विशेष आलेख : लोकतंत्र को सीमाओं में बांधते नियम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 8 अप्रैल 2018

विशेष आलेख : लोकतंत्र को सीमाओं में बांधते नियम

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केसी बाई और मंजू बाई राजस्थान के सिरोही की पिण्डवाडा तहसील की घरट पंचायत की दो ऐसी महिलाएं हैं जो 2015 के पंचायत चुनावों में उम्मीदवारी की उम्मीद में थीं लेकिन पंचायत चुनावों में प्रतिभागिता की नई नियमावली ने नई पहलों की संभावनाओं पर पूर्ण विराम लगा दिया है। केसी और मंजू दोनों ने ही सरपंच बन कर औरतों की जिंदगी में बदलाव लाने का सपना देखा था कि वह भी अपने समाज का नेतृत्व करेंगी। निर्णय की दुनिया में अब उनकी भी बातें सुनी जाएंगी। यइ यूं ही नहीं था, दोनों ही महिलाओं की अपनी एक सामाजिक पहचान है। घरट गांव की आबादी 2708 है जिनमें महिलाएं 1345 है। गांव की साक्षरता दर 36.18 प्रतिशत और महिला साक्षरता दर 18.02 प्रतिशत है। घरट पंचायत चार गांवों को मिलाकर बनी है-मालेरा, घरट, नयावास, गड़ि़या। केसी बाई वार्ड संख्या एक में रहती है और मंजूबाई वार्ड संख्या 7 में। केसी बाई की उम्र 40 वर्ष है और मंजू ने जीवन के 25 वसन्त देखे देखे हैं। केसी और मंजू दोनों ही गरासिया समुदाय से हैं। केसी और मंजु दोनों कृषक परिवार से है। दोनों ही अपने खेतों की मालिक भी हैं और मनरेगा में मजदूर भी। केसी के पति अमराराम के अलावा उनके परिवार में उनके तीन बेटे हैं। केसी के परिवार की मासिक आय लगभग रू. 5000/- है। 
        
मंजु का परिवार केसी की तुलना में बेहतर आर्थिक स्थिति में है व परिवार की मासिक आय 10-12 हज़ार रूपया है। मंजु के पति सकाराम ने गांव में ई-मित्र के तहत बैंकिग का सर्विस प्वांइट बनाया है और वह समुदाय के लोगों का पैसा जमा करने, निकालने तथा बैंक के खाते खोलने में मदद करते हैं। साथ ही युवा शक्ति संगठन के अध्यक्ष भी हैं। इन तीनों से होने वाली आय से उनका जीवन बेहतर तरीके से चल रहा है। केसी जहां अशिक्षित हैं, मंजू ने आवासीय शिविर से पांचवीं तक की शिक्षा प्राप्त की है और उनके परिवार में चार सदस्य हैं। केसी बाई और उनके परिवार का गांव में बहुत सम्मान है। वह गांव के जाने माने लोग हैं, ईमानदार हैं और सामाजिक भी हैं। गांव में दो पक्षों के बीच होने वाले झगड़ों के फैसलों के लिए भी लोग इनके पास आते हैं। केसी बाई इसी परिवार की महिला हैं और इसीलिए समुदाय के लोग उनका भी सम्मान करते हैं। हालांकि वह भी मंजु की तरह कुछ सामाजिक कामों से जुड़ी हैं परन्तु अधिक सक्रिय नहीं हैं। दूसरी ओर मंजू एक सामाजिक महिला हैं और गांव के विकास के बारे में गांव में लोगों से बातचीत करती हैं। घरट पंचायत में समुदाय को जागरूक करने तथा विभिन्न योजनाओं को लाभ देने के लिए काम करने वाली एक स्थानीय संस्था से जुड़ी हुई हैं और गांव की किशोरियों व महिलाओं को जागरूक करने के लिए वह निरन्तर काम करती हैं। इसके अलावा वह महिला समूह से जुड़ी हुई हैं और समूह के साथ मिलकर गांव में नशा मुक्ति के खिलाफ लोगों को जागरूक करती हंै। 

2015 के पंचायत चुनाव में घरट पंचायत की सीट महिला आरक्षित होने के बाद गांव के लोग केसी बाई को सरपंच के पद पर देखना चाहते थे और मंजू खुद भी इस चुनाव में सरपंच के तौर पर भागीदारी करना चाहती थीं। परन्तु दोनों ही महिलाएं काफी सक्रिय व लोकप्रिय होने के बाद भी इस चुनाव में इसलिए शामिल नहीं हो पायीं क्योंकि वह पंचायत चुनावों मंे शिक्षा के मानकों पर खरी नहीं उतर रही थीं। नयी नियमवली के अनुसार सरपंच के पद पर वही उम्मीद चुनाव लड़ सकता है जो आठवीं पास हो। इसके अलावा केसी के परिवार में उनके तीन बच्चे भी उनकी सरपंच के पद पर उनकी उम्मीदवारी में बाधा बने। सरंपच के पद पर वही उम्मीदवार चुनाव लड़ सकता है जिसके दो बच्चे हों।

पंचायत चुनावों के 2015 के सत्र में गांव की कमान हालांकि एक महिला के ही हाथ में आयी। रावल समुदाय से नीरा देवी सरपंच बनीं। नीरा पंचायत चुनावों के लिए अनिवार्य शिक्षा के मानकों पर खरी उतरीं। वह 10 वीं पास हैं और राजनीतिक पृष्ठभूमि से है। इनके ससुर पूर्व सरपंच रह चुके है। लिहाज़ा सरपंच बनने के बाद पंचायत के काम काज को समझने व करने में उनके पति व ससुर ने उनकी मदद की। पंचायत में विकास से जुड़े निर्णय नीरा देवी स्वयं पंचायत के सहयोग और परिवार के अनुभवी पुरुषों की मदद से लेती हैं। सरपंच के पद रहते हुए भेदभाव की शिकार नहीं हुईं क्योंकि वह एक सशक्त पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं और शिक्षित भी हैं। पंचायत में विकास कामों से जुड़े निर्णय नीरा देवी सभी लोगों की आम सहमति से लेती हैं। अधिकारियों के सामने अपनी बात को रखने में नीरा देवी बिल्कुल भी संकोच नहीं करती है। खुले मंच से अपनी बात रखने में नीरा देवी को महारत हासिल है। बतौर सरपंच नीरा देवी ने पंचायत में विकास के लिए अनेक कदम उठाये। बिजली की जगमगाहट से गोव को रोशन किया और पानी की समुचित सुलभता के लिए हैंडपंप भी लगवाए। विकलांगों व वृद्धों को पेंशन दिलवायी।
           
हालांकि पंचायत चुनावों की नियमावली की सीमाओं के बाद भी घरट की पंचायत का नेतृत्व एक महिला के ही हाथ में है किन्तु इन्हीं नीतियों ने चुनावों में खुली प्रतिभागिता के अवसर को मंजु और केसी से छीन लिया है और ग्रामीणों से अधिक विकल्पों की सुविधा भी। यदि इन चुनावों में नीरा के साथ मंजू और केसी भी उम्मीदवार के तौर पर होतीं तो मुकाबला शायद अधिक दिलचस्प होता और ग्रामीणों को बेहतर से बेहतर उम्मीदवारों को चुनने का मौका मिलता। नई नियमावली केवल महिलाओं की प्रतिभागिता को ही सीमित नहीं कर रही अपितु विकल्पों को भी सीमित कर रही है।       





(अर्जुन राम)

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