आलेख : “आर्थिक भूकम्प क्षणिक इसके परिणाम सुखद” - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 29 नवंबर 2017

आलेख : “आर्थिक भूकम्प क्षणिक इसके परिणाम सुखद”

भारतीय राजीनीति की अजीब विडंबना है. आज के नेता मैकियावेली के अनुआइ और आत्ममुग्ध है,उन्हें चमचागिरी प्राणों से प्यारा है.और खुद को पीड़ित बताते नही थकते. हम उस मुकाम तक पहुच जाने के बाद भी हम सत्ता का सुख नही छोड़ना चाहते ?भारतीय चिंतन की चार आश्रमों में वानप्रस्थ के प्रति हमारी सोच नकारात्मक ही है.हम अपने जीवन के आखिरी पड़ाव तक किसी ना किसी रूप से सत्ता से चिपके रहना चाहते? यदि सरकारी नौकरशाह है तो सेवानिवृति के बाद सरकार के किसी ना किसी मालदार ओहदे पर आसीन होने के लिए हर हथकंडे अपनाते है. वही यदि राजनितिक क्षेत्र में है तो पद्पिपाषा में कैसे अंधे और दिग्भ्रमित हो जाते है यह समाज से छिपा नही है.

हम अपने उतराधिकार के रूप में हम अपने खून से जुड़े रिश्तेदारों से आगे बढ़कर सोचने की क्षमता मानो खो दिए है.भारतीय चिंतन को जिस पश्चिमी चाशनी में लपेट पिछले ७० सालों से हमारे सामने परोसा गया उस चाशनी में घुला ज़हर हमे भाई भातिजाबाद, भ्रस्टाचार,वंशवाद, जातिवाद, समप्रदायवाद और स्वार्थी बनाकर रख दिया है.हमें वेतन तो सातवी वेतन आयोग की सिफारिश के अनुसार मिले किन्तु टेक्स नहीं देना पड़े और टमाटर १० रूपये किलो ही मिले ? ऐसी मानसिकता से हम पीड़ित है. इस सरकार के दो फैसले एक नोटबंदी और दूसरा जीएसटी साहसिक फैसले है.इससे अर्थव्यवस्था पर तात्कालीन प्रभाव पड़ना ही था और आर्थिक क्षेत्र में यह भूकम्प से कम नहीं है..राष्ट्र हित पहले है पार्टी हित बाद इस सोच को कठोरता से लागू करनेवाली वर्तमान मोदी सरकार ने सत्ता की चिंता की होती तो पिछले सरकारों की तरह यह भी शुतुरमुर्गी चाल चल इतना बड़ा जोखिम नही लेती.जब नोटबंदी हुई तो भारत के भ्रष्ट तंत्रों ने बैंको को साथ मिलाकर देश के साथ जो विश्वासघात किया वह अक्षम्य है.

फिर भी जो लोग नोटबंदी को कालेधन को सफेद करने वाला देश का सबसे बड़ा घोटाला बता रहे है.उनके कथनी पर हंसी आती है. पुरे देश अभी यह रिपोर्ट पढ़ा ही होगा जो इस संदर्भव में सामने आई.देश के १३ बैंको ने नोटबंदी के बाद विभिन्न बैंको खातो से गलत लेनदेन की बात स्वीकार की है है.०२ लाख ०९ हजार ३२ संदिग्ध कम्पनिओं में से ५८०० कम्पनियाँ के बैंक ट्रांजेक्शन की जानकारी जो सामने आई वह वेहद गंभीर और राष्ट्रद्रोही कुकृत्य है. १३१४० खातों की जो जानकारी दी गयी है उनमे तो एक कम्पनी के नाम पर ही २१३४ खाते पकडे गए.एक  दुसरे के नाम पर ९०० खाता तो किसी अन्य कंपनी के नाम ३०० खाते खोले गए थे.सोचिये ०९ नबम्बर २०१६ के बाद से उन कंपनियो को रद्द किये जाने की तारीख तक इन कंपनियो ने अपने बैंक खातो में से कुल मिलाकर ४५७३.८७ करोड़ रूपये जमा करवाए और ४५५२ करोड़ निकाल लिए गए.एक बैंक में तो ४२९ कम्पनियो के खातों में ०८ नबम्बर २०१६ तक एक पैसा भी नही था लेकिन इस तिथि के बाद में इन खातों के जरिये ११ करोड़ रूपये से ज्यादा जमा हुए और उसकी निकासी भी हो गयी.

नोटबंदी के बाद फर्जी लेनदेन करने वाली कंपनियो पर शिकंजा कसा है.अब ऐसे फर्जी कम्पनी देश में आर्थिक आतंकवादी ही था. वही जीएसटी लागू होने से ४८ घंटा पहले लगभग एक लाख से अधिक शेल कंपनियो पर ताला लग गया था. हमारे आदत में ना रसीद लेना ना सही कर देना शुमार रहा है. जीएसटी के बाद हमें कुछ आदतों को बदलना पड रहा, जो हमने पिछले ७० सालों में नही की थी,ऐसे में एक सजग नागरिक होने के नाते राष्ट्रहित के लिए कुछ परेशानी को सरलता से स्वीकार कर सहयोग करे तो निश्चित रूप से भारत की आर्थिक ढांचा मजबूत होगी . जब ये फर्जी कम्पनियाँ बंद हुई तो इनके साथ समाज भी प्रभावित हुआ. देश की अर्थवयवस्था खासकर निर्माण उधोय्ग बुरी तरह प्रभावित हुई है.ऐसे में इन फर्जी कम्पनियो के ज़मात देश में ऐसी कठोर और राष्ट्र प्रथम को स्वीकार करने वाली सरकार के विरुद्ध तो कमर कसेगा ही. साल २०१३-१४ में अपने चुनाव प्रचार के दौरान वर्तमान प्रधानमन्त्री ने कहा था की उनकी पार्टी सत्ता में आई तो एक करोड़ नौकरिओं के अवसर पैदा करेगी. किन्तु आर्थिक क्षेत्र के दो साहसिक और देशहित का कदम नोटबंदी तथा जीएसटी ने इस दिशा में कुछ समयों के लिए सुस्ती ही नही छटनी भी ला दिया है .वर्तमान सरकार के आंकड़े बताते है की बेरोजगारी की दर २०१३-१४ में ४.९ प्रतिशत से बढ़कर ५ फीसदी हो गई है.पिछले ३ साल में जीडीपी की दर ५.७ प्रतिशत पर टिकी है.जीडीपी के इस स्थिरता से हमें निराशा होने की  जरुरत नही है.हमें धीरज से काम लेना ही होगा.

स्टेट बैंक के इको फ्लेश के सर्वेक्षण का हवाला देते हुए कहा गया की अगस्त २०१६ में बेरोजगारी की दर ९.५ प्रतिशत थी जो फ़रवरी २०१७ में घटकर ४.८ प्रतिशत  हो गई है.नैसकोम के अध्यक्ष आर.चंद्रशेखर के अनुसार केवल वर्ष २०१६-१७ में इनके क्षेत्र ने अकेले १.७ लाख नइ नौकरियां दी. आरबीआई ने २०१७-१८ के ग्रास वैल्यू एडेड ग्रोथ में कहा है की पहले यह ७.३ फीसदी विकास का अनुमान था.अब इसे ६.७ फीसदी कर लिया है.उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर २००७-१३ के बीच ९.५ फीसदी का औसत रहा है.यह सत्य है की धातु,पूंजीगत माल,खुदरा बाज़ार,उर्जा, निर्माण, और उपभोक्ता सामान बनाने वाली १२० से अधिक कम्पनियो के रोजगार में सुस्ती आई है. अप्रेल-जुन २०१७ के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीपीडी में ५.७ फीसदी की वृद्धि हुई है. भारत में रोजगार का पारम्परिक स्रोत कृषि ही है.उनकी स्थिति आज खराब हुई ऐसा नहीं है पूर्ववर्ती सरकारों के सोच खासकर कांग्रेसी शाशन ने जिस नेहरूवियन आर्थिक ढांचा को आजाद भारत में लागू किया था उसमे कृषि को उपेक्षित रखा जिसका खामियाजा देश भुगत रहा है.

आज बैंको से लिए कर्ज की जाल में फंसकर कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाए किसानो के बिच हो रही है किन्तु  भारत में एक बड़ी चिंता सरकारी स्वामित्व वाले बैंक २१ में से १७ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास(३१ मार्च २०१७) तक १० फीसदी से अधिक बैड लोन है. बैड लोन का मतलब है की दिए गये १०० रूपये का कर्ज में से १० रूपये भी वापस नही हो रहा और जिसमे देनदारी ९० दिनों से अधिक बकाया है. इसमें देश की बड़ी बड़ी कम्पनिया और उद्योगपति भी संलिप्त है.भारत में रोजगार की समस्या को केबल बिखरी हुई श्रम शक्ति के रूप में देखा जाता है.संगठित क्षेत्र में रोजगार की गति धीमी है.देश की दीर्घावधि विकास यात्रा को हम दो तिन तिमाही के आंकड़ो से तौल यदि निष्कर्ष पर पहुचते है तो यह अर्थतंत्र के साथ नाइंसाफी ही होगी. केंद्र सरकार ने १४वे वित्त आयोग द्वारा राज्यों को धन आवंटन बढाने और सातवे वेतन आयोग की सिफारिश मानने के बाद भी राजकोषीय घाटे को कम करने में सफल रहा यह अत्यंत सुखद संकेत है.जिस तरह का स्यापा एक विशेष ज़मात देश में कर रही वह सत्य से परे है.देश का वर्तमान नेतृत्व देश को आर्थिक समृधि का भी एक विशेष मजबूत ढांचा देश को देगी जिसके छाये में भारत समृद्ध होगा इसमें कोई संशय हमें नहीं रखना चाहिए 



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संजय कुमार आजाद
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