सरपंच के लिए शिक्षा ताकत है : ज्योति काले - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

सरपंच के लिए शिक्षा ताकत है : ज्योति काले

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यह कहानी है ज्योति काले की है। ज्योति काले महाराष्ट्र के पूना ज़िले के इंदापुर तहसील की जाचक वस्ती पंचायत की सरपंच हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार जाचकवस्ती की कुल आबादी 1261 हैं जिसमें महिलाओं की कुल आबादी 574 है। जातक बस्ती की साक्षरता दर 73.67 प्रतिशत है जबकि महिला साक्षरता दर 66.03 प्रतिशत है। ज्योति पिछड़ी जाति केे गरीब परिवार से है। परिवार में कुल चार सदस्य हंै। परिवार की आय का मुख्य साधन कृषि है। ज्योति काले के परिवार के पास तकरीबन एक बीघा ज़मीन है व पिता कृषि मज़दूर हंै। इस तरह खेती व मज़दूरी से ज्योति काले के परिवार को 15-20 हज़ार रूपयो की आमदनी हो जाती है। ज्योति की आयु केवल 29 साल है और वह ग्राम पंचायत में नेतृत्व की भूमिका में हैं। ज्योति काले ने एमए तक शिक्षा ग्रहण की है और वह बीएड प्रशिक्षित हैं। सरपंच बनने से पहले वह एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षिका के तौर पर काम करती थीं। उनका सपना प्रशासनिक सेवाओं में जाने का है और वह उसकी तैयारी भी कर रही हैं। साथ ही ग्राम पंचायत में सरपंच की ज़िम्मेदारियां भी संभाल रही हैं। 2015 के पंचायत चुनावों में जाचक बस्ती की सीट पिछड़ी जाति महिला के लिए आरक्षित थी। उस समय ज्योति गांव में सबसे अधिक शिक्षित थीं। गांव के लोगों ने उन्हें चुनाव मंे प्रतिभाग करने के लिए दबाव डाला। उन्हें विश्वास था कि शिक्षित ज्योति गांव के विकास के लिए बेहतर काम कर सकती हैं। तभी ज्योति ने पंचायत के चुनावों में प्रतिभागिता की। इस बारे में ज्योति काले कहती हैं कि-‘‘मेरे पास न पैसे थे और न ही कोई राजनैतिक ताक़त, केवल शिक्षित होना ही मेरे चुनाव जीतने का मुख्य कारण बना।’’ 

ज्योति शिक्षित हैं इसलिए पंचायत के काम काज समझना उनके लिए बहुुुत चुनौतीपूर्ण नहीं रहा क्योंकि प्रशासनिक कार्यों को समझने के लिए वह लगातार पढ़ती रहती है। साथ ही ग्राम सचिव देवकाते ने भी उन्हें पंचायत के कार्यों को समझाने में उनकी मदद की। सरकारी आॅफिसों में अधिकारियों से पंचायत विकास के अनुदान, योजनाओं को समझने और प्राप्त करने में भी उन्हें तुलनात्मक रूप से अधिक बेहतर रवैया ही मिलता है और जहां वह अटकती हैं वहां अपनी जानकारी से कामों का होना सुनिश्चित करती हैं। ज्योति के लिए सभाओं में महिलाओं की सहभागिता एक बड़ी चुनौती थी। जब भी वह सभा बुलाती थीं तो महिलाएं उसमें भाग नहीं लेती थीं। ज्योति ने महिलाओं से बात करनी शुरू की और उन्हें प्रोत्साहित और जागरूक किया। उन्होंने महिलाओं को बताया कि वह पंचायत के विकास में महत्चपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। धीरे धीरे महिलाओं ने बैठकों में आना शुरू किया, और अपनी बात रखनी शुरू की।  ज्योति को अपना काफी समय पंचायत में देना पड़ता है। ‘क्या होता यदि वो विवाहित होतीं’ के प्रश्न पर ज्योति काले कहती हैं कि-‘‘हां, विवाहित महिलाओं की ज़िम्मेदारियां अधिक होती हैं और उन्हें घर और काम दोनों को संभालना पड़ता है। इस दृष्टि से मुझे अभी थोड़ा राहत है और इसीलिए मैं अपने काम और पढ़ाई पर फोकस कर पाती हूं।’’ ‘शिक्षा से ताकत आती है और कामों को समझ कर निर्णय करने की क्षमता भी। शायद इसीलिए मैं पंचायत के कामों के बारे में आत्मनिर्भर हूं। मुझे हर चीज़ की समझ है और सोच समझकर मैं खुद ही निर्णय लेती हूूं।’’

इसी वजह से ज्योति काले पंचायत चुनाव में निश्चित शिक्षा मानकों के पक्ष में भी हैं। वह कहती हैं,‘ मैं इस बात से सहमत हूं कि पंचायत में प्रतिभाग करने के लिए एक निश्चित स्तर पर शिक्षित होना ज़रूरी है। वह ताकत है।’’ अपने तीन साल के कार्यकाल के दौरान ज्योति ने पंचायत के विकास के लिए काफी काम किए हैं जिसकी एक लंबी फेहरिस्त है। उन्होंने पंचायत में पानी की निकासी के लिए सीवर लाइन के निर्माण के साथ नालियों की मरम्मत करवायी। पंचायत को खुले से शौचमुक्त बनाना उनकी एक बड़ी उपलब्धि रही है। इस समय ज्योति काले पंचायत के प्राईमरी स्कूल को डिजिटल बनाने के काम में लगी हुई हैं।  पंचायत के काम काज के दस्तावेज़ों पर उन्होंने डिजिटल सिग्नेचर शुरू कर दिये हैं। ई-टेंडर के जरिये वह पंचायत के काम बांटती हैं और भुगतान आॅनलाइन करवाती हैं। ज्योति कहती हैं कि वह यह सब इसलिए कर सकी हैं क्योंकि वह शिक्षित हैं। यदि वह शिक्षित न होतीं तो शायद इनमें से बहुत सी तकनीकी बातें और सुविधाएं उनको पता भी नहीं होतीं या वह दूसरों पर निर्भर रहतीं। विकास कार्यों में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए वह जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करवाती हैं।  किन्तु जिस समाज में हम रहते हैं उसमें कोई भी काम अवरोध शून्य नहीं है, खासकर महिलाओं के लिए। यह एक सामान्य धारणा है कि बिना चारित्रिक पतन के कोई भी स्त्री आगे नहीं बढ सकती। हालांकि ज्योति बहुत हिम्मती हैं और इस पर भी हंस ही देती हैं कि लोग उनके पीछे उनके चरित्र पर प्र्रश्न उठाते हैं , खासकर जब वह गांव से बाहर जाती हैं या पंचायत का कोई बड़ा काम कर देती हैं। पर वह हताश नहीं होतीं। वह कहती हैं कि- ‘‘मेरे माता-पिता को मुझ पर विश्वास है और वही मेरे लिए काफी है। किसी भी स्त्री के लिए आगे जाने का रास्ता शायद इन लांछनों से होकर ही जाता है। मुझे कोई दिक्कत नहीं होती, लोगों को जो कहना हो कहें।’’

ज्योति का मानना है कि आरक्षण महिलाओं को आगे आने के लिए बड़ा अवसर हैं। इसने बहुत सी महिलाओं को मुख्यधारा में आने में मदद की है। महिलाओं को इसका फायदा उठाना चाहिए और अधिक से अधिक प्रतिभागिता करनी चाहिए जिससे इस नीति का उद्देश्य सफल हो सके। वह अपना ही उदाहरण देती हैं कि ‘अगर जाचक बस्ती की सीट महिला सीट नहीं होती तो वह भी सरपंच नहीं बन सकती थीं। अवसर और शिक्षा से आज वह यहां हैं।’  अगले पंचायत चुनावों में ज्योति सरपंच का चुनाव लड़ने की इच्छुक नहीं है। ज्योति का मानना है कि उनके लिए तो रास्ते और भी हैं। पंचायत चुनाव में आरक्षण का लाभ अब दूसरी महिलाओं को उठाना चाहिए जिससे उनका सशक्तिकरण हो सके। सरपंच के पद पर उम्मीदवार बनने के लिए ज्योति के पास सारी योग्यताएं थीं। उन्हें सरपंच पद के लिए आवेदन फार्म के साथ मांगे गए सारे योग्यता नियमों के प्रमाण देने पड़े थे। आपराधिक रिकार्ड की पुष्टि के लिए ज्योति को चरित्र प्रमाण पत्र पुलिस स्टेशन से लेना पड़ा था। इसके अलावा घर में शौचालय सुचारू रूप से काम कर रहा है, यह भी ज्योति काले को आवेदन फार्म के साथ लिखकर देना पड़ा था। शिक्षा के प्रमाण पत्र भी ज्योति काले ने आवेदन फार्म के साथ जमा किए थे।  जाचक बस्ती में ही पंचायत चुनाव के दौरान चुनाव की उम्मीदवार एक महिला ने शौचालय न होते हुए भी घर पर शौचालय होने का दावा किया था और नामांकन फार्म भरा। ज्योति उनका नाम नहीं लेना चाहतीं मगर कहती हैं कि इस तरह के प्रयास गलत हैं और इसीलिए ज्योति ने उस महिला के चुनाव लड़ने का विरोध किया था। महाराष्ट्र में वही व्यक्ति पंचायत का चुनाव लड़ सकता है जो शौचालय का इस्तेमाल करता हो। अगर किसी व्यक्ति के घर शौचालय नहीं है और वह दूसरे का शौचालय इस्तेमाल करता है तो वह भी पंचायत का चुनाव में प्रतिभाग कर सकता है। इसी आधार पर उसे चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी गई।

महिला सरपंचों से बातचीत की श्रृंखला में ज्योति पहली महिला सरपंच हैं जिन्होंने अपना नामांकन फाॅर्म खुद भरा पर अपने नामांकन के प्रमाण पत्रों को लेने ज्योति अकेले नहीं जा पायीं। उसमें उन्हें अपने भाई और पिता की मदद लेनी पड़ी। हालांकि वह पर्याप्त शिक्षित हैं पर फिर भी वह आश्वस्त नहीं थीं कि वह यह प्रमाण पत्र आसानी से पा सकती हैं। वह इस सारी कवायद को याद करके कहती हैं, ‘‘यह आसान काम नहीं है। इसमें बहुत समय लगता है और बहुत सघन प्रक्रिया है। फिर कम पढ़े लिखे लोगों को तो और भी चुनौतियां आती हैं क्योंकि सिस्टम इन लोगों के साथ अच्छे से पेश नहीं आता है। ’’  पंचायती राज चुनावों में जो राज्य की ओर से पात्रता की तमाम शर्तें लगायी गयी हैं, ज्योति उन्हें ठीक मानती हैं। उनका कहना है कि अवसर तो आपको नई पंचायती राज नीति ने दिया ही है और अब उसके अनुकूल बन मुख्यधारा में आना हमारा काम है। शिक्षा को वह इसमें सबसे महत्वपूर्ण तत्व मानती हैं क्योंकि इसी शिक्षा ने उनको इस पद पर आने का मौका दिया और यही शिक्षा अन्य महिलाओं को भी ताकत दे सकती है कि वह मुख्यधारा में अपनी भूमिका को अच्छे से निभा सकें और शोषण मुक्त हो सकें। 





(युवराज जाधव)

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