दुमका : विश्व की प्राचीनतम सभ्यता नामक शोध पुस्तक का लोकार्पण - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 18 जून 2018

दुमका : विश्व की प्राचीनतम सभ्यता नामक शोध पुस्तक का लोकार्पण

jhaarkhand map
पुरातत्त्वविद् पंडित अनूप कुमार वाजपेयी द्वारा लिखित विश्व की प्राचीनतम सभ्यता नामक शोध पुस्तक का 18 जून को दुमका के जनसम्पर्क विभाग सभागार में प्रयास फाउंडेशन फाॅर टोटल डेवलपमेंट संस्थान, दुमका के बैनर तले इतिहासकारों, लेखकों, पदाधिकारियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकत्र्ताओं, बुद्धिजीवियों द्वारा सामुहिक रूप से लोकार्पण किया गया। लेखक वाजपेयी ने पुस्तक के विषयवस्तु पर प्रकाश डालते हुए दावा किया कि मानवांे की सृष्टि सर्वप्रथम विश्व की प्राचीनतम राजमहल पहाडि़यों पर हुई थी। आज भी यहाँ की पहाडि़यों पर उन प्राचीनतम मानवों की पदछापें बहुतायत में हैं, जिनकी औसत लम्बाई 13 से 14 फीट तक थी। पदछापों की कई तस्वीरें भी पुस्तक में प्रकाशित हैं। आगे उन्होंने कहा कि अबतक उन्हें जितनी जगह मानवों की पदछापें मिली हैं उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है दुमका जिला के जरमुण्डी अंचल स्थित घाघाजोर नामक एक पतली नदी के किनारे स्थित चट्टान, जिसपर कुल 9 की संख्या में मानवों की पदछापें हैं। चट्टान की विशेषता यह है कि उसपर हिरण पशु के खुर की भी दो छापें हैं। साथ ही उसपर बहुत ही लम्बे साँपों के जीवाश्म हैं। उन्होंने यह भी बताया कि सरैयाहाट अंचल की मटिहानी पहाड़ी और खिलॅ पहाड़ी पर भी मानवों की एक-एक पदछापें हैं जिनकी तस्वीरें पुस्तक में हैं। 

लेखक वाजपेयी ने कहा कि दुमका जिला के शिकारीपाड़ा अंचल में चंदलघाट नाला नामक एक पतली नदी के किनारे निर्मित और अर्धनिर्मित पाषाण हथियार दबे पड़े हैं जिनसे पता चलता है कि वह स्थान पाषाण हथियारों के निर्माण और निर्यात का केन्द्र था। मानवों की पदछापों वाली पहाडि़यों और चट्टान को उन्होंने अबिलम्ब सुरक्षित करने की माँग सरकार से की तथा यह दावा किया कि ऐसी छापें तब की हैं जब धरती के बहुत से स्थलीय खण्ड संयुक्त थे। उस समय दक्षिण अफ्रीका के पहाड़ राजमहल पहाडि़यों से जुड़े हुए थे। यह बात 30 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी है।  लेखक वाजपेयी ने पुस्तक के माध्यम से एक और सनसनीखेज दावा किया है कि संताल परगना सहित प्राचीन अंग क्षेत्र में दफन है एक सभ्यता जो हड़प्पा सभ्यता से भी प्राचीन है। इस बात से सम्बन्धित कई पुरातात्त्विक साक्ष्य पुस्तक में प्रस्तुत किये गये हैं। सभ्यता से सम्बन्धित साक्ष्य उन्हें विशेषकर साहेबगंज, गोड्डा, दुमका, बाँका और भागलपुर जिले में मिले हैं। कार्यक्रम में मोजूद इतिहासकार डाॅ0 सुरेन्द्र नाथ झा ने आरोप लगाया कि पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत सा गलत इतिहास पढ़ाया है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में लिखित बातों को प्रमाणित करने में हम मिलकर जीतेंगे। निश्चित रूप से अंग क्षेत्र की सभ्यता ही संसार की प्राचीनतम सभ्यता है।

कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि रूप में मौजूद लोहरदगा के उप विकास आयुक्त (भा0प्र0से0) शशिधर मंडल ने लेखक वाजपेयी को अंग के इतिहास का जनक की संज्ञा देते हुए कहा कि इस पुस्तक ने इतिहास की ओर लोगों को अग्रसर करने के लिये शोध का एक विषय छोड़ दिया है। पुस्तक में लिखी बातें इतिहासकारों की कानों में सुनाई ही पड़नी चाहिये क्योंकि इसमें भारत ही नहीं बल्कि विश्व के इतिहास को बदलने की बात है। आने वाले समय में इस पुस्तक को इतिहास में जगह अवश्य मिलेगी। रेशम विभाग के परियोजना के सहायक निदेशक सुधीर कुमार सिंह ने कहा कि लेखक वाजपेयी द्वारा की गयी खोज को सरकार और विश्वविद्यालय द्वारा आगे बढ़ाया जाना चाहिये।  कार्यक्रम में मौजूद लेखिका एवं भागलपुर आकाशवाणी की पूर्व वरीय उद्घोषिका सह कार्याधिकारी डाॅ0 मीरा झा ने कहा कि वाजपेयी के साथ उन्हें भ्रमण का अवसर मिला है जिस दौरान उन्हें भी प्राचीनतम आदिमानवों की पदछापें देखने को मिली हैं। पुस्तक में अंग क्षेत्र के ऐतिहासिक एवं धर्मस्थलों की प्राचीनता दर्शायी गयी है तथा देवघर स्थित वैद्यनाथ मंदिर के ऊपर स्थापित एक प्राचीन कलश पर खोदी हुई पंक्तियाँ प्रकाशित की गयी हैं जो 43 ईसा पूर्व की हैं। संस्कृत भाषा की ये पंक्तियाँ वैद्यनाथ मंदिर की प्राचीनता बताती हैं। निश्चित रूप से यह पुस्तक आने वाले समय में शोधकत्र्ताओं के लिये महत्त्वपूर्ण होगी। 

समारोह में जिला आपूर्ति पदाधिकारी शिवनारायण यादव ने पुस्तक की समीक्षात्मक व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहा कि लेखक वाजपेयी की पुस्तक महत्त्वपूर्ण तो है ही साथ ही इसकी प्रमाणिकता को लेकर राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई चुनौतियाँ भी हैं जिसके लिये लेखक को तैयार रहने की आवश्यकता है। समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रयास फाउंडेशन फाॅर टोटल डेवलपमेंट संस्थान, दुमका के सचिव मधुर कुमार सिंह ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक ने संताल परगना के कई धार्मिक स्थलों का शिलालेखों के आधार पर काल निर्धारण किया है। इस पुस्तक को अंग क्षेत्र (जिसका एक भाग झारखण्ड में तथा दूसरा बिहार में है) के लोगों का मान बढ़ाया है। पुस्तक के माध्यम से यहाँ की सभ्यता सर्वाधिक प्राचीन होने की बात को स्थापित करने के लिये जो भी प्रयास होंगे किये जायेंगे। समारोह में सेवानिवृत्त ए0डी0एम0 सी0 एन0 मिश्रा, स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार सुमन सिंह, राजीव रंजन, गोड्डा के पत्रकार प्रदीप पल्लव के अलावा, जामताड़ा के शिक्षाविद् चन्द्रशेखर यादव, पाकुड़ के सामाजिक कार्यकत्र्ता शिवचरण माल्टो सहित कई बुद्धिजीवीयों ने अपने वकतव्य में पुस्तक की महत्ता को रेखांकित किया और लेखक को बधाईयाँ दी। कार्यक्रम में मंच संचालन पत्रकार राजकुमार उपाध्याय एवं जनमत शोध संस्थान के सचिव अशोक सिंह ने किया। समारोह में बुद्धिजीवी पंडित चन्द्रशेखर मिश्रा, उमेश चन्द्र सिन्हा, रेणु मिश्रा, शंकर पंजियारा, अनुज आर्या, रविशंकर वाजपेयी, सुरेश कुमार झा, सरोज कुमार वाजपेयी, शंकर सिंह पहाडि़या, पत्रकार आनन्द जायसवाल, मनोज केशरी, उज्जवल गुप्ता, सुबीर चटर्जी, राकेश कुमार मुन्ना, कुमार प्रभात, रूपम किशोर सिंह, पंचम झा, मारूफ हसन, प्रदीप कुमार मंडल के अलावा अनूप कुमार वाजपेयी के पिता प्रेम कुमार वाजपेयी भी मौजूद थे।  पुस्तक समीक्षा प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुई है। 

कोई टिप्पणी नहीं: