विशेष : सैकड़ों साल पुरानी मुथरा की रामलीला देखने आते है प्रवासी भारतीय - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 14 सितंबर 2017

विशेष : सैकड़ों साल पुरानी मुथरा की रामलीला देखने आते है प्रवासी भारतीय

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मथुरा, धार्मिक मान्यताओं से समझौता न करने के कारण सैकड़ों साल पुरानी मथुरा की रामलीला को देखने वालों में प्रवासी भारतीयों की अच्छी खासी भीड होती है। रामलीला में राधेश्याम रामायण एवं बाल्मीकि रामायण का पुट तो कहीं कहीं पर मिल जाता है लेकिन फिल्मों की “पैरोडी” आदि से यह कोसों दूर है। यहां की रामलीला में पात्रों का चयन भी कम आयु विशेषकर किशोरावस्था से भी कम आयु के बालकों में से किया जाता है। वर्ण बंधन के बाद उन्हें देवतुल्य सम्मान दिया जाता है। नियम का पालन उसी के अनुरूप किया जाता है। रामलीला सभा ने ऐसे कलाकार भी तैयार किये हैं जिन्होंने विभिन्न स्वरूपों के रूप में कई दशक तक काम किया है। यहां की रामलीला और रासलीला अद्वितीय होने के कारण इनकी सराहना विश्व में होती है। इन्हें देखने के लिए प्रवासी भारतीय तक लालायित रहते हैं। रामलीला देखने वालों में प्रवासी भारतीयों की अच्छी खासी भीड होती है। सभा के वरिष्ठ पदाधिकारी गोपेश्वरनाथ चतुर्वेदी ने आज यहां बताया कि मथुरा की रामलीला की पहचान मर्यादा की रक्षा के रूप में है। मथुरा की रामलीला सैकड़ों साल से चली आ रही है लेकिन पिछले 150 वर्ष का इतिहास मथुरा की रामलीला सभा मे आज भी मौजूद है। जनकपुरी के माध्यम से समाज के हर वर्ग को जोड़ने का प्रयास किया जाता है।


श्री चतुर्वेदी ने बताया कि यहां की रामलीला की दूसरी विशेषता इसे जीवन्त बनाने का प्रयास है। श्रीराम बारात जहां अवधपुरी से जनकपुरी तक जाती है वहीं वनवास लीला में मुनिवेश में श्रीरामजी की सवारी श्रीकृष्ण जन्मस्थान से चलकर स्वामीघाट पहुंचती हैं जहां से सुमन्त से विदायी के बाद नाव द्वारा श्रीराम, लक्ष्मण जानकी भारद्वाज ऋषि के आश्रम पहुंचते हैं। इसी प्रकार भरत मनावन लीला भी गोविन्दगंज से प्रारंभ होकर लाल दरवाजे में निषादराज से मिलती है। सभा के प्रधानमंत्री बनवारीलाल गर्ग ने बताया कि प्रारम्भ की दस लीलाएं एवं अंतिम लीला राजगद्दी जहां श्रीकृष्ण जन्मस्थान के लीला मंच में होती है वहीं शेष लीला चित्रकूट पर तथा विजय दशमी की लीला महाविद्या मैदान में होती है। उन्होंने बताया मथुरा की रामलीला की दूसरी विशेषता पात्रों का चयन एवं उनकी तालीम है। पात्रों का चयन जहां चार महीने पहले से शुरू हो जाता है वहीं पात्रों के चयन में परिवार का संस्कारित होना पहली शर्त होती है। लगभग एक महीने पहले से तालीम शुरू हो जाती है तथा एक पखवारे पहले इसमें तेजी आ जाती है। उन्होंने बताया कि रामलीला सभा के मंत्री बनवारीलाल गर्ग ने बताया कि नयी प्रतिभाओं को लीला की ओर आकर्षित करने के लिए संस्था ने इस वर्ष से रामलीला के पुराने कलाकारों को सम्मानित करने का निश्चय किया है। वरिष्ठ पदाधिकारी एवं पूर्व मंत्री रविकांत गर्ग का कहना था कि मथुरा की रामलीला की अन्य विशेषता केले और फूलों की सजावट होती है। राम बारात में जहां दस अवतारों की झांकियां विशुद्ध वातावरण में केले और फूल की सजावट में निकलती हैं। किसी भी फूहड़ झांकी को राम बरात में शामिल नहीं किया जाता है।

यहां की रामलीला की विशेषता के कारण ही राम बारात में भाग लेने के लिए उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से भी झांकियां आती हैं। श्री गर्ग ने बताया कि मथुरा की रामलीला की सात्विकता एवं धार्मिकता के कारण ही यहां की 250 से अधिक मंडलियों ने देश के विभिन्न भागों में अपनी पहचान बनायी है। राजगद्दी की भव्यता, सजावट, पवित्रता का अनुभव इसे देखकर ही लगाया जा सकता है। सभा के पूर्व प्रधानमंत्री जुगल किशोर अग्रवाल ने बताया कि मथुरा की रामलीला में विशेष रूप से जनकपुरी में हिंदू समाज को जोड़ने का प्रयास होता है। यहां की रामलीला की पहली शर्त मर्यादा होती है। राम बारात वाले दिन तो कन्हैया की नगरी मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की नगरी बन जाती है। सभा के पदाधिकारी सर्वेश शर्मा एडवोकेट ने बड़े गर्व से कहा कि रामलीला सभा ने ऐसे कलाकार भी तैयार किये हैं जिन्होंने विभिन्न स्वरूपों के रूप में कई दशक तक काम किया है। यहां की रामलीला और रासलीला अद्वितीय होने के कारण इनकी सराहना विश्व में होती है। इन्हें देखने के लिए प्रवासी भारतीय तक लालायित रहते हैं।

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