फासीवाद के पुनरूत्थान को महान नवम्बर क्रांति की स्पिरिट से ही पीछे धकेला जा सकता है. : माले - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 7 नवंबर 2017

फासीवाद के पुनरूत्थान को महान नवम्बर क्रांति की स्पिरिट से ही पीछे धकेला जा सकता है. : माले

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पटना 7 नवम्बर 2017, महान नवम्बर क्रांति की सौवीं वर्षगांठ पर भाकपा-माले ने कहा है कि आज फासीवाद के पुनरूत्थान केा महान नवम्बर क्रांति के स्पिरिट से ही पीछे धकेला जा सका है. साथ ही, इस ऐतिहासिक अवसर पर पूरे राज्य में गांव-मुहल्लों में झंडोत्तोलन कर उसकी प्रेरणादायक विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया गया. पटना में राज्य कार्यालय के अलावा चितकोहरा व अन्य जगहों पर भी ेऐसे आयोजन संपन्न हुए.

राज्य कार्यालय में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि आज जब पूरी दुनिया में फासीवाद की ताकतें अपने पुनरूत्थान के प्रयास में लगी हुई है, ऐसे वक्त में महान नवम्बर क्रांति की स्पिरिट को ताजा करने की आवश्यकता है. नवम्बर क्रांति हमें इस बात की प्रेरणा देता है कि जिस प्रकार 1917 में साम्राज्यवादी सरगनाओं को धत्ता बताते हुए मजदूरों व किसानों ने रूस में अपना राज कायम किया था, हम भी ऐसा करके दिखा सकते हैं. आज जब अमरीका द्वारा विश्व पर एकध्रुवीय प्रभुत्व कायम करने का बेताबीभरा अभियान देख रहे हैं, और अब डोनाल्ड ट्रम्प तथा विभिन्न देशों में उसकी तुरही बजाने वालों के उत्थान, यहां तक कि हिटलरी ब्रांड के फासीवाद के पुनरुत्थान का खतरा बहुत वास्तविक लग रहा है, तब महान नवम्बर क्रांति की सौवीं वर्षगांठ का पालन हमारे लिए केवल विश्व-इतिहास की एक निर्णायक घड़ी को बुलंद करने तक सीमित नहीं है, बल्कि वर्तमान घड़ी का मुकाबला करने तथा संकटग्रस्त वैश्विक पूंजीवाद तथा पूंजीवादी लोकतंत्र के बुरी तरह छिन्न-विच्छिन्न एवं जर्जर हो चुके प्रतिमान द्वारा हमारे सामने पेश की गई चुनौतियों का क्रांतिकारी जवाब विकसित करने के लिये उस क्रांति की विभिन्न शिक्षाओं और प्रेरणा को ग्रहण करने के दृढ़प्रतिज्ञ संकल्प का अवसर है.

वरिष्ठ माले नेता व समकालीन लोकयुद्ध के संपादक बृज बिहारी पांडेय ने कहा कि नवम्बर क्रांति ने समूची दुनिया में समाजवाद के विचारों को फैलाने तथा कम्युनिस्ट आंदोलनों को प्रेरित करने में सबसे बड़ा योगदान किया था. रूस का एक पिछड़े देश से अग्रगामी राष्ट्र में परिवर्तन, जिसमें वहां के सभी तबकों की मेहनतकश जनता को जिस किस्म के बराबरी के अधिकार मिले, वैसा पहले किसी भी पूंजीवादी देश में नहीं देखा गया था और वहां मुनाफे के भूखे बाजार अर्थतंत्र की जगह जन-पक्षीय योजना-आधारित अर्थतंत्र का उदय हुआ, जिसने समाजवाद के संदेश को दूर-दूर तक फैला दिया. सचमुच, सोवियत संघ के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय असर ने उसे दुनिया भर के उन देशों के लिये गोलबंदी का केन्द्र बना दिया था जो स्वतंत्र एवं समृद्ध राष्ट्रों के रूप में उभरने के लिये औपनिवेशिक एवं सामंती बाधाओं पर जीत हासिल करने का प्रयत्न कर रहे थे. बीसवीं सदी के अधिकांश भाग में सोवियत संघ पूंजीवादी दुनिया का शक्तिशाली विरोध-केन्द्र बना रहा.

अन्य वक्ताओं ने कहा कि हिटलर के फासीवादी आक्रमण के खिलाफ प्रतिरोध की दीवार के बतौर, जिसने फासीवादी हमले को सीधे अपने सीने पर झेला और अंततः युद्ध में विजय प्राप्त की, जिससे समूची दुनिया ने भारी राहत की सांस ली और चारों ओर खुशी छा गई, और अंततः अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व-प्रभुत्व कायम करने के प्रयासों के खिलाफ प्रतिद्वंद्वी ध्रुव के बतौर उसकी भूमिका को कत्तई भुलाया नहीं जा सकता. दुनिया के रंगमंच से सोवियत संघ के तिरोधान के फलस्वरूप हम बड़े भारी पैमाने पर वैश्विक पूंजी का नव-औपनिवेशिक हमला बढ़ गया है. आज के कार्यक्रम में पार्टी के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर प्रसाद, सरोज चैबे, प्रदीप झा, प्रकाश कुमार, संतलाल, विभा गुप्ता, मंजू यादव संतन कुमार आदि नेता उपस्थित थे.

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