- वंशवाद के काऱण राजनेताओं की डूबी लुटिया, अलविदा 2017
कोलकाता।यह साल मात्र कुछ दिनों का मेहमान है। इस वर्ष अगर देश ने कईयों को खोया है तो तमाम उपलब्धियां भी हासिल की है। लेकिन अगर हम बात देश के राजनीतिक परिदृश्य की करें तो साफ दिखता है कि 2017 में भी पीएम मोदी का जादू कम नही हुआ है व भगवा खेमे की ताकत में बढ़तरी ही हुई है। गुरात व हिमाचल समसामयिक उदाहरण है। वैसे बिगत तीन सालों के राजनीतिक घटना क्रम कहें या फिर हलचल पर ध्यान दें तो भाजपा की ताकत लगातार बढ़ती जा रही है और विपक्ष कमजोर ही नही हो रहा है हासिए पर जाने की स्थिती में है। 2017 में भी राज्य विधानसभाओं के चुनावों में भाजपा का परचम लहराया और बाकी विरोधियों ने जमीन पकड़ी। हलांकि इस दौरान राहुल गांधी के तेवर थोड़े तल्ख रहें । राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में ताजपोशी हुई। लेकिन वह गुजरात व हिमाचल में किसी तरह का चमत्कार नहीं कर सकें। ऐसे भी लोग हैं जिनका मानना है कि राहुल के व्यक्तित्व में नया निखार दिखाई दे रहा है। राहुल पीएम नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा की रातनीतिक पैंतरेबाजी को जवाब देने के लिये अपने लिए नई लकीर खींचते दिखाई दे रहे हैं। अगर राहुल संप्रग में जान डाल सके तो विपक्ष को मजबूती मिल सकती है और वह 2019 के आम चुनावों में भाजपा को चुनौती दे पाने की की स्थिती में हो सकते हैं। अगर बात भगवा खेमे की करे तो पीेम मोदी और भाजपा के लिए यह साल तमाम परिस्थियों के बाद भी अच्छा रहा। हर मोड़ में मोदी व भगवा खेमे ने तथा राहुल और कांग्रेस को जमीन दिखाया।
राहुल गांधी के बारे में कहा जा रहा है कि वह अब चौकने है और फूंक कर कदम रखना चाहते हैं। अब वह . अपनी मां सोनिया गांधी की तरह कुछ जी हुजूरी टाइप के लोगों के चक्कर में न रह कर अग्रसर हैं और शायद हिंदुत्व को आधार मानकर चल रहें हैं मंदिरों में जाना तो यही संकेत देता है। खबरों की माने तो कि राहुल अपनी टीम में युवाओं को ज्यादा प्रतिनिधित्व दें सकते हैं। यहां वह अपने पिता स्व. पूर्व पीएम राजीव गांधी से प्रभावित दिख रहें है। वंशवाद के आरोपों के तहत राहुल गांधी की ताजपोशी को लेकर भी तमाम टिप्पणियां हुईं। लेकिन देश की राजनीति में जिस तरह से इस साल लालू यादव और मुलायम यादव परिवार को वंशवाद का खमियाजा भरना पड़ा ऐसा राहुल के मामले में नहीं हुआ। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान मुलायम कुनबे में बिखराव आया। यूपी में मुलायम सिंह और समाजवादी पार्टी नाव डूब ही गई। राष्ट्रिय अध्यक्ष पद की कुर्सी पर भी बेटे अखिलेश ने कब्जा कर लिया। बात अगर बिहार की करे तो लालू यादव व उनका कुनबा जो पूरे साल विवादों में घिरा रहा। लालू की तरह ही उनके बेटे और बेटी घोटालों में फंसते दिखे। वंशवाद के मोह में डूबे लालू यादव की नीति से बिहार सरकार से राजद गायब हो गया। वही नीतीश ने एक बार फिर भाजपा का हाथ थामकर अपनी सरकार को बचाये रखा। यहा साल शरद यादव व मायावती के लिये टीक नहीं रहा। इन दोनों की राज्य सभा सदस्य्तापर गाज गिरी। . शरद यादव को तो नीतीश ने पार्टी को अपने कब्जे में लेकर बाहर का रास्ता दिखा दिया। हलांकि मायावती ने उप्र में अपनी पार्टी बसपा की बुरी तरह हार से के बाद राज्य सभा से इस्तीफ़ा दे दिया था। बंगाल की ममता सरकार की बात करे तो सीएम ममता बनर्जी के कभी अत्यंत खास रहे मुकुल राय ने भाजपा का दमान पकड़ लिया और वह तृणमूल सरकार के खात्मे के लिये व्यूह की रचना कर रहें हैं। कहा जा रहा है कि उक्त सरकार में रहे तमाम लोग भी वंशवाद के सिकार हैं लेकिन किसी की हिम्मत नहीं है कि वह फौरी तौर पर मुकुल राय का रास्ता अपना सकें। आरोप है कि पार्टी में ममता व उनके भतीजे अभिषेक के अलवा किसी की नहीं चलती है। राजनीति के गलियारों से कहा जा रहा है कि अभिषेक अब राज्य की सत्ता में न. दो की हैसियत रखते है। अब बात जीएसटी की करे तो देश भर में इसका लागू होना भी एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन एक वर्ग जीएसटी के विरोध में भी हैं। कहा जा रहा था कि नोटबंदी व जीएसटी का गुजरात व हिमाचल के चुनावों पर गहरा असर पड़ेगा, ले किन जो पऱिणाम आये इससे तो लगता है कि नोटबंदी व जीएसटी का गुजरात व हिमाचल में असर ही नहीं पड़ा। उक्त मुद्दे यहां गौड़ ही रहे और लोगों ने भगवा खेमे को ही सत्ता के लिये चुन लिया।
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