आलेख : भावी पीढ़ीयों का सही मायने में बौद्धिक विकास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 30 मार्च 2018

आलेख : भावी पीढ़ीयों का सही मायने में बौद्धिक विकास

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केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने हाल ही में डार्विन के सदियों से प्रचलित विकासवाद के सिद्धांत को गलत करार देने तथा महान वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन से काफी पहले भारतीय मंत्रों में 'गति के नियम' मौजूद होने की बात कहकर समूचे देश में विवाद छेड़ दिया है। श्री सिंह ने स्कूल-कॉलेजों का निर्माण वास्तु के हिसाब से कराने की सलाह दी है। उन्होंने अध्ययन-अध्यापन के लिए इसे महत्वपूर्ण बताया है। डार्विन और न्यूटन के सिद्धांत की बात का समर्थन करें या ना करें, लेकिन स्कूल-कॉलेजों का निर्माण वास्तु के नियमों के अनुसार करने की बात पर केंद्र व राज्य सरकारों को वाकई गौर करना चाहिए, ताकि देश की भावी पीढ़ीयों का सही मायने में बौद्धिक विकास हो सके। बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन साहब ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह की 'तलाश इंसान की' शीर्षक पुस्तक का विमोचन करने के बाद अपने फेसबुक पोस्ट में इन पंक्तियों का उल्लेख किया था-'क्या अजीब बात है, इतने धर्म, इतने महापुरुष, इतने गुरु, इतने धर्मग्रन्थ, इतने तीर्थस्थल फिर भी इंसान सही रास्ते की तलाश में परेशान है।' उन्होंने 'फिराक' की इन पंक्तियों का भी उल्लेख किया था :

'हजारों खिज्र पैदा कर चुकी है नस्ल आदम की,
ये सब तस्लीम लेकिन आदमी अब तक भटकता है।'

दरअसल यह दुनिया एक गड़बड़झाला है। देखने में कुछ और हकीकत में कुछ और। सृष्टि के प्रारंभ से ही मुट्ठी भर चालाक, धुरंधर, शैतान, लालची स्वभाव के लोग नाम, पैसे, पॉवर तथा अपनी दुकान चलाने के लिए समूची मानव जाति को गुमराह कर उसका शोषण करते आ रहे हैं। मनुष्य जाति के शोषण का सबसे भयंकरतम माध्यम है धर्म। सृष्टि ने हमें हिंदु, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध के रूप में नहीं बल्कि मनुष्य के रूप में जन्म दिया है। लेकिन मानवता के दुश्मनों ने हिंदु, मुसलमान, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध आदि हजारों धर्मों की सृष्टि कर मानव जाति के टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं और आज समूची मानव जाति धर्म रूपी हैवानियत के शिकंजे में लहुलुहान हो रही है। 

धरती हमारी माता है और हम उसकी संतान हैं। मनुष्य धरती की छाती से उत्पन्न जल, अन्न तथा उसके वायुमंडल से ऑक्सीजन ग्रहण कर जीवन धारण करता है, लेकिन अपने क्षुद्र स्वार्थों की खातिर उसी धरती माता को विध्वस्त करने पर तुला हुआ है। हर मां की यह कामना होती है कि उसकी संतान सुख, शांति, समृद्धि से रहे तथा उसके जीवन में कभी कोई आपत्ति-विपत्ति न आये। हमारी धरती माता का भी सिस्टम उसी भावना से रचा गया है। अगर मनुष्य सृष्टि (वास्तु) के नियमों के अनुसार गृह निर्माण करे और सृष्टि द्वारा प्रदत्त मन की शक्ति का उपयोग करे तो उसे जीवन में सुख, शांति, समृद्धि हासिल होती है तथा किसी प्रकार की अनहोनी का शिकार नहीं होना पड़ता। अफसोस इस बात का है कि चंद क्षुद्र स्वार्थी लोग मानव जाति को इस सत्य से विमुख कर स्वरचित धर्मों और गुुरुओं की सेवा-साधना करने से उन्नति होने की झुठी दिलासा देकर न सिर्फ उसका शोषण करते आये हैं, बल्कि उन्होंने समूची मानव जाति को पंगु बनाकर रख दिया है। दुनिया का हर धर्म यही कहता है कि तुम्हारे हाथ में कुछ नहीं, सभी कुछ ऊपरवाला अल्ला, गॉड, भगवान करता है, जबकि हकीकत यह है कि दुनिया में भगवान, अल्ला, गॉड नाम की कोई चीज नहीं है। कबीर ने कहा था-'पाथर पूजै हरि मिले तो मैं पूजूँ पहाड़।' असली भगवान, गॉड, अल्ला प्रकृृति प्रदत्त शक्ति के रूप में खुद मनुष्य के मन में हैं, लेकिन दुनिया के सभी धर्मगुरु प्रकृृति प्रदत्त शक्ति को झुठला कर अस्तित्वहीन भगवान, अल्ला, गॉड पर विश्वास करने की सलाह देकर समूची मानव जाति को दिग्भ्रमित करते आये हैं। यह बात किसी से छुपी नहीं है कि दुनिया में मनुष्य का सबसे ज्यादा शोषण धर्म के नाम पर होता है। दुनिया में धर्म के नाम पर ही सबसे ज्यादा अपराध, हिंसा, आतंकवाद व विद्वेष फैलाने सरीखी अमानवीय घटनाएं संघटित होती आई हैं। दुनिया में जितने मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारे व अन्य धर्मस्थल हैं, उनकी संपदा को बेचकर अगर उन्हें मानव कल्याण के कार्य पर खर्च कर दिया जाये तो मैं समझता हूँ कि दुनिया में एक भी दरिद्र, भूखा नहीं रहेगा और दुनिया में अपराध भी न्यूनतम हो जायेंगे। मानव जाति को धर्म तथा धर्मगुरुओं के शिकंजे से आजाद करना वक्त की सबसे बड़ी जरूरत है।

सृष्टि ने मनुष्य के मन में इतनी शक्ति प्रदान की है कि दुनिया का कोई भी काम उसके लिए असंभव नहीं। सृष्टि (वास्तु) के नियमानुसार निर्मित गृह धर्मस्थल बन जाता है और सृष्टि द्वारा प्रदत्त मन की शक्ति का उपयोग करने पर मनुष्य खुद भगवान, अल्ला, गॉड बन जाता है। उसे जीवन में अकल्पनीय सुकून, शांति तथा प्रगति की प्राप्ति होती है। जबकि मनुष्य द्वारा सृजित भगवान, अल्ला, गॉड और मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों का मनुष्य के जीवन में कोई प्रभाव नहीं होता। अगर उनका प्रभाव होता तो फिर विश्व में सबसे अधिक मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों वाला हिंदुस्तान विश्व का सबसे बड़ा, सुखी, समृद्धिशाली व ताकतवर देश होता' न की दरिद्रतम देश। सृष्टि की सत्ता की अनदेखी कर युग-युग से धर्म और क्षुद्रस्वार्थी धर्मगुरुओं की अंध भक्ति करने की वजह से आज हिंदुस्तान की जनता दरिद्रता का जीवन बसर करने को अभिशप्त है। जाहिर है अस्तित्वहीन अल्ला, भगवान, गॉड की प्रार्थना, पूजा, इबादत में ही अपना जीवन होम करने वालों को जीवन में शून्यता के अलावा और भला क्या हासिल होने वाला है। इसलिए आज मुट्ठी भर लोगों के पास संसार की अधिकांश संपदा एकत्रित हो गई है, जबकि अधिकांश लोगों को दरिद्रता का जीवन बसर करना पड़ रहा है।

देश के पूर्वोत्तर के लोग भी सदियों से प्रकृृति के नियमों के विपरीत गृह निर्माण करते आये हैं, जिसकी वजह से यह क्षेत्र युगों से युद्ध व आतंकवाद से त्राहिमाम करता रहा है। पूर्वोत्तर क्षेत्र को हिंसा, उग्रवाद, पिछड़ेपन व अंधविश्वास से मुक्त कर उनका जीवन स्तर सुधारने के लिए हम विगत 20 सालों से लोगों को घर-घर जाकर प्रकृृति (वास्तु) के नियमानुसार गृह निर्माण व मन शक्ति के प्रयोग की सलाह देने की मुहिम में जुटे हुए हैं और अब तक 16,000 परिवारों को नि:शुल्क वास्तु सलाह दे चुके हैं। हमने कई स्कूल, कॉलेजों, मंदिरों का भी वास्तु दोष दूर करवाया है, जिसके बाद इनकी काफी उन्नति हुई है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह ने स्कूल, कॉलेजों का निर्माण वास्तु के अनुसार करने की जो सलाह दी है, वह वाकई गौर करने लायक है तथा केंद्र व राज्य सरकारों को न सिर्फ स्कूल, कॉलेजों बल्कि समस्त सरकारी कार्यालयों, अस्पतालों, लोकसभा व विधान सभाओं सहित सभी सरकारी उपक्रमों का वास्तु दोष दूर करने की पहल करनी चाहिए। अगर हिंदुस्तान के लोग धर्म के नाम पर जारी ढोंग से खुद को मुक्त कर मन की शक्ति का प्रयोग और सृष्टि (वास्तु) के नियमानुसार गृह निर्माण करने लगें तो फिर वो दिन दूर नहीं होगा, जब हिंदुस्तान विश्व का सबसे सुखी, समृद्ध व शांतिपूर्ण देश बन जायेगा।





- राजकुमार झांझरी, 
अध्यक्ष, रि-बिल्ड नॉर्थ ईस्ट, 
गुवाहाटी (मो.: 94350-10055)

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