विशेष : नीतियों की राजनीति में बहिष्कृत हुईं वैशाली - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 26 अप्रैल 2018

विशेष : नीतियों की राजनीति में बहिष्कृत हुईं वैशाली

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सतारा जिले के मान ब्लाक के पलशी ग्राम पंचायत की पूर्व सरपंच हैं वैशाली करे । वैशाली करे की उम्र पैंतीस साल है और उन्होंने स्नातक तक की शिक्षा हासिल की है। परिवार में पति, सास के अलावा एक 18 वर्षीय पुत्र को मिलाकर कुल चार सदस्य हैं। परिवार की आय का मुख्य साधन खेती बाड़ी है। वैशाली के परिवार के पास दो हेक्टेयर कृषि जमीन है। वैशाली की खुद की एक छोटी सी कपड़े व आर्टिफिशल ज्वैलरी की दुकान है। खेती व दुकान से होने वाली थोड़ी बहुत आमदनी से उनके परिवार का खर्च चलता है। 2011 की जनसंख्या के अनुसार  पलशी गांव की आबादी 7151 है जिनमें महिलाओं की कुल आबादी 3498 है। 2011 में गांव का साक्षरता दर 61.6 प्रतिशत था जबकि महिला साक्षरता दर 26.6 प्रतिशत था। वैशाली मूलतः सतारा जिले के वदुज कस्बे की रहने वाली हैं। 1999 में जब उनका विवाह इस गांव में हुआ तो उस समय यहां का माहौल बहुत ही संवेदनशील था और लोग यहां आने से डरते थे। यह गांव मारपीट के लिए जाना जाता था। वैशाली खुद भी बेहद सशंकित थीं। इस बारे में वह कहती हैं कि-‘‘जब वह इस गांव में आयीं तो उन्हें हमेशा महसूस होता था कि वह कहां आ गयीं? इस गांव में आपस में मार पीट एक आम बात थी जबकि वह एक बेहद शांत माहौल से आयी थीं। लोगों के विचार व रहन सहन सब कुछ अलग था। वह मानसिक रूप से काफी अशांत और असहज रहीं और इसीलिए विवाह के शुरूआती वर्षों में वह पूना चली गयीं और फिर वहीं से उन्होंने पलशी गांव आना जाना प्रारंभ किया।’’

हालांकि वैशाली के पिता राजनीति में रहे हैं किन्तु वैशाली की राजनीति में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। राजनीति के बारे में उनकी धारणाएं बहुत अच्छी नहीं थीं और इसीलिए इस क्षेत्र में आने का उनका कोई मन नहीं था और न ही कोई इरादा था पर विवाह के बाद जब वह पूना से आकर पलशी रहने लगीं तो उन्हें लगा कि गांव के लिए कुछ करने की जरूरत है। गांव में आते जाते लोगों से मिलते उनको एहसास हुआ कि गांव में कुछ बेहतर लोग भी हैं। केवल कुछ लोगों की वजह से गांव बदनाम था। 2012 के पंचायती राज चुनाव में जब पलशी पंचायत की सीट महिला आरक्षित हुई तो उस समय वैशाली गांव में शहर से आयी सुशिक्षित और एक अलग तरह की महिला के तौर पर जानी जाती थीं। लोग उनसे और उनके विचारों से बहुत अंिधक प्रभावित थे। इसलिए चुनाव का यह मौका आने पर गांव की महिलाओं ने ही उनको प्रेरित किया कि वह चुनाव मंे प्रतिभाग करके पंचायत के स्तर पर गांव के लिए कुछ बेहतर कर सकती हैं। थोड़ी आनाकानी के बाद वैशाली भी राजी हो गयीं। उन्हें भी लगा कि यह सही मौका है गांव में बदलाव और विकास करने का। उन्होंने चुनाव में प्रतिभाग किया। गांव की महिलाओं का उन्हें समर्थन मिला। परिवार वाले शुरूआत में उनके इस फैसले से राजी नहीं थे और वह खुद भी इस बात से सशंकित रहीं कि वो इस जिम्मेदारी को निभा पाएंगी या नहीं पर यहां उनके पति ने उनका साथ दिया और उन्हें प्रेरित किया कि वह जो करना चाहती हैं करें पर इस मौके को हाथ से न निकलने दें। अंत में वैशाली ने चुनाव लड़ने का मन बना लिया।   
            
वैशाली बताती हैं कि चुनाव की सारी प्रक्रियाएं उन्होंने खुद कीं। चुनाव लड़ने के लिए जो भी पेपर्स मांग गए थे वह उनके पास थे और जो नहीं थे वह उन्होंने तहसीलदार आॅफिस से ले लिए थे। वैशाली ने चुनाव प्रचार अपने गांव की कुछ महिलाओं के साथ ही किया और उस दौरान ही वैशाली को यह पता चली कि गांव में पानी और शौचालय दो मुख्य बड़ी समस्याएं हैं। तीसरी समस्या थी कि महिलाएं घर या खेतों में काम करने के सिवाय कभी बाहर नहीं निकलती थीं। वैशाली ने महिलाओं से मिलकर उनकी समस्याओं को सुनकर, हो सके तो उनका हल निकालना शुरू किया। गांव में पानी की बड़ी समस्या थी। मान ब्लॉक में गर्मियों के दिनों में पानी की काफी किल्लत हो जाती है। फरवरी महीने में ही कुओं का पानी सूख जाता हैं। गाँव में टेंकर से पानी भरने को लेकर लोगों के बीच कई बार लड़ाई झगड़ा तक हो जाता है। इस समस्यां से निजात दिलाने के लिए वैशाली ने गाँव के कुओं में टेंकर से पानी भरवाना शुरू किया। कुँए में पानी भरने के बाद गाँव के लोगों के बीच लड़ाई झगड़ा होना बंद हो गया। दूसरी तरफ उन्होंने मान ब्लॉक में चल रहे जल सरंक्षण मुहीम में अपने गाँव को जोड़ा और आज उसकी बदौलत उनके गाँव में दो छोटे चेक डैम बन गए हंै और अभी ऐसे ही 4 और छोटे चेक डैम बनने का काम चल रहा हैं। इन सभी चेक डैम का काम पूरा होने के बाद इसमें बारिश के पानी को सुरक्षित रखा जा सकेगा और जरुरत पड़ने पर किसान इस पानी को खेत में और अपने मवेशियों को पानी पिलाने के काम में इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह वैशाली ने गांव में पानी की समस्या का समाधान करके गांव का विश्वास जीता मगर खासतौर पर उन्होंने इस काम के माध्यम से महिलाओं का विश्वास जीता। इस तरह उनके प्रयासों व लगातार बातचीत के परिणामस्वरूप धीरे धीरे महिलाएं पंचायत की बैठकों में हिस्सा लेने लगीं। लेकिन यह राह इतनी आसान नहीं थी। भले ही वैशाली ने चुनाव की सभी शत्र्तों को पूरा किया और परिवार ने उनका साथ दिया पर पितृसत्ता के लिए एक स्त्री का नेतृत्व स्वीकार करना मुश्किल था और यहां उनके लिए संघर्ष इंतजार कर रहा था। पलशी गांव में वंजारी समुदाय के लोगों का काफी वर्चस्व है और वह बिल्कुल नहीं चाहते थे कि किसी महिला के हाथ में स्थानीय शासन की बागडोर जाए। गांव के पुरूषों को उनका सरपंच बनना बिल्कुल स्वीकार नहीं था। चुनाव के दौरान ही उन्हें इसके लिए ताने सुनने को मिले कि ‘‘यह कभी गांव में नहीं रही, कभी ग्राम पंचायत का मुंह भी नहीं देखा। ऐसे में यह महिला, सरपंच बनकर क्या करेगी?’’ वैशाली बताती हैं कि उनके सामने तो नहीं पर उनके पीछे लोग ऐसी बातें बोलते थे। अपने तमाम विरोधों के विरोध में वैशाली ने मौन की रणनीति बनाई और काम पर लग गयीं। वैशाली के दौर में पलाशी पंचायत में सात महिला व पांच पुरूष सदस्य थे। महिलाओं की भागीदारी गांव की एक समस्या थी ही। एक सरपंच के तौर पर जब भी वो बैठकों का आयोजन करतीं महिला पंचों की प्रतिभागिता नहीं होती, उसके स्थान पर उनके पति बैठकों में आते। वैशाली ने इसके समाधान स्वरूप महिला पंचों से दोस्ती की और उनके साथ अधिक समय बिताना शुरू किया। क्रमशः पंचायत की बैठकों में महिला पंचों की भागीदारी भी बढ़ी। 

शुरू में वैशाली को और भी विरोध झेलने पड़े। विभाग में काम करने वाले लोगों का कहना था कि आप तो बस हस्ताक्षर करो, बाकी काम हम देख लेंगे। वैशाली को यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने ंपंचायत का काम काज देखने वाले ग्राम सेवकों से उनके काम काज के बारे में जानकारी लेना शुरू किया और इस तरह पंचायत के काम काज को समझने लगीं फिर स्वयं निर्णय लेना शुरू किया। हालंाकि उन्होंने सब कुछ सीखा पर पुरुषों का वर्चस्व और दबाव इतना ज्यादा था कि कभी वैशाली रो देती थीं। पर धीरे धीरे उन्होंने इससे भी पार पा लिया। हालांकि सरकारी दफ्तरों में काम करवाने में उन्हें ज्यादा दिक्कतें नहीं आयीं क्योंकि उनके कार्यकाल में उनके विभाग में वरिष्ठ अधिकारी कोई महिला ही थीं इसलिए वहां उन्हें किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। पर गांव पंचायत के स्तर पर वैशाली को पुरुषों के विरोधा का काफी सामना करना पड़ा। पलशी की सीट जो 2012 में ही महिला सीट घोषित हो गयी थी उसमें वैशाली अगला कार्यकाल नहीं ले सकीं। महाराष्ट्र की बिन विरोध पंचायत का सहारा लेकर प्रतिपक्षियों ने स्थानीय राजनैतिक व जातीय समीकरणों के जाल फैलाकर चुनाव की प्रक्रिया को ही नहीं होने दिया और वैशाली के स्थान पर अपने अनुसार काम करने को तैयार किसी दूसरी महिला को सरपंच चुन लिया। वैशाली क्योंकि अपने निर्णय स्वयं लेती थीं और अपने काम खुद करती थीं, इसलिए वह गांव के प्रभुत्वशाली समुदायों की नजर में खटकने लगी थीं और उन्हें हटाने का कोई बहुत साॅलिड कारण भी नहीं था इसलिए पांच वर्षों के बाद पलशी में चुनाव कराये ही नहीं गए और बिन विरोध पंचायत की नीति के तहत वैशाली से चुनावों में प्रतिभाग करने का अवसर छीन लिया गया।





(शिवाजी यादव)

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