विशेष : 'अगले जन्म में मोहे बिटिया ना कीजो' - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 15 अप्रैल 2018

विशेष : 'अगले जन्म में मोहे बिटिया ना कीजो'

nemaat-tauhid
नोएडा। यहां पर रहती हैं नेमत तौहीद। जीआईएस इंजीनियर हैं.वे कहती हैं कि आज एक ऐसे टॉपिक पर बात करने जा रही हूँ जो शायद ही किसी को भी शत प्रतिशत अच्छी लगे। फिर भी वह कहती हैं कि वह अपनी बात को रखूँगी ही। आज का जो माहौल बन गया है जो हमारे देश के लिए बहुत ही शर्म की बात हो गयी है। जी हाँ, उसी टॉपिक के बारे में बात कर रही हूँ जो आपके दिमाग में चल रही है। बलात्कार, बलात्कार जो हर एक मिनट में क्या सेकेंडों में हो रहा है, वह बहुत ही विकराल रूप ले रहा है या ले चुका है। महिलाओं की सुरक्षा और कानून से न्याय दिलाना सरकार का कर्तव्य है लेकिन इतने गंभीर मसले पर सरकार की कुंभकरणी निंद्रा व मौनधारण कर लेने से चुप्पी हज़म नहीं हो पा रही है। कानून का ढीलापन होने पर यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि ये सब क़ानून या प्रशासन किसके लिए है सिर्फ़ नेताओं के लिए ना की आम इंसानों के लिए। यहां तो हमलोगों को सिर्फ जातिवाद पर उलझाया जा रहा है जबकि आम जनता यह सब बख़ूबी जानती हैं कि इस बात पर लड़कर हमें कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है।

सरकार को शख्त क़ानून बनाने की ज़रूरत है और संशोधन की बात भी चल रही है लेकिन ये कब होगा लोगों में से कोई नहीं जानते हैं कब फ़ास्ट   प्रोसेस होगा? कि कब जल्द से जल्द बलात्कारियों को सज़ा दिलायी जाएगी यह भी अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता है। अगर पोक्सो एक्ट में संशोधन और फ़ास्ट प्रोसेस नहीं लाया गया तो फिर से हमलोग यानी लड़कियों की भ्रूण हत्या होगी और वह भी बाक़ायदा सोनोगाफ़ी जांच करा कर। पटना से   प्रकाशित' पंचायत संदेश 'नामक पत्रिका में लेखक आलोक कुमार ने शीर्षक देकर लिखे थे।'आने वाले को आने नहीं देते और जो आ जाते हैं उनको जीने नहीं देते।यह सत्य प्रतीक हो रहा है। अब तो महसूस होने लगा कि कोई जरूरत नही है इस दुनिया में बेटियों को लाने की। जब बड़ी लड़कियों को यह कहकर आरोप लगाते थे कि उसने छोटे कपड़े पहने थे तो कंट्रोल नहीं हो पाया लेकिन क्या 8 साल की बच्ची या 8 महीने की बच्ची इनको क्या पहनना चाहिए? कितने बड़े कपड़े पहनने की जरूरत है? तो ऐसे में क्या करे माँ बाप? माँ बाप को कैसे हिम्मत होगी बेटी को पैदा करने के लिए? 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' सरकारी नारा है तो उसे ऐसी हालात में कैसे घर के बाहर निकलने दें।क्या सही में बेटियाँ बच पायीं हैं? जो ख़तरा पेट में रहकर होता था बेटियों के साथ कम से कम इस भयानक और दरिंदगी का शिकार तो नही होती थीं बेटियाँ। दुनिया मे आकर भी क्या मिल रहा है बेटियों को। अपमान, तिरस्कार और बलात्कार बस इसके अलावा कुछ और नहीं। तो क्या बेटियाँ सिर्फ इसी बात के लिए पैदा की जाती हैं? अगर यही हाल रहा तो कोई माँ नही चाहेगी कि मेरी बेटी आये इस दुनिया में बल्कि दरिंदो से भरी दुनिया में, ना आये तो ज़्यादा अच्छा है मैं दुआ करती हूँ किसी के घर में बेटी पैदा ना हो।

अब महिलाओं को खुलकर भ्रूण हत्या करवानी चाहिये और करवाये भी क्यों नहीं?? दरिंदों के हाथ मरने से अच्छा है हमें खुद ही मार देना चाहिये। सरकार, प्रशासन, पुलिस और क़ानून जब तक ये अपना काम सही से नहीं करेंगे और क़ानून में बदलाव नहीं लाएंगे और फ़ास्ट प्रोसेस नहीं अपनाएंगे तब तक ऐसे जघन्य अपराध पर अंकुश नहीं लगया जा सकता है। और अगर ये संशोधन नहीं हुआ तो फिर से भ्रूण हत्या होगी और जरूर होगी। आगे नेमत कहती है कि ये दिल कहता है कि कोई भी बेटी पैदा नहीं होना चाहेगी ऐसी घिनौनी दुनिया में।अगले जन्म मोहे बिटिया ना कीजो..।

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