विजय सिंह ,आर्यावर्त डेस्क,30 जुलाई, देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उद्योगपतियों के साथ खड़े होने,फोटो खिंचवाने और लाभ पहुँचाने के मुद्दे पर विपक्ष विशेषतः कांग्रेस प्रहार करती नजर आ रही है.राजनीतिक दृष्टिकोण से पक्ष विपक्ष के आरोप प्रत्यारोप तक तो यह ठीक है परन्तु क्या देश सच में बिना उद्योगपतियों के चल सकता है? क्या राजनीतिक पार्टियां बिना उद्योगपतियों कारोबारियों के चंदे के अपना वजूद बनाये रख सकती हैं? क्या बिना उधोग कारोबार पनपे बेरोजगारी ख़त्म की जा सकती है ? क्या देश के विभिन्न राज्यों में बिना उद्योगों के विकास हुआ है ? क्या विभिन्न सरकारों और राजनीतिक पार्टियों के समय व सुविधानुकूल उद्योगपतियों -व्यापारियों से ताल्लुकात नहीं रहे हैं ? अगर ऐसा हो सकता है तो सबसे पहला त्वरित सवाल यह कि विभिन्न विचारधाराओं की सरकारें निवेशक सम्मलेन क्यों करती रही हैं ? निवेशकों को आकर्षित करने के लिए तमाम सुविधाओं की घोषणाएं क्यों करती रही हैं ? जाहिर है निवेशक तो उद्योगपति और कारोबारी ही होंगें. और उस पर मजे की बात यह कि वही उद्योगपति देश के विभिन्न राज्यों के निवेशक सम्मलेन में हिस्सा लेते हैं,ऐसा कहीं नहीं दिखा कि अमुक उद्योगपति अगर गुजरात में शामिल हुआ हो तो बंगाल से दूरी बनाये हुए हो. क्योंकि व्यापारी तो व्यापार की संभावनाओं को तलाशता है और उसे भौगोलिक क्षेत्र से बहुत फर्क नहीं पड़ता. डेरा वहीँ जहाँ संभावनाएं. गौर कीजिये अगर जमशेदपुर में टाटा स्टील का कारखाना जमशेदजी नसरवान जी टाटा ने नहीं लगाया होता तो आज वो शहर किस स्थिति में होता ?एक कारखाने ने लोगों की जिंदगी बदल दी,शहर की पहचान बदल दी. बैंगलोर में आई.टी .कंपनियों ने रोजगार के नए आयाम स्थापित किये.
हाँ ,विरोध उद्योगपतियों व्यापारियों की नीति का होना चाहिए.गलत नीति का विरोध करना जायज है. हक़ अधिकार के लिए आवाज उठाना जायज है.देश विरोधी कार्यों में संलग्नं उद्योगपति व्यापारी का विरोध होना चाहिए.देश की संपत्ति ,संसाधन लूट कर विदेशों में जा छुपे उद्योगपति कारोबारी का विरोध होना चाहिए. लेकिन प्रत्येक उद्योगपति कारोबारी व्यापारी को चोर दृष्टि से देखना उन तमाम बेरोजगारों के साथ अन्याय होगा जो एक कारोबार शुरू होने पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्राप्त करते हैं. प्रत्यक्ष रूप में प्रधानमंत्री का उद्योगपतियों से मिलना कहीं से अनुचित नहीं लगता .हाँ विपक्ष को यह पूछना चाहिए था कि अमुक उद्योगपति ने अमुक राज्य या क्षेत्र में उद्यम - व्यापार लगाने का वादा किया था ,वो समयबद्ध पूरा क्यों नहीं हुआ ? पूछना यह चाहिए कि उद्योग लगा तो कितने वास्तविक बेरोजगारों को रोजगार मिला ?पूछना यह चाहिए कि कितने बिना पैरवी वालों ,भाई भतीजावाद से परे शिक्षित काबिल युवा रोजगार पा सके ?सकारात्मक राजनीति ही देश से बेरोजगारी कम कर सकती है, युवाओं के चेहरे पर रौनक ला सकती है
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