विशेष आलेख : कमला की आंखों में ही टूटा स्मार्ट विलेज का सपना - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 8 अप्रैल 2018

विशेष आलेख : कमला की आंखों में ही टूटा स्मार्ट विलेज का सपना

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राजस्थान के सिरोही ज़िले के पिण्डवाडा ब्लाक के बरजा पंचायत की पूर्व सरपंच हैं कमला देवी। कमला देवी की उम्र 53 वर्ष हैं और उन्होंने कक्षा पांच तक की शिक्षा हासिल की है। कमला के परिवार में पति, सास, ससुर व तीन बच्चों को मिलाकर कुल सात सदस्य हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार ज़िले की कुल आबादी 1,036,346 है जिसमें महिलाओं की कुल आबादी 502,115 है। 2005 में जब बरजा पंचायत  में सरपंच की सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हुई तो कमला ने सरपंच के पद पर चुनाव लड़ा व जीत हासिल की। कमला की 13 पंचायत सदस्यों की टीम में 6 महिलाएं व सात पुरुष थे। 2010 में बरजा पंचायत की सीट सामान्य सीट हो गई और कालूराम ने इस सीट से सरपंच के पद पर जीत हासिल की। सामान्य सीट पर कमला सरपंच नहीं बन सकीं। 2005 में सरपंच का चुनाव जीतने के बाद कम शिक्षित होने की वजह से कमला देवी को शुरूआत में पंचायत का काम-काज समझने में बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ा। कमला के पति, वार्ड पंच व पंचायत सदस्यों ने उन्हें पंचायत के काम को समझने में मदद की। गांव के एक निवासी ईश्वर सिंह ने बताया कि ‘‘उनकी पंचायत में भले ही चुनाव के समय लोगों ने अलग अलग दलों से चुनाव लड़ा हो पर पंचायत बनने के बाद सब एक दूसरे की मदद करते हैं।’’ गांव की यही आपसी समझ कमला के काम आयी। धीरे धीरे पंचायत के कामों पर कमला की पकड़ मज़बूत होती गयी और उनका डर व संकोच भी दूर होता गया और उनके अंदर आत्मविश्वास पैदा हुआ। शुरूआत में ग्राम सभा व बैठकों का आयोजन करते हुए उन्हें संकोच महसूस होता था। लेकिन समय के साथ-साथ वह सफलता पूर्वक बैठकों का आयोजन करके लोगों की समस्याएं सुनकर उनका समाधान करने लगीं। 

कमला देवी ने पंचायत के विकास के लिए अनेक काम किए। उनके पति ने उन्हें गांव के विकास के काम करने में मदद की। उन्होंने पंचायत को स्वच्छ व शौचमुक्त बनाने के लिए शौचालयों का निर्माण कराने के साथ-साथ स्कूल में बच्चों के लिए शुध्द व स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था की। कमला ने अपनी पंचायत में महिलाओं को स्वयं सहायता समूह बनाकर बचत करने के प्रेरित किया तथा सरकारी योजनाओं की जानकारी देकर लाभान्वित किया। उन्होंने गांव में शमशान घाट का निर्माण कराने के साथ-साथ समुदाय की बैठक के लिए एक चबूतरे का निर्माण कराया। समुदाय के लोग कमला देवी के कामों से खुश थे। इसी कारण कमला देवी भी 2015 मेें सरपंच का चुनाव लड़ना चाहती थीं। अगले सत्र यानी 2015 में बरजा पंचायत में सरपंच की सीट एसटी महिला के लिए आरक्षित हुई और यहां नई सरपंच बनी मनीशा देवी। यकीनन अब भी बरजा की सीट एक महिला के ही हाथ में हैं पर कमला इस दौड़ में पीछे रह गयी है। कमला अब कभी भी सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकेंगी क्योंकि उनके पास 8वीं पास शैक्षिक योग्यता नहीं है। राज्य में पंचायत चुनाव में सरपंच के पद पर चुनाव लड़ने के लिए आठवीं पास शैक्षिक योग्यता अनिवार्य है। कमला को 2015 में अपने चुनाव में भागीदारी न कर पाने का बहुत अफसोस है। वह कहती हैं, ‘‘2005 के चुनाव में सरपंच बनने के बाद गांव के लिए कुछ करने का मौका मिला था। हां, शुरूआत में समस्याओं और प्रक्रियाओं को समझने में समय लगा, पर मैंने सारा काम सीख लिया था। पंचायत के काम के बारे में जानकारी ली और उसे समझा। लोगों को सरकारी योजनाओं का फायदा दिलाने के लिए भी मैंने काम किया। अब शायद मौका था कि मैं और बेहतर काम कर सकती क्योंकि मेरे पास एक सत्र का अनुभव भी है।’’

कमला को इस बात का दुख है कि वह 2015 के चुनाव में प्रतिभाग नहीं कर पायीं। उन्हें लगता है कि एक सत्र के अनुभव के बाद उनकी समझ पक्की हुई है। उनका सपना अपने गांव को ‘स्मार्ट विलेज’ बनाना था। उनकी योजनाओं में यह काम उन्होंने अपने अगले सत्र के लिए निर्धारित कर रखा था। किन्तु पंचायत चुनावों में शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता ने न सिर्फ उनसे चुनावों में शामिल होने का अवसर छीना है बल्कि गांव के स्वरूप को बदलने की उनकी इच्छा को भी खामोश कर दिया है। कमला सिर्फ अकेली ऐसी महिला नहीं हैं। ऐसी बहुत सी महिलाएं राजस्थान के अनेक गांवों में मिल जाएंगी जो शैक्षिक योग्यता न होने के चलते अब इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में अब कभी भी शामिल नहीं हो सकतीं। 





(पवित्र)

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