125 साल पहले छपा था हिंदी पत्रकारिता का पहला इतिहास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 30 मई 2018

125 साल पहले छपा था हिंदी पत्रकारिता का पहला इतिहास

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नयी दिल्ली, 30 मई, हिंदी पत्रकारिता का पहला इतिहास आज से 125 साल पहले लिखा गया था जिसके लेखक भारतेंदु हरिश्चन्द्र के फुफेरे भाई राधाकृष्ण दास थे। यह पुस्तक कई वर्षों से दुर्लभ थी आैर अब उसका पुनर्प्रकाशन हो रहा है।  काशी नागरी प्रचारिणी सभा से 1894 में प्रकाशित हिंदी के सामयिक पत्रों के इतिहास के अनुसार 1845 में प्रकाशित बनारस अखबार ही हिंदी का पहला अखबार माना जाता था। लेकिन 1930 के दशक में पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी के संपादन में कोलकाता से प्रकाशित विशाल भारत में छपे एक लेेख के अनुसार उदन्त मार्तण्ड देश का पहला हिंदी अखबार था । यह 30 मई 1826 में को प्रकाशित हुआ था और करीब डेढ वर्ष बाद ही इसका प्रकाशन बंद हो गया। 30 मई को ही देशभर में हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। बिहार विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे रामनिरंजन परिमलेन्दु ने इस इतिहास का संपादन किया है जिसकी कोई प्रति देश के किसी पुस्तकालय में नहीं थी।  उन्होंने पत्रकारिता दिवस पर बताया कि इस किताब की एक प्रति नागरी प्रचारिणी सभा में थी लेकिन वह खो गयी थी और उन्हें आज से 22 साल पहले बनारस की कचौड़ी गली में पटरी पर बिकने वाली पुरानी पुस्तकाें में मिल थी जिसका संपादन कर के वह उसे नये सिरे से प्रकाशित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कचौडी गली में मिली इस किताब की एक प्रति काशी नागरी प्रचारिणी सभा को दे दी गई थी।  इसकी 32 पेज की भूमिका के साथ इसे छपवाने का काम किया गया है जो राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हो रही है। उस इतिहास में 139 अखबारों पत्रिकाओं का जिक्र है जो 1845 से 1904 के बीच यानी 55 वर्षों में निकले। राधाकृष्ण दास पेशे से ठेकेदार थे और उन्होंने ने ही काशी नागरी प्रचारिणी का भवन बनवाया था। उनका जन्म 1865 में हुआ और निधन 1907 में हुआ ।  उन्होंने 1900 में बाबू हरिश्चन्द्र की जीवनी लिखी थी। 1845 में बनारस अखबार शिवप्रसाद सितारे हिन्द की मदद से निकला था। श्री परिमलेन्दु ने बताया कि काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने पहली पुस्तक हिंदी पत्रकारिता का इतिहास भी छापी थी । इस किताब के प्रकाशन में बाबू श्यामसुंदर दास और कार्तिक प्रसाद ने सहयोग किया था। यह करीब 70 पेज की किताब थी जो अब नई भूमिका और इस पुस्तक की उस जमाने में हुयी समीक्षाओं के साथ छप रही है।

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