निर्णय पर पहुंचने की प्रवृत्ति से बचे मीडिया : मनोज सिन्हा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

निर्णय पर पहुंचने की प्रवृत्ति से बचे मीडिया : मनोज सिन्हा

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नयी दिल्ली 11 फरवरी, केंद्रीय संचार एवं रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने मीडिया से आह्वान किया कि वह निर्णय पर पहुंचने की प्रवृत्ति से बचे और साथ ही उन्होंने मीडिया ट्रायल को बढ़ावा देने के प्रति भी आगाह किया। श्री सिन्हा ने फेडरेशन आॅफ पीटीआई इम्प्लाइज यूनियन्स की वार्षिक आम बैठक में कल कहा कि लाेकतंत्र में मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। मीडिया किसी भी लोकतंत्र में चौथे स्तम्भ के रूप में कार्य करता है। उन्होंने ‘मीडिया के समक्ष चुनौतियां’ विषय पर दिये गये संबोधन में मीडिया को आगाह किया कि उसे निर्णय पर पहुंचने से बचना चाहिए। मौजूदा समय में कई मीडिया संगठन किसी व्यक्ति या संगठन पर अदालत की तरह समानांतर ट्रायल चलाते हैं। यह उचित नहीं है। मीडिया का काम सूचनाएं देना और जनता को शिक्षित करना है, किसी के खिलाफ निर्णय सुनाने का काम मीडिया का नहीं है। इसके लिए देश में सशक्त न्याय व्यवस्था है। श्री सिन्हा ने अग्रणी संवाद समिति यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) और प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि ये संवाद समितियां सूचनाओं को पूरे विश्व में फैलाने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। उन्होंने कहा कि दोनों संवाद समितियां केवल तथ्यात्मक सूचनाएं लोगों तक पहुंचा रही हैं। उन्होंने कहा राष्ट्रीय समाचार एजेंसियों यूएनआई और पीटीआई को किसी भी कीमत पर सहयोग और संरक्षण देने की आवश्यकता है क्योंकि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। संचार मंत्री ने कहा कि समाचार और विचार किसी भी मीडिया के दो अलग-अलग हिस्से हैं। इनका कभी भी घालमेल नहीं किया जाना चाहिए। विचारों को जब समाचार के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तो भ्रांतियां पैदा होती हैं।

श्री सिन्हा ने कहा कि मीडिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती अच्छे और बुरे के बीच भेद करने (नीर-क्षीर विवेक) की है। मीडिया को अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए दूध से पानी को अलग करना होता है। उन्होंने ‘नारद मुनि’ का उदाहरण देते हुए कहा कि नारद को प्रथम और आदर्श पत्रकार माना जाता है। वह पूरे ब्रह्मांड की यात्रा कर सूचनाएं इकट्ठा करते थे और तुरंत सही स्थान तक उसका प्रसार करते थे। ‘महाभारत’ से ‘संजय’ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पत्रकार को निर्भीक होना चाहिए जो बिना किसी डर के अपना काम करे। उन्होंने कहा कि संजय एक ऐसे निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकार थे जिन्होंने क्रूर राजा धृतराष्ट्र के महल में होने के बावजूद अपने नेत्रहीन राजा को केवल सच ही बताया। वह आसानी से पक्षपातपूर्ण ढंग से घटनाओं का ब्योरा दे सकते थे लेकिन उन्होंने कभी ऐसा नहीं किया।

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