आलेख : नीतियों की बाधा से भी बड़ी बाधा है उत्पीड़न - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 28 अप्रैल 2018

आलेख : नीतियों की बाधा से भी बड़ी बाधा है उत्पीड़न

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गुजरात की राजधानी गांधीनगर के कई गांवों में एक गाँव है राचड़ा, जहाँ की सरपंच हैं रूपा भीखाजी ठाकोर। रूपा 2017 से राचड़ा पंचायत की सरपंच हैं। राचड़ा ग्राम पंचायत गांधीनगर के कलोल तालुका में आता है जो गांधीनगर से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर है। पंचायत की कुल आबादी तकरीबन 3924 है जिसमें महिलाओं की कुल संख्या तकरीबन 1100 होगी । रूपाबेन यहां अपने पति और दो बच्चों के साथ रहती हैं। इनके पति प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करते हैं जिससे परिवार का गुज़र बसर होता है। रूपा पहली बार सरपंच का पद संभाल रही हैं। 2017 में जब राचड़ा ग्राम पंचायत की सीट महिला के लिए आरक्षित हुई तो रूपा के पति भिकाजी ने रूपा को सरपंच के पद के आवेदन भरवा दिया जबकि रूपा का इसके लिए कोई मन नहीं था और न ही रूपा के बच्चें ऐसा चाहते थे। रूपा बेन 2017 में सरपंच बनीं और तब से वह गांव में विकास से जुड़े अनेक काम करा चुकी हैं। गाँव में सूखे पड़े तालाब में पशुओं के लिए पानी भरवा दिया। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास दिलवाए, सड़कों का निर्माण कराया, पानी निकासी के लिए गटर लाईन डलवाई, बिजली के खम्बे लगवाए व पानी की समस्या को दूर करने के लिए नल लगवाए। सरपंच के तौर पर काम करने में उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
            
रूपा 2012 में सरपंच बनने से पहले पंच का पद संभाल चुकी हैं। दरअसल राचड़ा पंचायत के एक पंच ने 2012 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और पंच का काफी समय के लिए खाली पड़ा रहा। पंच पद के लिए किसी और उम्मीदवार की ओर से नामांकन नहीं भरा गया। लिहाज़ा रूपा को एक साल के लिए निर्विरोध पंच चुन लिया गया । राचाड़ा ग्राम पंचायत में इस समय कुल 9 सदस्य हैं जिसमें 4 महिलाएं हैं और 5 पुरूष हैं । रूपा सरपंच पद के लिए हुए चुनावी नतीजों को लेकर थोड़ा घबराई हुई थीं। शायद रूपा और उनके बच्चों को यह बात पहले से ही पता थी कि उनकी पंचायत में सरपंच के साथ किस तरह का व्यवहार किया जाता है। पंचायत में विकास कामों से जुड़े निर्णय वह सभी पंचों की सलाह से लेती हैं। सरकारी दफ्तरों में कैसे कामकाज निकलवाना हैं या कैसे कोर्ट कचहरी में काम होता हैं, इस सब कामों की जानकारी उनके पति उन्हें देते हैं। रूपा पंचायत से जुड़े कार्यों से संबंधित सलाह अपने पति से लेती हैं। प्राप्त जानकारी के आधार पर पंचायत के विकास के लिए ग्रांट लाने में सफल रही हैं। सरपंच बनने के बाद सरकार की तरफ से उन्हें केवल एक बार ही ट्रेनिंग मिली है। रूपा कहतीं हैं कि सरपंच के कामों को समझने के लिए एक ट्रेनिंग में मैं बहुत ज़्यादा नहीं समझ पाई थी। सरपंच के कामों को समझने में उनके पति भिकाजी भाई ने उनकी मदद की। इसके अलावा रूपा ने अपनी मदद के लिए एक कानूनी सलाहकार को रखा है, जिसको वह महीने में तकरीबन 4000 से लेकर 5000 तक देती है ।
        
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रूपा नाम का उल्लेख किये बगैर अपने गांव के एक व्यक्ति के बारे बताती हैं जिसका किसी राजनैतिक दल से संबंध है और वह उनको अप्रत्यक्ष तौर पर मानसिक रूप से परेशान करता है। यह व्यक्ति तालुका पंचायत में एक शक्तिशाली सदस्य हैं। उसके कहने पर राचड़ा गाँव में उसके पक्षधर लोग देर रात रूपा से बेवजह की मदद मांगने के लिए शराब पी कर आते हैं और यदि रूपाबेन उनसे कहें कि वह सुबह आकर बात करें तो वह गाली गलौज करना शुरू कर देते हैं। बकौल रूपा पिछले दिनों उनके पति व बेटे पर जान लेवा हमला किया गया जिसमें रूपा का बेटा बाल-बाल बचा। रूपा और उसके परिवार ने जब इस मामलें कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी चाही तो रूपा के परिवार को पुलिस में रिपोर्ट न दर्ज कराने के लिए धमकी भी दी गयी कि यदि उन्होंने ऐसा किया तो अगली बार उनका बेटा नहीं बचेगा। रूपा के मुताबिक उसके साथ इस तरह का अत्याचार इसीलिए किया जा रहा हैं ताकि वह सरपंच का पद छोड़ दे । एक महिला सरपंच के तौर पर रूपा का मनोबल तोड़ने का यह इकलौता प्रयास नहीं है। रूपा बताती हैं कि गांव में एक बैंक के उद्घाटन के मौके पर  उनका मनोबल तोड़ने के लिए वर्तमान सरपंच के बजाय पंचों का सम्मान किया गया और रूपा बेन को अनदेखा किया गया। जबकि गांव की किसी भी गतिविधि में सरपंच एक महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। रूपा के मुताबिक बैंक मैनेजर ने यह सब तालुका पंचायत में एक मंत्री के कहने पर यह सब किया। यह सब इसलिए कि वह एक महिला हैं, और वह अपनी स्वतंत्र समझ से काम करती है।
          
रूपा के पति ने बताया कि उनके पति व रूपा पर यह आरोप भी लगाया कि उन्होंने पंचायत में एक सूखे पड़े तालाब को एक प्राइवेट बिल्डर को बेच दिया। जबकि वह तालाब अपनी जगह वैसे का वैसा ही है। इतना ही नहीं इस खबर को मीडिया में भी प्रकाशित करा दिया। रूपा अपने पति और अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहती हैं, उनका कहना है कि उनके लिए उनके परिवार की सुरक्षा सबसे महत्वपूर्ण है चाहे उनको इसके लिए सरपंची छोड़नी क्यों न पड़ जाये? रूपा ने बताया कि वर्तमान में जो सचिव है वह पहले के सरपंचों से खाली चेक पर ही हस्ताक्षर करवा लिया करता था। रूपा ने खाली चेक पर हस्ताक्षर करने से मना दिया। इसलिए सचिव ग्राम पंचायत का ग्रांट पास करने में मुश्किलें पैदा करने लगा। जब वह कभी रूपा जिला अधिकारी को गाँव के विकास कार्य के लिए अपनी तरफ से बजट देती थी तो सचिव उस बजट को गलत बता देता था और राजकीय पक्ष भी सचिव की बात को मानकर उनको ग्रांट को कम करके ही देता था । रूपाबेन अपने गाँव के लिए शिक्षा, गरीब लोगों के लिए मकान और पानी के मसले पर और काम करना चाहती हैं, वाई फाई की सुविधा लाना चाहती हैं जिससे बच्चे इन्टरनेट के माध्यम से अपनी शिक्षा को और बेहतर कर सकें। पर गांव राचड़ा़ में विकास कार्य रूका हुआ है क्योंकि मानसिक परेशानियों के चलते रूपाबेन महत्वपूर्ण मूद्दों पर अपना ध्यान नहीं दे पा रही हैं। गुजरात सरकार ने महिलाओं को ग्राम पंचायत में 50 प्रतिशत आरक्षण देकर उन्हें शासन में शामिल होने का मौका तो दिया है किन्तु आज भी औरतों के प्रति समाज का नज़रिया, राजनैतिक समीकरण और भ्रष्टाचार की वजह से पंचायतों में बैठी औरतों का मनोबल तोड़ने की  कोशिशें जारी हैं। आज भी हम महिलाओं के नेतृत्व को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। रूपा ठाकोर इसका एक बड़ा उदाहरण हैं। वह भले ही राज्य स्तरीय नीतियों की बाधा को पार कर आयी हैं किन्तु उनके मनोबल को तोड़ने की यह कोशिशें अन्ततः उनको अपना रास्ता बदलने को मजबूर कर सकती हैं। आश्चर्य नहीं कि किसी दिन उन्हें अविश्वास प्रस्ताव की गिरफ्त में ले लिया जाए या वह स्वयं आहत होेकर अपना पद छोड़ दें। रूपा शायद यह फैसला अपने परिवार की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए ले सकती हैं। 



--आसिफ गौहर--

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