विचार : शिवानंद जी के पोस्‍ट पर वीरेंद्र यादव की खरी-खरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 1 जुलाई 2018

विचार : शिवानंद जी के पोस्‍ट पर वीरेंद्र यादव की खरी-खरी

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राजद के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष और पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी ने आज फेसबुक पर एक पोस्‍ट लिखा है। इस पोस्‍ट के माध्‍यम से उन्‍होंने बताने की कोशिश की है कि कैसे पटना के अखबारों में तेजस्‍वी यादव के साथ ‘अन्‍याय’ हो रहा है। उनके विरोधी के बयान बड़े-बड़े छपते हैं और उनके पक्ष का बयान ‘दुबक’ जाता है। दरअसल दुबक जाना ही राजद की त्रासदी है। शिवानंद जी के बयानों पर बहस हो सकती है, उनके आरोपों का अपना आधार हो सकता है। मीडिया की अपनी विवशता हो सकती है। लेकिन राजद नेता का बयान प्रमुखता से नहीं छपना राजद की रणनीतिक विफलता भी हो सकती है। पार्टी और उसके नेता को इस ओर भी मंथन करना चाहिए।

राजद का सबसे बड़ा संकट ‘दरबे’ की राजनीति है। पार्टी 5 नंबर से शुरू होती है और 10 नंबर पर आकार खत्‍म हो जाती है। पार्टी का आकार 90 से 95 कदम में सिमट गया है तो खबरों के बड़ा होने की उम्‍मीद नहीं करनी चाहिए। वर्तमान राजद के ‘सर्वशक्तिमान’ नेता तेजस्‍वी यादव का मीडिया के साथ कैसा संबंध है। कितने पत्रकारों को वे उनके नाम और संस्‍थान के नाम से जानते हैं। कितने पत्रकार उनसे सीधे खबरों के संबंध में बात करते हैं और कितनों को वे खुद खबर के संबंध में ब्रिफ करते हैं। शायद एक भी नहीं। प्रेस कॉन्‍फ्रेंस या एकाध चैनलों के साथ अपनी बात रख लेना मीडिया मैनेजमेंट नहीं है।

हर खबर का आकार या जगह मालिक या संपादक तय नहीं करता है। यह फैसला डेस्‍क इंचार्ज या रिपोर्टर का होता है, जो सीधे तौर पर खबरों के आकार व जगह के लिए जिम्‍मेवार होते हैं। कितने डेस्‍क इनचार्ज से तेजस्‍वी यादव ने पिछले ढाई वर्षों में बात की है। कितने रिपोर्टरों से तेजस्‍वी ने आफ्टर पीसी खबरों के संदर्भ को लेकर अपनी ओर से बात की है। शायद ही कोई। पीसी के पहले दरबा और पीसी के बाद दरबा। पत्रकारों की अपनी जिम्‍मेवारी है कि वे एक वाट्सअप मैसेज पर कवर करने पहुंच जाते हैं। इसके बाद नेता की भी जिम्‍मेवारी है कि खबरों के संदर्भ और प्रासंगिकता को लेकर बताएं और उसकी महत्‍ता बतायें। राजद के नेता खबरों की महत्‍ता कम और अपनी महत्‍ता ज्‍यादा बताते हैं। खबरों की प्रासंगिकता और महत्‍ता प्रेस रिलीज बनाने वाले बताएंगे तो खबर को ‘दुबकना’ ही पड़ेगा।

नेता प्रतिपक्ष तेजस्‍वी यादव व उपमुख्‍यमंत्री सुशील मोदी की ‘टि्वटरलॉजी’ से सीएम नीतीश कुमार परेशान हो गये हैं। कई कार्यक्रमों में अपनी खीझ निकलते रहे हैं। तेजस्‍वी यादव ‘व्‍यवहार प्रबंधन’ में सुशील मोदी से कुछ सीख पायें तो अखबारों ने उनसे ज्‍यादा जगह घेर पाएंगे। सुशील मोदी पत्रकारों के साथ व्‍यक्तिगत संबंध को तरजीह देते हैं। आमतौर पर खबर मेल से भेजने के बाद खुद रिपोर्टर से बात कर लेते हैं और प्रेस रिलीज के अलावा खबर के अन्‍य पक्ष को लेकर चर्चा कर लेते हैं। इस कारण रिपोर्टर के पास इनपुट काफी हो जाता है। इतना ही नहीं, सुशील मोदी की खबर एकदम बनी-बनायी रहती है। रिपोर्टर व डेस्‍क इंजार्ज को खबर के अनुसार जगह देखकर पेस्‍ट कर देना होता है। इसके विपरीत तेजस्‍वी यादव की खबर सिर्फ सूचना होती है। वाट्सअप ग्रुप में तेजस्‍वी की ओर से जारी खबर में एक पंक्ति भी सही नहीं मिलेगी। उन पंक्तियों को सही करने में ही बेचारा रिपोर्टर माथा ठोक लेता है तो खबर बड़ी कहां से बनाएगा। खबर के नाम पर खानापूर्ति कर देना होता है।

तिवारी जी, हम आपकी पीड़ा से सहमत हैं, तेजस्‍वी जी को पर्याप्‍त जगह नहीं मिलती है तो इसके लिए अखबार प्रबंधन नहीं, तेजस्‍वी जी का अपना मीडिया मैनेजमेंट जिम्मेवार है। मीडिया के साथ उनका व्‍यवहार दोषी है। इस पर तेजस्‍वी यादव व उनकी टीम को विचार करना चाहिए। यह अच्‍छी बात है कि आप भी उस टीम के मजबूत सलाहकार हैं। अंत में एक बात और, आपकी पार्टी की नयी पीढ़ी के नेता देना जानते ही नहीं हैं - न खबर, न सम्‍मान और न सत्‍ता।


--बिरेन्द्र यादव--

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