विशेष : पढ़ाई केवल ताकत ही नहीं एक सीढ़ी भी है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

विशेष : पढ़ाई केवल ताकत ही नहीं एक सीढ़ी भी है

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मध्य भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में सूरजपुर एक ब्लाक है जो ज़िला भी है। ज़िला मुख्यालय सूरजपुर छत्तीसगढ़ की राजधानी से 256 किलोमीटर की दूरी पर है। वनस्पति सिंह सूरजपुर ब्लाक के सोनवाही ग्राम पंचायत की सरपंच हैं। सोनवाही ग्राम पंचायत में तीन गांव सोनवाही, रमेशपुर व नरायनपुर आते हैं। वनस्पति सिंह की आयु 33 वर्ष है। पांचवी तक शिक्षित वनस्पति सिंह संयुक्त परिवार का हिस्सा हैं। परिवार में ससुर, देवर, देवरानी, देवर का लड़का, पति के अलावा स्वयं के दो लड़के हैं। प़िरवार की 20 एकड़ ज़मीन की उपज उनके जीवन यापन का मुख्य साधन है। वनस्पति सिंह के पति सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में स्वास्थ्य सहायक का काम करते हैं। पंचायत की कुल आबादी लगभग पांच हज़ार है। वनस्पति सिंह दो बार सरपंच का चुनाव लड़ चुकी हैं। 2010 में सरपंच के पद पर चुनाव लड़ने पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था जबकि 2015 में वह चुनाव जीत गयीं थीं। वनस्पति सिंह 2010 में पहली बार चुनाव लड़ीं थीं पर पराजित हुईं। दूसरी बार 2015 में सरपंच के पद पर फिर खड़ी हुई और जीत दर्ज की। 2010 के चुनाव में पूर्व सरपंच श्यामा देवी प्रतिद्वंदी थीं, चुनाव में जीत न पाने की एक वजह यह भी थी कि श्यामा देवी दो बार सरपंच रह चुकी थीं और लोग उन्हें जानते थे।’’पूर्व सरपंच श्यामा देवी अच्छा काम कर रहीं थीं। 2015 के चुनाव में तीसरी बार सरपंच का चुनाव लड़ रही थीं। लोग शायद किसी नए चेहरे को देखना चाहते थे या गांव के राजनैतिक समीकरण बदल गए थे इसी कारण 2015 के चुनाव में वनस्पति सिंह को सरपंच के पद के लिए चुना गया। 

नए सरपंच के तौर पर वनस्पति सिंह ने जब पंचायत का काम शुरू किया तो काम को समझना उनके लिए एक चुनौती थी क्योंकि उनका यह पहला सत्र था और वह पंचायत के कामों में अनुभवहीन थीं। पंचायत में बैठकों को बुलाना और उनमें सबके बीच में बैठकर काम व बात करना उनके लिए सहज नहीं था। वह गांव की बहू थीं। सबके साथ खुले में बैठकर बात करना उनके लिए एक नई परंपरा सी थी इसलिए उन्हें संकोच होता था। पर धीरे धीरे परिवार व पति की मदद से उन्होंने अपने काम को समझना शुरू किया। वनस्पति का आत्मविश्वास बढ़ा है और आज वह बैठकों का आयोजन स्वयं करती हैं और गांव वालों की समस्याएं सुनती हैं। हालांकि वनस्पति ने बैठकों में शिरकत और उनका आयोजन शुरू कर दिया है लेकिन पंचायत के ज़्यादातर निर्णय आज भी उनके पति ही लेते हैं। अभी भी उनकी ताकत सिर्फ दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने की है। व्यावसायिक व अधिकारिक दुनिया से ज्यादा परिचित न होने के कारण बड़े अधिकारियों से बात करने के लिए वनस्पति अपने पति की मदद लेती हैं। उनके साथ इन मीटिंग्स में उनके पति जाते हैं और अधिकारियों से बात करने में उनकी मदद करते हैं। अपने कार्यकाल में वनस्पति ने अपनी पंचायत के विकास के लिए काम किए। गांव में पानी की निकासी के लिए दो नालियों का निर्माण कराया। पंचायत भवन से मोहल्ला हरिजन पारा तक 28 सौ मीटर लंबी सड़क का निर्माण कराया।  नरायनपुर गांव को एक आंगनबाड़ी केंद्र मिला। प्राथमिक स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने पर गांव रमेशपुर के प्राईमरी स्कूल में सर्व शिक्षा अभियान के तहत एक और कमरा बनवाया गया। पानी की समस्या को दूर करने के लिए गांव में 8 छोटे तालाब बनवाए गए और 20 तालाबों की स्वीकृति ली गयी। पीने के पानी के लिए 4 हैंडपंप लगवाए गए और 221 शौचालयों का निर्माण कराया। इन सभी कामों को करने में वनस्पति सिंह के पति ने उनकी बहुत मदद की और इन सभी कामों को अपनी देख रेख में कराया। 

वनस्पति अपने इस कार्यकाल में पंचायत के कामों को सीख रही हैं। बाहरी दुनिया से परिचित हो रही हैं और वहां शिरकत करना सीख रही हैं। वनस्पति के  भीतर से संकोच भी जा रहा है और अब वह अगली बार खुद सरपंच का चुनाव लड़ना चाहती हैं। लेकिन राज्य में 8वीं पास का नियम प्रस्तावित हो चुका है। अगर यह नियम अगले चुनाव में पारित होता है तो वनस्पति सिंह जैसी कम शैक्षिक योग्यता रखने वाली महिलाएं चुनाव नहीं लड़ पाएंगी। वनस्पति थोड़ा निराश हैं और खुश भी। वह कहती हैं, मैं अब चाहती हूं कि अगले चुनाव में मैं प्रतिभाग करूं पर यदि 8वीं पास का यह नियम लागू हो जाता है तो मैं और मेरी जैसी अन्य महिलाएं शायद चुनाव और पंचायत से बहुत दूर चली जाएं।’’ पंचायत और शासन तब शायद उनकी दुनिया न रह जाए पर वनस्पति को भरोसा है कि 8वीं का नियम पंचायत में शिक्षित महिलाओं को लाएगा जो पंचायत का कामकाज खुद ही संभाल सकेंगी। उनको किसी के सहारे की ज़रूरत नहीं होगी। स्थानीय निवासियों में से एक चंद्रिका प्रसाद राजवाड़े मानते हैं कि 8वीं पास की अनिवार्य शिक्षा का नियम गांव के शासन में शिक्षित लोगों को बढ़ावा देगा और शिक्षित लोग, खासकर महिलाएं राजकीय कामों को अच्छे से कर सकेंगी।





(गौहर आसिफ)

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