- शराबबंदी कानून के काले प्रावधानों के तहत गिरफ्तार सभी दलित-गरीबों को अविलंब रिहा करे भाजपा-नीतीश सरकार.
- गरीबों के लिए पुनर्वास व वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करो, शराब माफियाओं पर लगाम लगाए.
पटना (आर्यावर्त डेस्क) 23 जुलाई, भाकपा-माले के राज्यव्यापी आह्वान पर आज राजधानी पटना सहित राज्य के प्रमुख जिला मुख्यालयों पर शराबबंदी कानून के काले प्रावधानों के तहत जेल में बंद डेढ़ लाख से अधिक दलित-गरीबों की अविलंब रिहाई, उनके पुनर्वास, मुआवजा व वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करने की मांग पर जोरदार प्रदर्शन किया गया. पटना में विधानसभा के समक्ष गर्दनीबाग में सैकड़ों की तादाद में दलित-गरीबों ने प्रदर्शन किया और जिलाधिकारी के मार्फत बिहार के मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा. पटना के अलावा दरभंगा, अरवल, नवादा, जहानाबाद, सिवान, भोजपुर, समस्तीपुर, गया, नालंदा, मधुबनी, भभुआ, गोपालगंज, बेतिया आदि जिला मुख्यालयों पर भी प्रदर्शन किया गया और जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया.पटना में प्रदर्शन का नेतृत्व भाकपा-माले के पोलित ब्यूरो सदस्य अमर, केंद्रीय कमिटी के सदस्य गोपाल रविदास, माले के जिला नेता गुरूदेव दास, युवा नेता शाधुशरण दास, लोकप्रिय मुखिया जयप्रकाश पासवान, प्रमोद, महिला नेत्री कमला देवी, राकेश मांझी आदि नेताओं ने किया. माले नेताओं ने प्रदर्शन को संबोधित करते हुए कहा कि आम जनता के लंबे आंदोलनों के बाद राज्य में शराबबंदी कानून लागू हुआ था लेकिन आज इस कानून के काले प्रावधान दलित-गरीबों पर कहर बनकर टूटे हैं. लगभग डेढ़ लाख लोग जिसमें 90 प्रतिशत से अधिक दलित-गरीब हैं, बिहार की विभिन्न जेलों में अमानवीय स्थिति में जीने को मजबूर हैं. उनका घर-परिवार बुरी तरह तबाह हो चुका है. एक रिपोर्ट के अनुसार आजादी के आंदोलन के दरम्यान अंग्रजों ने भी इतने लोगों को जेल में बंद नहीं किया था.
माले की केंद्रीय कमिटी सदस्य गोपाल रविदास ने कहा कि एक तरफ दलित-गरीबों को दबाया जा रहा है तो दूसरी ओर शराब माफियाओं पर कोई नकेल नहीं कसी जा रही है. शराब की बुरी लत के शिकार दलितों को नशामुक्ति केंद्र खोलने की बजाए उन्हें जेल में डाल दिया गया है. जिन गरीबों को जनसंहारों के मामले में बरसो बरस तक न्याय का इंतजार करने के बाद भी अन्याय मिला, उन्हें शराबबंदी कानून के तहत चंद दिनों में सजायाफ्ता घोषित कर दिया गया. इतनी त्वरित कार्रवाई शायद ही किसी अन्य मामले में हुई हो..नेताओं ने अपने संबोधन में कहा कि शराबबंदी कानून के काले प्रावधानों की चैतरफा आलोचना के बाद सरकार ने इसमें कुछ संशोधन का प्रस्ताव लाया है. लेकिन यह संशोधन शराबबंदी कानून के मूल चरित्र को कहीं से भी प्रभावित नहीं करता है. संशोधित प्रस्ताव में शराब माफियाओं को भी रियायत दी गई है. दलित-गरीब-बेरोजगार वैकल्पिक रोजगार के अभाव में शराब के धंधे से जुड़े हुए हैं. उनकी तुलना शराब माफियाओं से करना बिलकुल अन्याय है जो बिजनेस के लिए शराब की तस्करी करते हैं. यदि दलित-गरीबों-बेरोजगार नौजवानों के लिए वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था कर दी जाए तो इसमें कोई शक नहीं कि वे इस तरह के काम से खुद को मुक्त कर लेंगे. वर्तमान प्रस्तावित कानून व्यवसायिक भंडारण एवं पीने के लिए घर में रखी शराब की बोतल में भेद नहीं करता. तय है इसका इस्तेमाल गरीबों के उत्पीड़न में होगा. नए प्रस्ताव के तहत भंाग को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है और उसे अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया है. जाहिर है कि इसकी मार भी सबसे अधिक गरीबों पर ही पड़ेगी. इसलिए भांग खाने को अपराध की श्रेणी से निकालकर नशा मुक्ति केंद्र का विषय बनाया जाए.
भाकपा-माले ने आज के प्रदर्शन के जरिए प्रशासनिक संरक्षण में फल-फूल रहे शराब के अवैध कारोबार व शराब माफियाओं पर नकेल कसने, शराब की बुरी लत के शिकार लोगों के लिए प्रखंड स्तर पर नशामुक्ति केंद्र खोलने, उनके सही इलाज, गिरफ्तार लोगों की रिहाई, मुाअवजा व पुनर्वास की व्यवस्था और वैकल्पिक रोजगार की मांग की. प्रदर्शन में नेताओं के अलावा विरेन्द्र, रामचंद्र दास, देवीलाल पासवान, शरीफा मांझी, छोटे मांझी, धनंजय पासवान, श्रीभगवान पासवान, कर्मचारियों के लोकप्रिय नेता रामबली प्रसाद आदि शामिल थे. माले नेताओं ने कहा कि सरकार यदि गरीबों को अविलंब रिहा नहीं करती है तो राज्यव्यापी आंदोलन चलाया जाएगा.
कुमार परवेज
कार्यालय सचिव, भाकपा-माले, बिहार

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