होंने अपनी गरीबी, संसाधनों की कमी और अनेक लाचारी के बाद भी जाति, पंथ, भौगोलिकता, भाषा की सीमा से बाहर जाकर लड़ा था। पूर्वांचल अगर आज पिछड़ा, गरीब या उद्योगविहीन क्षेत्र के रूप में जाना जाता है तो इसके पीछे भी उसका बागी तेवर रहा है| पूर्वांचल के नागरिकों ने गुलामी को मन से कभी स्वीकार नहीं किया और चाहे मुगल रहे हों या अंग्रेज, जब भी और जहां भी मौका मिला, यहां के लोगों ने उनके विरूद्ध जम कर संघर्ष किया| यही कारण था कि विदेशी शासकों को पूर्वांचल खटकता रहा और वे यहां पैर नहीं टिका सके। उन्हें जब भी विकास करने की याद आई- चाहे वह सड़क, उद्योग, कृषि, नहरें और अन्य साधन रहें हों, पूर्वांचल को सदैव छला गया। यहां केवल थाना, तहसील,जेल तो बनाए गए, जिससे राजस्व वसूली हो सके। जब विकास की बात याद आई तो वे उन क्षेत्रों की ओर मुड़ गए, जहां के लोगों ने विदेशियों की चापलूसी की, उनकी आवभगत की और सेना में भर्ती होकर उनकी ओर से अपने लोगों पर अत्याचार किया| श्री सिंह का मानना है कि यहां की मिट्टी और पानी का कुछ ऐसा असर है कि यहां का निवासी आत्मा और मन से सदैव स्वतंत्र, मस्त और अन्याय, अनाचार शोषण के खिलाफ आवाज उठाने वाला बना रहता है|

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