‘जन सहयोग से जन सरोकार’ के दो साल - वीरेंद्र यादव न्‍यूज - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 2 जनवरी 2018

‘जन सहयोग से जन सरोकार’ के दो साल - वीरेंद्र यादव न्‍यूज

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मासिक पत्रिका ‘वीरेंद्र यादव न्‍यूज’ अपने प्रकाशन का दो साल पूरा कर लिया है। पूरे 24 महीने। यह हमारा दूसरा वार्षिकांक है। शुरू के दो अंक हमने पाक्षिक पत्रिका के रूप में निकाला था, इस कारण उसकी गिनती नहीं कर रहे हैं। पत्रकारिता मेरा पेशा है, लेकिन यह पत्रिका पेशेवर नहीं है। इसे हमने अपने सामाजिक जिम्‍मेवारी व दायित्‍व के तहत प्रकाशित करना शुरू किया था। पहले ही अंक में हमने घोषणा की थी कि पत्रिका शुभेच्‍छुओं से प्राप्‍त आर्थिक मदद से छपेगी और इसका वितरण फ्री में किया जाएगा। पत्रिका की अवधारणा है- जन सहयोग से जनसरोकार।

हमने इस पत्रिका को जन सरोकार के मुद्दे से जोड़े रखा। सम-सामयिक राजनीतिक परिस्थितियों पर पत्रिका ने अपना पक्ष रखा। अपने पक्ष में पत्रिका ने तथ्‍य भी रखे। कई बार पक्ष पर तथ्‍य भारी पड़ता हुआ भी दिखा। पत्रिका को लेकर कई टिप्‍पणी भी पाठकों से मिली। एक साथी ने कहा- आप आंकड़ों के साथ अपना एजेंडा थोपना चाहते हैं। एक पूर्व विधान पार्षद की टिप्‍पणी थी- आपकी पत्रिका पिछड़ावाद की वकालत करती है, इसलिए इसे हम अपने ड्राइंग रूम में नहीं रखते हैं। कई पाठकों की सकारात्‍मक टिप्‍पणी भी मिली। लेकिन पत्रिका के कंटेंट को लेकर सभी की एक समान धारणा है- इसके आंकड़े बहुत उपयोगी होते हैं। यही अवधारणा इस पत्रिका की सबसे बड़ी पूंजी है।

पत्रिका लोगों से प्राप्‍त आर्थिक मदद यानी चंदा से प्रकाशित होती है। हर अंक में औसतन 10-12 हजार रुपये की लागत आती है। अपने मुख्‍य कार्य के अतिरिक्‍त पत्रिका के लिए संसाधन और कंटेंट जुटाना बड़ा काम हो जाता है। पत्रिका के हर अंक को हम अंतिम अंक मानते हैं। क्‍योंकि पत्रिका जन सहयोग से प्रकाशित होती है। यदि जन सहयोग बंद हुआ तो पत्रिका भी बंद हो जाएगी। संसाधन जुटाने के क्रम में चंदा कम और आश्‍वासन ज्‍यादा मिलता है। कई बार आश्‍वासन भी बोझ लगने लगता है। लेकिन इन्‍हीं आश्‍वासनों के बीच से उम्‍मीद की राह भी दिखती है।

पत्रिका हर महीने नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है तो पाठकों का भी एक बड़ा योगदान है। हम पत्रिका के प्रिंट एडिशन के साथ ऑनलाइन एडिशन भी आप तक पहुंचाते हैं। फेसबुक, ईमेल के साथ वाट्सअप के माध्‍यम से भी हजारों पाठक ‘वीरेंद्र यादव न्‍यूज’ के मासिक अंक के साथ नियमित खबरों को भी पढ़ते हैं। पत्रिका की निरंतरता के लिए आपका आर्थिक सहयोग अपेक्षित है। इसके साथ ही हम आपको इतना भरोसा जरूर दिलाएंगे कि हमारी राय से असहमत हो सकते हैं, लेकिन आंकड़ों व तथ्‍यों को आप नकार नहीं पाएंगे।

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