आलेख : पंच तो बनीं सरपंच न बन सकेंगी गैलीबाई - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

आलेख : पंच तो बनीं सरपंच न बन सकेंगी गैलीबाई

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यह कहानी है वार्ड पंच गेली बाई की है। गेली बाई राजस्थान के सिरोही ज़िले के रेवदर ब्लाक की पादर पंचायत की वार्ड पंच हैं। गेली का ताल्लुक आदिवासी समुदाय से है और वह मेथीपुरा गांव की रहने वाली हैं। गेली की उम्र 55 वर्ष व उन्होंने तीसरी कक्षा तक शिक्षा हासिल की है। गेली के परिवार में कुल छह सदस्य है व आय का मुख्य साधन खेती है। अपने छोटे से ज़मीन के टुकड़े पर अनाज उपजाने के साथ ही वो खेत मजदूर के तौर पर भी काम करती हैं और महीने के 4000-5000 तक की आमदनी कर लेती हैं जिससे उनके परिवार का जीवन यापन होता है। पादर पंचायत में 7 महिला पंच हैं और महेन्द्र कोली इस पंचायत के सरपंच हैं। 2015 के चुनावों में पंचों की सीटों में से 7 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थीं। राजस्थान का समाज एक सामन्ती समाज है। इसका असर गेली के गांव समाज में भी उतनी ही तीव्रता से दिखाई पड़ता है। गेली को पंच पद के लिए उम्मीदवारी में शामिल होने के लिए सरपंच ने उसके पति से अनुमति मांगी। गेली बताती हैं कि ‘‘उनके पति और बेेटे ने सोचा कि गेली तो बस नाम भर के लिए ही पंच बनेंगी, काम तो पिता पुत्र ही करेंगे।’’ पंच बनने के चार छह महीने तक तो सरपंच और गांव के लोग उनके पति और पुत्र को ही सूचनाएं भेजते थे, बैठकों में बुलाते थे। किन्तु समय के साथ गेली अपने काम को बहुत अच्छी तरह से समझ गयीं और पंचायत के काम-काज की कमान अपने हाथ में ले ली ।

गेली एक स्थानीय संस्था से जुड़ी हुई हैं। संस्था की कोआॅर्डिनेटर बताती हैं कि  बैठकों में गेली का नाम बुलाया जाता था तो वह जवाब ही नहीं देती थी। जब उन्होंने उनसे इसकी वजह पूछी तो गेली ने बताया कि ‘‘वह तो अपना नाम ही भूल गयी थीं। गांव में तो लोग उन्हें उनके पति की दुल्हन या बेटे की मां के नाम से बुलाते हैं। इस कारण उन्हें उनका नाम ही भूल गया था इसलिए वह पहचान ही नहीं पाती थीं कि यह उनका ही नाम है।’’ गेली बाई पिछले एक दशक से सामाजिक कार्यों में रूचि लेकर काफी अच्छा काम कर रही हैं। न सिर्फ बाल विवाह, बालिका शिक्षा जैसे सामाजिक मुद्दों पर अपने समुदाय के लोगों की समझ को साफ करने में वह सक्रिय हैं, बल्कि अपने वार्ड की समस्याओं पर भी उनकी लगातार नज़र रहती है। गेली ने अपने वार्ड की सड़क को ठीक कराया और अपने यहां पानी की समस्या को भी सुलझाया। गांव के लिए फंड लाने का काम करना हो तो गेली उसमें भी आगे रहती है।ं गेली बाई की गिनती ब्लाॅक के सक्रिय पंचायत सदस्यों में होती है जिन्होंने हमेशा से महिलाओं व बालिकाओं के हित के लिए कार्य किया है। इस बार गेली बाई ने साहस के साथ काम लेते हुए पादर और भटाणा पंचायत की सात अवैध शराब की दुकानों को बंद करा दिया। गांव में पिछले कई वर्षो से शराब की लत पुरूषों को जकड़े हुए थी जिसकी वजह से महिलाएं शारीरिक हिंसा व मानसिक प्रताड़ना का शिकार हो रही थीं। पिछले कुछ वर्षोें में इसकी वजह से कई लोग मौत का शिकार हुए। धीरे धीरे गांव के छोटे बच्चे भी इसकी गिरफ्त में आने लगे। 

इस मामले में गेली बाई ने महिलाओं से बात की और उन्हें समझाया कि हम शराबबंदी के खिलाफ आवाज़ उठाएंगे। ऐसे ही बैठे रहे तो हमारे पूरे परिवार उजड़ जाएंगे। हालांकि शुरूआत में इस अभियान के लिए महिलाओं को एकजुट करने में गेली बाई को खासी परेशानी हुई पर अंत में पंचायत की सारी महिलायें इस अभियान में गेली बाई के साथ आ गईं।  महिलाओं ने गेली बाई के नेतृत्व में एकजुट होकर शराब की दुकान के बाहर शंतिपूर्वक प्रदर्शन किया। गेली बाई के साथ इस प्रदर्शन में महिला वार्ड पंचों के अलावा तीन दर्जन से अधिक महिलाएं व स्कूली बच्चे शामिल थे। इन सभी ने मिलकर शराब की दुकान को खुलने नहीं दिया। इस पर भी प्रशासन ने कोई कदम नहीं उठाया बल्कि स्थानीय चैकी से पुलिस भेज दी। पुलिस ने महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार किया। महिलाओं को जब कुछ होता नज़र नहीं आया तो सारी महिलाओं ने गेली बाई के नेतृत्व में ब्लाॅक के आबकारी विभाग व एसडीएम कार्यालय पहुंचकर शराबबंदी के खिलाफ नारेबाज़ी की और ज्ञापन सौंपे। इस पर आबकारी अधिकारी व एसडीएम ने एक सप्ताह की मोहलत मांगी और कहा कि एक सप्ताह में हम शराब की दुकान बंद करा देंगे। इस पर महिलाओं व गेली बाई ने कहा कि यदि एक सप्ताह के भीतर शराब की दुकानें बंद नहीं हुईं तो हम अनिश्चित कालीन धरना देंगे। एक सप्ताह बीतने के बाद भी प्रशासन के वादे का कुछ नहीं हुआ। अंत में महिलाओं ने परेशान होकर वापस एसडीएम कार्यालय के सामने धरना दिया और कहा कि अब हम तभी उठेंगे जब शराब की दुकानंे मैथीपुरा से हटा दी जाएंगी। महिलाओं की इस जिद को देख एसडीएम, आबकारी थानाधिकारी, एमएलए, तहसीलदार ,सांसद स्वयं धरना स्थल पर पहुंचे। महिलाआंे ने उनसे तीन मांगें रखीं जिसमें सबसे पहली मांग थी कि मैथीपुरा से शराब की दुकाने हटायी जाएं। दूसरी मांग थी कि भटाणा चैकी प्रभारी को हटाया जाए। आखिरी मांग थी कि  शराब की दुकान के पास बने होटलों को बंद किया जाए। धरना प्रदर्शन व इसके पीछे छिपे बड़े कारण के महत्व को देखते हुए सांसद ने तुरंत पादर और भटाणा की अवैध शराब की दुकान बन्द करवायीं। इसके अलावा मैथीपुरा शराब की दुकान के पास चल रहे होटल को बंद करवाया। मैथीपुरा की दुकान को बंद कराने के लिए 15 दिन का समय मांगा क्योंकि वह दुकान वैध थी। साथ ही साथ भटाणा चैकीप्रभारी को वहां से हटया दिया।

गेली बाई ने हिम्मत, रणनीति और नीतिगत तरीके से अपनी लडाई लड़ी व सफलता हासिल की। गेली बाई मैथीपुरा की दुकान को बंद कराने को लेकर सांसद के ज़रिए दिए गए 15 दिन पूरे होने का इंतजार कर रही हैं। अभी भी वह समय-समय पर जाकर शराब की दुकानों की जांच करती हंैं। गेली बाई और उनके साथ इस लड़ाई का हिस्सा बनी महिलाआंे को पंचायत के लोग धन्यवाद देते है कि उनके इस अथक प्रयास से आसपास की अवैध शराब की दुकानें बंद हो गयी। स्थानीय शासन में महिला सक्रियता का जीता जागता उदाहरण हैं, वार्ड पंच गेली देवी। गेलीबाई अब गांव में अपने नाम से जानी जाती हैं। साहस और सक्रियता में वह लोगों के लिए उदाहरण हैं। पंच के पद पर सारा काम समझने के बाद अब वह सरपंच पद के लिए चुनाव में भाग लेने की इच्छुक हैं। किन्तु ऐसे में एक पंच के तौर पर सफल होने के बाद भी शायद वह सरपंच पद की यात्रा न कर पायें। हालांकि पादर की सीट अभी महिला सीट नहीं है पर यदि 2020 के चुनावों में यह महिला सीट होती है तो भी गेली शायद इस चुनाव में भाग न ले पायें क्योंकि वह चुनावों में प्रतिभाग करने के लिए शिक्षा की आवश्यक शर्त को पूरा नहीं करती हैं। राज्य में सरपंच पद की उम्मीदवारी के लिए आठवीं पास शैक्षिक योग्यता अनिवार्य है। आठवीं पास न होने की वजह से पंचायत को एक अनुभवी और परिश्रमी उम्मीदवार से महरूम होना पड़ेगा और गेली को अपने अधिकार से। 





(अर्जुन राम)

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