बेगूसराय : आमरण अनशन पर बैठे चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों का आज दूसरा दिन भी बीता। - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 7 अगस्त 2018

बेगूसराय : आमरण अनशन पर बैठे चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों का आज दूसरा दिन भी बीता।

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बेगूसराय (अरुण कुमार) वर्तामान पदाधिकारी के आलोक में निम्नांकित तथ्यों को रखते हुए चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों ने लिया इन्साफ के लिये आमरण अनशन का ब्रत।बेगूसराय समाहरणालय के दक्षिणी द्वार पर बैठे कर्मचारियों का कहना है कि हमलोग छटनीग्रस्त दैनिक भत्ता पर कार्यरतकर्मचारी हैं।दैनिक वेतन भोगी आवेदक:-रामनन्दन पासवान 02 जून 1986 से सुरेश महतों 21 जनवरी 1988 से एवं रामकृपाल महतों 17 फरवरी 1988 से दैनिक भत्ता पर कार्यरत,वेतन भोगी कर्मचारी के रुप मे बेगूसराय जिला के अधीनस्थ जिला समाहरणालय,अनुमंडल कार्यालय एवं उप -विकास आयुक्त के कार्यालय में कार्य किया है।1986 से लागातार 2008 तक दैनिक भत्ता पर चतुर्थवर्ग के पद पर कार्यरत थे।दैनिक भत्ता वेतन भोगी के रुप में कार्यरत कर्मचारियों का स्थायीकरण के लिये 1994/95 में प्रतीक्षा सूची बनाया गया,जिसमें रामनन्दन पासवान का क्रमांक 51,चन्द्रशेखर सिंह का क्रमांक 56,उमेश झा का क्रमांक 68,सुरेश महतों का क्रमांक 62,रामकृपाल महतों का क्रमांक 63 है।आगे उमेश बताये की बाद में सातवीं पास का भी स्थाई कारण हो गया।हमलोग भी अष्टम पास का प्रमाणपत्र संलग्न बाद में किया फिर भी हमलोगों के उनपर ध्यान नहीं दिया गया ये अन्याय नही तो क्या है।आज हम सब गरीबी,भुखमरी,बीमारी आदि से जूझ कर मर रहे हैं इससे तो बेहतर है कि हम समाहरणालय के समक्ष अपना दम तोड़ें।हमारे साथ किस तरह से अन्याय हुआ है इसका प्रतिलिपि हमने समाहरणालय महोदय के समक्ष प्रस्तुत कर चुके हैं।जिसकी एक प्रति माननीय मुख्यमंत्री महोदय,बिहार सरकार पटना,दूसरी प्रति कार्मिक विभाग,बिहार सरकार पटना और तीसरी प्रति माननीय आयुक्त महोदय,मुंगेर प्रमंडल,मुंगेर कार्यालय में भी दे चुका हूँ।अब हम सब इस के लिये कोई रास्ता जीने के लिये रहा है नहीं तो जब मरना ही है भुखमरी से तो श्रीमान समाहर्ता के चौखट पर ही क्यों न मरें।ये ही हमारे माँ-बाप हैं अब ये चाहें हमें जिन्दगी दे या मौत सब उन्हीं के आधीन है।आज दूसरे दिन भी कोई कहीं से देखने या पूछने भी नहीं आये हैं मेरी कोई खोज खबर लेनेवाला नहीं है तो इस हालात में भी हम जीकर भी क्या करेंगे।हम अब अपने बच्चों को पढ़ाने लिखाने की बात तो दूर उन्हें दो वक्त में एक वक्त की रोटी भी नहीं दे सकताके तो फिर जीते जी हम मुर्दे के समान ही गए हैं तो ऐसी जिंदगी किस काम की।इसलिये अब हम मारने के लिये ही तैयार बैठे हैं।

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