दुमका : दर्द कहूँ या पीड़ा पुस्तक का विमोचन - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 20 सितंबर 2017

दुमका : दर्द कहूँ या पीड़ा पुस्तक का विमोचन

  • सृजन की धरती पर ज्ञान की फसल उगाने को आतुर डा0 हनीफ

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दुमका (अमरेन्द्र सुमन) एस पी महिला महाविद्यालय, दुमका में अंग्रेजी विभाग के सहायक शिक्षक डा0 हनीफ की पुस्तक दर्द कहूँ या पीड़ा का विमोचन दिन बुधवार को एसकेएमयू, दुमका के कुलपति डा0 मनोरंजन प्रसाद सिन्हा ने की। इस अवसर पर डा0 रंजीत कुमार सिंह, मो0 शमशादुल्लाह, डा0 हनीफ व विश्वविद्यालय के पदाधिकारीगण मौजूद थे। दर्द कहूँ या पीड़ा डा0 हनीफ की आठवीं पुस्तक है। कुल 115 पृष्ठों में आठ कहानियों के इस संग्रह में कहानीकार ने सामाजिक परिदृश्यों को उभारा है। पूरी तरह समकालीन व वस्तुपरक पुस्तक में काली बछिया कहानी सबसे मर्मस्पर्शी है। पशुओं के मानवीकरण की बड़ी ही कुशलता व समग्रता के साथ पटल पर उन्होंने रखने का प्रयास किया है। वे लिखते हैं-पशु के सीने में भी दिल होता है, संवेदनाएँ होती हंै। समझ होता है। सोच होती है, जिसे मानव समझ कर भी अबूझ रहता है। दर्द कहूँ या पीड़ा में  कहानीकार ने पत्थर दिल वालों को भी रुला दिया है। उनकी भी आँखों में आंसू आ जाते हैं। जिस तरह अपनी लेखनी से दिल छू लेने वाली कहानी उन्होंने लिखी है निःसन्देह उसकी अभिव्यक्ति काफी कठिन है। यह पुस्तक प्रेणादायक व जीवन में आत्मसात करने वाली है। कहानी में एक जगह उन्होंने जिक्र करते हुए कहा है ’’हाँ मां, मैंने तुमसे झूठ कहा था। सच यह है कि जिस साड़ी को पहनने में तुम असहज महसूस कर रही थीं, ट्रेम्बलिंग फील कर रही थी। वह छोटे बाबू की नहीं, मेरे बेचे हुए खून से खरीदी हुई थी.........।  राख की सौगंध में लेखक ने शाश्वत प्रेम के स्थायित्व व  इसके महत्व को समझाने का प्रयास किया है। हाँ बेटा, मैं तुम्हारी भावना को समझती हूँ। प्रेम तो एक तपस्या है। त्याग है। बलिदान है।  बलिदान है और पूजा है। प्रेम ,आराधना है। प्रेम पाने का नहीं ,खोने का नाम है। अपनी आँखों में उनकी तस्वीर उतारो फिर ,देखो हर समय तुम उन्हें ही पाओगे। इस कहानी संग्रह में दरम्यान व अनकही कहानी बिल्कुल एक-दूसरे से अलग हैं। तमाम कहानियाँ विस्तृत अर्थों को पिरोये हुए है। मानवीय संवेदना, करुणा, प्रेम, तपस्या व अन्य अनछूए पहलुओं को एक साथ समेटते हुए उन्हे कागज पर उकेरने में फनकार डा0 हनीफ हमेशा ही कुछ नया करने की जद्दोजहद में खुद को इतना तपा देते हैं कि उनकी रचनाओं को पढ़ने वाला उनका मुरीद बनकर रह जाता है। डा0 हनीफ की इस पुस्तक के पूर्व कई पुस्तकें विभिन्न प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की जा चुकी है। उपन्यास पत्थर के दो दिल व कहानी संग्रह कुछ भूली बिसरी यादें, डा0 हनीफ की खूब चर्चित कृति रही है। अंग्रेजी में भी उन्होंने कई पुस्तकों व कविता संग्रह की रचना की है। वेयर....यू व अरुण कोलात्कार्स जेजुरी ए क्रिटिकल स्टडी को काफी सराहा गया है। ’’और इस तरह एक दिन’’, 146 कविताओं का संकलन है। ,हालिया प्रकाशित इस काव्य संग्रह में भी उन्होंने जीवन की सच्चाईयों से पाठकों को अवगत कराने का प्रयास किया है। रचना है। ’’ए लिटिल बर्ड’’, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित इनकी अंग्रेजी काव्य पुस्तक हैं। सृजन की धरती पर हल-बैल लिये डा0 हनीफ ज्ञान की फसल उगाने को आतुर हैं।

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